isis (दाइश) मुसलमानों के गले पर चलती यहूद तलवार
isis (दाइश) मुसलमानों के गले पर चलती यहूद तलवार
लंबी दाढ़ी, ऊंचा पैजामा और लंबा कुर्ता पहने तथा सूरज की गर्मी से झुलसे हुए चेहरे वाले लोगों को तो आपने हालिवुड की फ़िल्मों में जंगलों और मरुस्थलों में देखा ही होगा। इन्हीं झुलसे चेहरे वालों ने आज पश्चिमी के भौतिक और उनके संचार माध्यमों के ज़बरदस्त समर्थन से पूरी दुनिया का सुख चैन छीन लिया है किन्तु समस्या की बात यह है कि यह सब कुछ वे इस्लाम के नाम पर कर रहे हैं और उनके हाथों में दो प्रतीक होते हैं एक पवित्र क़ुरआन और दूसरा तलवार। निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि पवित्र क़ुरआन और इस्लाम के बारे में तकफ़ीरियों की व्याख्या पूर्णरूप से इस ईश्वरीय धर्म की वास्तविकता से विरोधाभास रखती है। इस्लाम धर्म शांति, सुरक्षा और भाईचारे का निमंत्रण देता है किन्तु कट्टरवादी तकफ़ीरी चरमपंथी निर्दोष लोगों की निर्दयता से हत्या करते हैं और उसके बाद नारे अल्लाहो अकबर के नारे लगाते हैं।
जी हां ये वही लोग हैं जिन्होंने मानवता के आरंभिक अधिकारों की अनदेखी करते हुए न केवल यहूदी और ईसाईयों से बल्कि अपने मुसलमान भाईयों से सुख चैन छीन लिया और अपने खोलले विचारों में इस्लामी सरकार का गठन और इस्लामी क़ानूनों के क्रियान्वयन का सपनों सजोए हुए हैं। इस बात में कोई अंतर नहीं है कि उनका नाम क्या है और उनका पता क्या है, खेद की बात तो यह है कि यह दुनिया के हर कोने में इस्लाम के नाम पर अपराध कर रहे हैं।
मुसलमानों का वेश धारण किये यह तथाकथित मुसलमान, निर्दोष मुसलमानों की गर्दन काट्टे हैं और उनके सिर से फ़ुटबाल खेलते हैं और मुसलमानों की हत्या के बाद उनका दिल चबा जाते हैं और इससे बढ़कर अपने घिनौने कृत्यों की वीडियो क्लिप बड़े ही गर्व से इन्टरनेट पर अपलोड करते हैं ताकि लोगों के दिलों में इनका भय व्याप्त रहे। अब प्रश्न यह है कि यह कौन लोग हैं और इनका समर्थन कहां से होता है? यह गुट विश्व के विभिन्न कोने में भिन्न नामों व पतों से प्रकट होते हैं किन्तु वास्तव में एक ही पंथ के अनुयायी हैं और इनका काम केवल शैतान और इस्लाम के शत्रुओं की सहायता के अतिरिक्त कुछ और नहीं है।
इस्लामिक स्टेट आफ़ इराक़ एंड लिवेंट अर्थात दाईशआईएसआईएल एक सशस्त्र आतंकवादी गुट है जिसने अपनी खोखली कल्पना के आधार पर पूर्वेजों की जेहादी शैली अपनाई है किन्तु वास्तव में यह वहाबियों की रूढ़ीवादी और पथभ्रष्ट विचारधारा का अनुसरण करते हैं। ऐसा गुट जो अपने भयावह अपराध के कारण समाचार पत्रों की सुर्ख़िया बनता है। आतंकवादी गुट दाइश अपने विरोधियों को मारने के लिए बहुत ही भयावह शैली का प्रयोग करता है जिसका उदाहरण लोगों की नज़रों के सामने सीरिया की जनता का सामूहिक जनसंहार है जिसमें बच्चों, महिलाओं, जवानों और बूढ़ों को देखा जा सकता है क्योंकि जब मानवकता का सूर्यास्त हो जाता है तो पवित्र क़ुरआन के अनुसार मनुष्य, जानवरों से भी बदतर हो जाता है।
अब सीरिया के बाद इराक़ आतंकवादियों का गढ़ बन गया है। अभी हाल ही में आतंकवादी संगठन दाइश ने इराक़ के मूसिल नगर और अन्य नगर पर क़ब्ज़ा कर लिया है और उसने धमकी है कि उसके लड़ाके बग़दाद व पवित्र नगर नजफ़ व करबला की ओर बढ़ रहे हैं। अलबत्ता यह गतिविधियां, समर्थकों के व्यापक समर्थन के बिना संभव नहीं है किन्तु प्रश्न यह है कि दाइश का गठन कैसे हुआ?
