क़ुरआन मुसलमानों के बीच एकता का आधार
क़ुरआन मुसलमानों के बीच एकता का आधार
जिस समय क़ुरान की आयतें पैग़म्बरे इस्लाम (स) के हृद्य पर नाज़िल हो रही थीं और वे बिना किसी कमी या वृद्धि के उन्हें लोगों तक पहुंचा रहे थे, उस समय लोगों के भीतर व्यापक बदलाव हो रहा था। इन आयतों ने एकता, दोस्ती और मित्रता, अच्छे आचरण एवं प्रेम, बेसहारा एवं अनाथों की सहायता के प्रभावी संदेशों का विश्व में प्रसार किया और लोगों के सामने ईश्वर की महानता को पेश किया।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के बाद धीरे धीरे मुसलमानों में फूट पड़ने लगी। इस्लाम के उतार चढ़ाव भरे इतिहास में मुसलमानों के बीच विभाजन से इस्लामी जगत कमज़ोर हुआ और इसने इस्लामी समुदाय को ऐसा भौतिक एवं आध्यात्मिक नुक़सान पहुंचाया कि जिसकी भरपायी संभव नहीं है। जबकि मुसलमानों की पवित्र किताब क़ुराने मजीद ने इस्लामी समुदाय अर्थात उम्मत की एकता पर अत्यधिक बल दिया है और मुसलमानों से आपस में मिल जुलकर रहने का आहवान किया है। इस संदर्भ में सबसे स्पष्ट संदेश सूरए हुजरात की 10वीं आयत में दिया गया है: धर्म में गहरी आस्था रखने वाले अर्थात मोमिन आपस में भाई हैं, अतः तुम अपने भाईयों में सुलह कराओ और अल्लाह से डरो ताकि तुम्हारे ऊपर दया की जाए।
एकता, माला के धागे की भांति है जो मोतियों को आपस में जोड़ती और व्यवस्थित करती है। अगर धागा टूट जाता है तो मोती इधर उधर बिखर जाते हैं। ईश्वर ने भी एकता को मुसलमानों को लिए बेहतरीन उपाय क़रार दिया है और इसीलिए उन्हें एक दूसरे का भाई बताया है ताकि एकता की छाया में महान लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।
क़ुराने मजीद की दृष्टि से एकता के प्रभाव ध्यान योग्य हैं। क़ुरान के मुताबिक़, एकता एवं सहदयता के परिणामों में से एक शांति और सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिरता है। अंतिम ईश्वरीय पुस्तक, हर समाज में शांति एवं स्थिरता की स्थापना और हिंसा एवं अशांति से बचने के लिए एकता को महत्वपूर्ण क़रार देती है। इसलिए कि एकता से समाज में मित्रता एवं परस्पर सहयोग की भावना बढ़ती है और जात पात एवं रंगभेद पर आधारित सामाजिक बुराईयां दूर होती हैं। पवित्र क़ुरान में उल्लेख है कि अल्लाह की अनुकंपा को याद करो कि किस तरह एक दूसरे के दुश्मन थे और उसने तुम्हारे दिलों में प्रेम डाला, और उसकी अनुकंपा से एक दूसरे के भाई बन गए, और तुम आग के गड्ढे के किनारे खड़े थे और अल्लाह ने तुम्हें उससे मुक्ति प्रदान की। अल्लाह इस प्रकार अपनी निशानियों को तुम पर स्पष्ट करता है। क़ुरान की इस आयत में आपसीफूट को शत्रुता एवं हिंसा के गड्ढे के दहाने की भांति क़रार दिया गया है।
एकता के दूसरे प्रभावों में से एक समाज के वैभव एवं स्थिरता की सुरक्षा है। जब समाज में मतभेद समाप्त हो जाते हैं तो दिल एक दूसरे के निकट आ जाते हैं और समाज व्यवस्थित हो जाता है, इस तरह से कि दुश्मन उसमें घुसपैठ नहीं कर सकता और समाज को क्षति नहीं पहुंचा सकता। क़ुरान लोगों के बीच मतभेदों के परिणामों की ओर संकेत करते हुए कहता है, आपस में झगड़ा मत करो, कि कमज़ोर पड़ जाओ और तुम्हारी शक्ति क्षीण हो जाए।
क़ुरान के अनुसार, समाज के विघटन का कारण आपसी झगड़े और मतभेद हैं, इसके विपरीत कहा जा सकता है कि एकता से समाज मज़बूत होता है और परिणाम स्वरूप सफ़ल होता है।
एकता की प्राप्ति के लिए क़ुरान कुछ सुझाव देता है और मुसलमानों से चाहता है कि वे उनका अनुसरण करें। एकता का सबसे महत्वपूर्ण कारण एक उद्देश्य है। इसीलिए क़ुरान मुसलमानों से कहता है कि इस्लाम धर्म पर पूर्ण रूप से ईमान लाने और इस्लामी शिक्षाओं के अनुसरण को अपना उद्देश्य बनालें और उसी की छाया में सफ़लता एवं एकता प्राप्त करें।
क़ुराने मजीद के अनुसार, एकता की प्राप्ति का एक दूसरा रास्ता आत्मा का शुद्धिकरण है। क़ुरान इंसानों से कहता है कि अपनी आत्मा का शुद्धिकरण करके समाज में एकता का प्रसार करें। बुरी आदतें जैसे कि द्वेष, घमंड, ईर्षा, ज़िद, प्रसिद्धता की भूख, दुनिया से प्रेम, पीठ पीछे बुरा भला कहना और झूठे आरोप लगाने से लोगों में आपस में फूट पड़ती है और मतभेद उत्पन्न होते हैं।
