ग़ुस्ले जनाबत

ग़ुस्ले जनाबत

* ग़ुस्ले जनाबत वाजिब नमाज़ पढ़ने और ऐसी ही दूसरी इबादतों के लिए वाजिब हो जाता है, लेकिन नमाज़े मय्यित,सजदा-ए-सह्व, सजद-ए-शुक्र और कुरआने मजीद के वाजिब सजदों के लिए ग़ुस्ले जनाबत ज़रूरी नही है।

* ज़रूरी नही है कि इंसान ग़ुस्ल के वक़्त नियत करे कि वाजिब ग़ुस्ल कर रहा हूँ, बल्कि अगर अल्लाह की कुरबत के इरादे से ग़ुस्ल करे तो काफ़ी है।

* अगर किसी इंसान को यक़ीन हो कि नमाज़ का वक़्त हो गया है और वह वाजिब की नियत से ग़ुस्ल कर ले, बाद में मालूम हो कि अभी नमाज़ का वक़्त नही हुआ है तो उसका ग़ुस्ल सही है।

* ग़ुस्ले जनाबत करने के दो तरीक़े हैं। (अ) तरतीबी (आ) इरतेमासी।

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