दाइश का इतिहास वर्ष 2004 में अर्थात जब अबू मुसअब ज़रक़ावी ने तौहीद और जेहाद नामक गुट का गठन किया और उसका प्रमुख बन बैठा। उसके द्वारा अलक़ायदा प्रमुख ओसमा बिन लादेन की अज्ञापालन का वचन देने के बाद यह गुट इराक़ में अलक़ायदा की शाखा में परिवर्तित हो गया। अमरीका की ओर से इराक़ के अतिग्रहण के बाद ज़रक़ावी गुट ने पहले तो अमरीकी सैनिकों के विरुद्ध जेहादी गुट के रूप में स्वयं को पेश किया । यही कारण था कि बहुत से इराक़ी युवा जो अपने देश के अतिग्रहणकारी अमरीकी सैनिकों से संघर्ष कर रहे थे, बहुत शीघ्र इस गुट से जुड़ गये और धीरे धीरे इस गुट का प्रभाव पूरे इराक़ में कैलने लगा और यह एक बड़ा व शक्तिशाली छापामार गुट बनकर सामने आया।
वर्ष 2006 में ज़रक़ावी मारा गया और अबू हमज़ा अल मुहाजिर को इराक़ में अलक़ायदा का मुखिया और ज़रक़ावी का उतराधिकारी बनाया गया। वर्ष 2006 में समस्त छापामारों के गुट को मिलाकर एक गुट बनाया गया जिसका नाम इस्लामिक स्टेट आफ़ इराक़ लिवेंट रखा गया जिसका नेतृत्व अबू उमर बग़दादी के हाथ में आ गया। अप्रैल वर्ष 2010 में अमरीकी सैनिकों ने एक कार्यवाही में अबू उमर बग़दादी और अबू हमज़ा अलमुहाजिर मारा गया और उसके बाद अबू बक्र बग़दादी को उसका उतराधिकारी चुना गया।
वर्ष 2011 के आरंभ में जब सीरिया संकट आरंभ हुआ तब दाइश की शाखा के रूप में नुस्रा फ़्रंट का गठन सीरिया में किया गया और बहुत शीघ्र ही यह गुट सरकार के विरुद्ध लड़ने वाले महत्त्वपूर्ण गुट में परिवर्तित हो गया। अंततः वर्ष 2013 में अबू बक्र बग़दादी ने एक आडियो संदेश में नुस्रा फ़्रंट को दाइश में मिला दिया और इस प्रकार इस गुट का नाम इस्लामिक स्टेट आफ़ इराक़ लिवेंट रख दिया गया किन्तु अलक़ायदा द्वारा इस विलय के विरोध और नुस्रा फ़्रंट के समर्थन के कारण, दाइश सीरिया में इस गुट से भिड़ गया।
इराक़ और सीरिया में मौजूद दाइश के आतंकवादी सबसे निर्दयी तत्व हैं, इस गुट की ओर से जारी किए जाने वाली विडियो क्लिप सबसे भयावह होती है और कमज़ोर दिल वाल तो यह दृत्य देख भी नहीं सकता।
मार्च 2011 में सीरिया संकट के आरंभ होने से और सीरिया में मौजूद आतंकवादियों की पश्चिमी देशों और कुछ अरब देशों के भरपूर समर्थन के दृष्टिगत तकफ़ीरी गुट बहुत शक्तिशाली हो गया। यह सहायताएं, सऊदी अरब, क़तर और तुर्की जैसे कुछ देशों और कुछ पश्चिमी देशों के समर्थन से वित्तीय, सामरिक, प्राचारिक, सूचना और प्रशिक्षण जैसी परिधि में की गयीं जिसके कारण सीरिया और आज इराक़ में तबाही और युद्ध जारी है।
दाइश के लड़ाकों का प्रभाव उत्तरी इराक़ से आरंभ होकर इराक़ और तुर्की की सीमा के निकट तक फैल गया है। वे अधिक से अधिक क्षेत्रों पर नियंत्रण करके अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों का विस्तार कर रहे हैं और इस क्षेत्र को इराक़ और सीरिया की इस्लामी सरकार घोषित कर चुके हैं।
