अमरीका ने आतंकवादियों की दी हरी झंडी


टीवी शिया रिपोर्टः अब जब्कि इराक़ युद्ध की आग से झुलस रहा है और वहाबी आतंकवादी टोला दाइश हर तरफ़ से इराक़ की सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहा है तो इराक़ अपने साथी अमरीका की तरफ़ देख रहा है और उनसे यह आशा रखे हुए है कि वह उनकी इस भयानक स्थिति में सैन्य सहायता करेगा, जैसा कि जब अमरीका ने इराक़ पर हमला किया था तो दोनों देशों में यह संधि हुई थी कि अगर इराक़ पर कोई देश हमला करेगा या कोई उसकी सुरक्षा व्यवस्था के लिए ख़तरा बनेगा तो अमरीका सैन्य स्तर पर उसकी सहायता करेगा।

इस संधि के अनुसार अब अमरीका का दायित्व बनता है कि वह इराक़ की सहायता और वहाबी आतंकी संगठन दाइश जो कि इराक़ और क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा ख़तरा बन गया है, के लिए अपनी सेना भेजे, लेकिन इसके मुक़ाबले में जैसा कि सदैव से अमरीका की रीत रही है , इराक़ को धोखा देते हुए कहा है कि वह इराक़ में अपनी सेना नहीं भेजेगा।

अमरीका के राष्ट्रपति बाराक ओबामा का कहना है कि दाइश के आतंकियों की संख्या बहुत अधिक नहीं है और वह इराक़ की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा ख़तरा नहीं है इसलिए इराक़ को चाहिए कि वह स्वंय इस समस्या से निपटे।

ओबामा ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अमरीका अपनी सेना को इराक़ नहीं भेजेगा, और हमारी इराक़ी सेना को सहायता केवल हथियारों की हद तक सीमित रहेगी। यह दिखाता है कि अमरीका यह नहीं चाहता है कि इराक़ में आतंकवादियों को हार का मुंह देखना पड़े, जैसा कि कुछ दिनों पहले ही अमरीका के एक अधिकारी ने बयान दिया था कि हमने इराक़ी सेना को इस प्रकार के आतंकवादी हमले से निपटने के लिए ट्रेनिंग नहीं दी थी, और हमारी ट्रेनिंग केवल एक पुलिस ट्रेंनिगं की हद तक थी

ओबामा के इस बयान से कुछ नतीजे निकलते हैं

1. अमरीका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर आतंकवादियों की सहायता कर रहा है। क्योंकि सभी जानते हैं कि जब जब कोई आतंकी पकड़ा या मारा गया है उसकी जेब से अमरीकन करंसी और ग्रीन कार्ड आति मिलते रहे हैं, जैसा कि कुछ दिनों पहले के समाचार में भी आया था कि सीरिया में आत्मघाती हमला करने वाला अमरीकन नागरिक था।

2. अमरीका का इराक़ की सेना की सहायता न करना और इस प्रकार के बयान देना के हम अपनी सेना नहीं भेजेंगे यह एक प्रकार से आतंकवादियों के अत्मविश्वास को बढ़ावा देना है। और बता रहा है कि तुम जो चाहों बिना डर और भय के इराक़ में कर सकते हो।, और दूसरी तरफ़ यह इराक़ी सेना के मनोबल को तोड़ रहा है।

3. अमरीका का इराक़ में सेना न भेजना बता रहा है कि अमरीका इराक़ी लोकतंत्र का सम्मान नहीं करता है, और वह नही चाहता है कि इराक़ में नूरी मालेकी की सरकार बनी रहे।

4. अमरीका दाइश के माध्यम से इराक़ के टुकड़े करना चाहता है।

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