भलाई करना, दान देना, अनुशसित रहने और इसी तरह के दूसरे अच्छे कामों पर क़ुरान द्वारा बल देना वास्तव में एकता के कारणों पर बल दिय गया है। इसलिए कि जो लोग दूसरों के साथ भलाई से पेश आते हैं और अपना माल और जान भी न्योछावर कर देते हैं और ज़रूरतमंदों की सहायता करते हैं, वे एकता एवं मह्दयता के लिए उचित वातावरण उत्पन्न करते हैं। साथ ही क़ुरान इस बिंदु की ओर भी संकेत करता है कि भीतरी और बाहरी दुश्मन हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रहते हैं बल्कि वे कमज़ोर बिंदुओं एवं समस्याओं से लाभ उठाकर समाज में शत्रुता का बीज बोते रहते हैं और लोगों को आपस में लड़ाने की कोशिश करते रहते हैं।
हज़रत अली (अ) अपने काल में अपने साथियों के बीच मतभेदों की शिकायत करते हुए कहते हैं कि, ईश्वर की सौगंध इस वास्तविकता से इंसान का दिल मुर्दा हो जाता है और दुखों से भर जाता है कि सीरियाई लोग असत्य पर एकजुट हैं और तुम कि जो सत्य पर हो आपस में बंटे हुए हो। हज़रत अली (अ) ने जब यह बात कही उस समय मोआविया सीरिया का राज्यपाल था।
आज की दुनिया में डेढ़ अरब से अधिक मुसलमानों की जनसंख्या और कुछ इस्लामी देशों विशेष रूप से ईरान की प्रगति से साम्राज्यवाद ख़तरे का आभास कर रहा है। ऐसे शत्रु कि जिन्हें इस्लाम के उदय से ही मुस्लिम समुदाय की एकता से गंभीर क्षति पहुंची है, अब वे इस महान समुदाय के बीच फूट डालने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है कि वे इस्लामी देशों में वहाबियत जैसे भ्रष्ट एवं भ्रमित संप्रदायों का समर्थन कर रहे हैं और उन्हें बढ़ावा दे रहे हैं।
आज वहाबी संप्रदाय वास्तविक इस्लाम को नुक़सान पहुंचाने के लिए इस्राईल और पश्चिम का हथकंडा चुका है। यह भ्रमित संप्रदाय कि जो क़ुराने मजीद को अपनी धार्मिक किताब कहता है उसकी उत्कृष्टता प्रदान करने वाली आयतों पर कोई ध्यान नहीं देता और मुसलमानों के नरसंहार में दुश्मनों से आगे निकल चुका है। वहाबियों के लज्जाजनक इतिहास में हम देखते हैं कि इराक़, सीरिया, पाकिस्तान, यमन और अन्य मुस्लिम देशों में नृशंस हत्याएं और हिंसा निरंतर जारी है। इस संप्रदाय के भ्रष्ट होने के मूल कारणों में से एक क़ुराने मजीद की शिक्षाओं की उपेक्षा और उसकी आयतों में चिंतन मनन न करना है। इस बात के दृष्टिगत कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों का अनुसरण और उनकी शिक्षाएं क़ुराने मजीद को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, वहाबियों ने इन महान हस्तियों से दूरी करके वास्तव में ईश्वर की महानतम अनुकंपा से दूरी कर ली है और वे क़ुरान में चिंतन मनन से भी दूर हो गए हैं। यही कारण है कि वे कभी भी क़ुराने मजीद की आयतों का सही अर्थ नहीं समझ पाते हैं और मुसलमानों के साथ एकजुट नहीं हो पाते हैं। वहाबियों की मूल इस्लाम एवं क़ुराने मजीद से दूरी, पूर्वाग्रह, जातीवाद एवं रंगभेद हिंसा और सऊदी अरब, ब्रिटेन, अमरीका और उसके सहयोगियों की ओर से उनकी वित्तीय सहायता को इस संप्रदाय के भटकने का एक कारण माना जा सकता है जो इस्लाम में मतभेद उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं।
विश्व भर के मुसलमानों के बीच एकता स्थापित करना इस्लाम के मूल उद्देश्यों में से है, जिसका आधार क़ुराने मजीद की शिक्षाए और पैग़म्बरे इस्लाम (स) का आचरण है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए और इस्लामी समुदाय में एकता उत्पन्न करने के लिए धर्म के संयुक्त सिद्धांतों पर बल देना और ऐसी बातों से बचना ज़रूरी है कि जिनसे मतभेद उत्पन्न होते हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक ईमाम ख़ुमैनी ने क़ुराने मजीद की इस शिक्षा को बहुत ही आसान शब्दों में यूं बयान किया है कि, इस्लाम का आदे है, सब एक साथ समस्त संप्रदाय एक साथ अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम कर महान ईश्वर पर भरोसा करके सब आगे बढ़ें, ईश्वर के इस आदेश की अवहेलना अपराध है, पार है। इस्लाम का आदेश है कि सभी अल्लाह की रस्सी को थामें, समस्त समुदाय और सरकारें अगर चाहती हैं कि समस्त आयामों के साथ इस्लामी उद्देश्यों को प्राप्त करें तो उन्हें चाहिए कि अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लें, मतभेदों और फूट डालने से बचें और अल्लाह के आदेश का पालन करें।
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