वह स्थान जहां पर अज़ान और अक़ामत कहना वाजिब नहीं है
वह स्थान जहां पर अज़ान और अक़ामत कहना वाजिब नहीं है
शर्तों के साथ अज़ान व अक़ामत साक़ित है
* जिस जगह पर कोई नमाज़े जमाअत ताज़ा ख़त्म हुई हो, अगर वहाँ पर कोई इंसान सफ़ें टूटने और लोगों के इधर उधर होने से पहले, अपनी फुरादा नमाज़ पढ़ना चाहे या किसी दूसरी ऐसी नमाज़े जमाअत में शरीक होना चाहे जो अभी बरपा हो रही हो, तो उससे इन छः शर्तों के साथ अज़ान व अक़ामत साक़ित है।
1. नमाज़े जमाअत मस्जिद में हो। अगर मस्जिद में न हो तो अजद़ान व क़ामत का साक़ित होना मालूम नही।
2. उस नमाज़ के लिए अज़ान व अक़ामत कही जा चुकी हो।
3. नमाज़े जमाअत बातिल न हो।
4. उस इंसान की नमाज़ और नमाज़े जमात एक ही जगह पर हो। लिहाज़ा अगर नमाज़े जमाअत मस्जिद के अन्दर पढ़ी जाये
और वह इंसान फ़ुरादा नमाज़ मस्जिद की छत पर पढ़ना चाहे तो मुस्तहब है कि वह अज़ान व अक़ामत कहे।
5. नमाज़े जमाअत अदा हो। लेकिन यह शर्त नही है कि ख़ुद उसकी नमाज़ भी अदा हो।
6. उस इंसान की नमाज़ और नमाज़े जमाअत का वक़्त मुशतरक हो मसलन दोनों नमाज़े ज़ोह्र या नमाज़े अस्र पढ़ें। या नमाज़े ज़ोह्र जमाअत से पढ़ी जा रही हो और वह नमाज़े अस्र पढ़े या वह नमाज़े ज़ोह्र पढ़े और जमाअत की नमाज़, नमाज़े अस्र हो, लेकिन अगर नमाज़े जमाअत अस्र की हो और वह आखिरी वक़्त में चाहे कि नमाज़े मगरिब अदा पढ़े तो उससे अज़ान व अक़ामत साक़ित नही होगी।
* जो शर्तें इससे पहले मस्अले में बयान की गई हैं अगर कोई इंसान उनमें से तीसरी शर्त के बारे में शक करे यानी उसे शक हो कि नमाज़े जमाअत सही थी या नही तो उससे अज़ान व अक़ामत साक़ित है। लेकिन अगर इसके अलावा बाक़ी पाँच शर्तों के बारे में शक करे तो बेहतर है कि रजा–ए- मतलूबियत की नियत से अज़ान व अक़ामत कहे।
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