आतंकवादी गुट दाइश और उनके जैसे गुट, इस्लाम की मानवता प्रेमी व भाईचारे पर आधारित शिक्षाओं और अपनी हिंसक प्रवृत्ति के मध्य कोई समन्वय स्थापित नहीं कर सकते। खेद की बात यह है कि मुसलमानों के विरुद्ध पश्चिम की नकारात्मक सोच जो उनके संचार माध्यमों की ओर से फैलाई गयी है, उनको कम ही इस बात की अनुमति देती है कि सीरिया और इराक़ में घटने वाली घटनाओं को समझें और इन आतंकवादियों को पहचाने। पश्चिमी संचार माध्यम, आज इस्लामी देशों में होने वाली त्रासदीपूर्ण घटनाओं के बारे में पश्चिमी देशों की ज़िम्मेदारियों के संबंध में सोचने से लिए अपने दशकों और पाठकों को रोकते हैं और इसे इस्लामी झड़पों का रंग देने का प्रयास करते हैं। वे प्रयास करते हैं कि लोगों के सामने इन समस्त हिंसक व्यवहारों को इस्लामी रंग रूप देकर पेश करें। इनमें से बहुत से संचार माध्यम, हत्या या जनसंहार करने के बाद दाइश की ओर से नारे तकबीर लगाये जाने को सदैव हैं। वास्तव में उनका प्रयास होता है कि इस प्रकार के चित्रों को दिखाकर इन आतंकवादी गुटों को उनके पश्चिमी समर्थकों से अलग और इस्लामी आस्था रखने वाला बताए किन्तु हर बुद्धिमान व्यक्ति यह जानता है कि पश्चिमी सरकारों के जित्गा कोई भी सरकार, तकफ़ीरी आतंकवादियों की भ्रष्ट विचाराधाराओं से कि जिसका परिणाम इस्लाम को कमज़ोर करने, मुसलमानों के मध्य मतभेद उत्पन्न करने और आपस में मुसलमानों को लड़ाने के अतिरिक्त कुछ और नहीं है, लाभ नहीं उठाती हैं। पवित्र क़ुरआन के सूरए सफ़ की आयत संख्या 8 में आया है कि यह लोग चाहते हैं कि ईश्वरीय प्रकाश को अपने मुंह से बुझा दें और ईश्वर अपने प्रकाश को पूरा करने वाला है चाहे यह बात अनेकेश्वरवादियों को कितनी ही बुरी क्यों न लगे।
पश्चिम की इस्लामोफ़ोबिया की योजना का अर्थ है इस्लाम धर्म को हिंसा और युद्ध के धर्म के रूप में पहचनवा जाए है। यह प्रोपेगैंडे इस्लाम की वास्तविकता को डांवाडोल कर रहे हैं और मुसलमानों को भी इस प्रकार की आस्था रखने के कारण अपमान व निंदा का सामना करना पड़ रहा है। इसी प्रकार आतंकवादी गुट भी जो इस्लाम के नाम पर अपराध कर रहे हैं, पश्चिम के शत्रुतापूर्ण प्रोपेगैंडों में सबसे अधिक भूमिका अदा करते हैं। दाइश और अन्य आतंकवादी संगठनों का इस्लामी देशों में हिंसक व्यवहार से इस बात का वातावरण बन गया है कि पश्चिमी देश मध्यपूर्व के स्रोतों का दुरूपयोग करें किन्तु ग्लोबल विलेज के वासियों के लिए आवश्यक है कि वह मुसलमान देशों की वरचुअल ट्रिप करें और अपनी आंखों से देखें कि मध्यपूर्व के मुसलमान पश्चिमी देशों और सऊदी अरब जैसी तानाशाही सरकार की ओर से दिए गये हथियारों की भेंट चढ़ रहे हैं।
आइये आपके ध्यान को एक ऐतिहासिक फ़ोटो की ओर ले चलते हैं जिससे सारी पोल खुलकर सामने आ जाएगी। इस चित्र में दिखाया गया है कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश, सऊदी अरब नरेश के निमंत्रण पर सऊदी अरब के दौरे पर हैं और उसके साथ तलवारों से विशेष प्रकार का अरब नाच कर रहे हैं। इस कूटनयिक उत्सव में तलवार एक निशानी के रूप में थी। अब उस चित्र में दिखायी गयी सारी चीज़ें व्यवहारिक हो रही हैं, मौत का नाच, निर्दोष लोगों का जनसंहार, गर्दन उड़ाना, महिलाओं और लड़कियों का अपहरण और इन सबसे बढ़कर इस्लाम की वास्तविक छवि को ख़राब करना है।
इस स्थिति में इस्लामी जगत को वास्तविक और रूढ़ीवादी इस्लाम के मध्य अंतर करने की आवश्यकता है जिससे आतंकवादी गुट ज़बरदस्त लाभ उठा रहे हैं। इस प्रकार के अंतर से दाइश जैसे आतंकवादी गुटों के ख़तरनाक अपराधों से शुद्ध इस्लाम पूर्ण रूप से अलग हो जाएगा और इस्लाम धर्म के दोहन और मुसलमानों के मध्य मतभेद फैलाने की पश्चिम की शक्ति बहुत सीमा तक कम हो जाएगी।
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