बलात्कार और उसकी सज़ा

बलात्कार और उसकी सज़ा

ख़ैबर के यहूदियों के शरीफ़ों में से एक विवाहित मर्द और विवाहित औरत ने बलात्कार किया। इसकी सज़ा तौरात में संगसार करना थी। यह उन्हें गवारा ना था। इसलिये उन्होंने चाहा कि इस मुक़द्दमें का फ़ैसला हुज़ूरे अकरम (स.) से कराऐं।

चुनांचे इन दोनों मुजरिमों को एक जमाअत के साथ मदीना भेजा गया और कह दिया कि अगर हुज़ूर हद का हुक्म दें, तो मान लेना और संगसार करने का हुक्म दें, तो मत मानना।

वो लोग बनी क़ुरैज़ा और बनी नुज़ैर के यहूदियों के पास आए और ख़्याल किया कि ये हुज़ूर के हम-वतन हैं और उनके साथ आपकी सुलह भी है। उनकी सिफ़ारिश से काम बन जाएगा। चुनांचे यहूदियों के सरदारों में से कअब बिन अशरफ़ व कअब बिन असद व सईद बिन अम्र व मालिक बिन सैफ़ व किनाना बिन अबिलहक़ीक वग़ैरह, उन्हें लेकर हुज़ूर की ख़िदमत में हाज़िर हुए और मसअला दरियाफ़्त किया।

हुज़ूर ने फ़रमाया, क्या मेरा फ़ैसला मानोगे? उन्होंने इक़रार किया और तब आयते रज्म उतरी और संगसार करने का हुक्म दिया गया।

यहूदियों ने इस हुक्म को मानने से इन्कार किया। हुज़ूर ने फ़रमाया कि तुम में एक जवान गोरा काना फ़िदक का रहने वाला, इब्ने सूरिया नाम का है। तुम उसको जानते हो। कहने लगे, हाँ! फ़रमाया, वह कैसा आदमी है? कहने लगे कि आज धरती पर यहूदियों में उसकी टक्कर का आलिम नहीं। तौरात का अकेला आलिम है। फ़रमाया, उसको बुलाओ। चुनांचे बुलाया गया। जब वह हाज़िर हुआ, तो हुज़ूर ने फ़रमाया, यहूदियों में सबसे बड़ा आलिम तू ही है? अर्ज़ किया, लोग तो ऐसा ही कहते हैं।

हुज़ूर ने यहूद से फ़रमाया। इस मामले में इसकी बात मानोगे? सब ने इक़रार किया। तब हुज़ूर ने इब्ने सूरिया से फ़रमाया, मैं तुझे अल्लाह की क़सम देता हूँ, जिसके सिवा कोई मअबूद नहीं, जिसने हज़रत मूसा पर तौरात उतारी और तुम लोगों को मिस्र से निकाला, तुम्हारे लिये दरिया में रास्ते बनाए, तुम्हें निजात दी, फिर औनियों को डूबोया, तुम्हारे लिये बादल को सायबान बनाया, मन्न व सलवा उतारा, अपनी किताब नाज़िल फ़रमाई, जिसमें हलाल हराम का बयान है। क्या तुम्हारी किताब में ब्याहे मर्द व औरत के लिये संगसार करने का हुक्म है?

इब्ने सूरिया ने अर्ज़ किया, बेशक है, उसी की क़सम! जिसका आपने मुझसे ज़िक्र किया, अज़ाब नाज़िल होने का डर ना होता, तो मैं इक़रार ना करता और झूट बोल देता, मगर यह फ़रमाइये कि आपकी किताब में इसका क्या हुक्म है?

फ़रमाया जब चार सच्चे और भरोसे वाले गवाहों की गवाही से खुले और बलात्कार साबित हो जाए, तो संगसार करना वाजिब हो जाता है।

इब्ने सूरिया ने अर्ज़ किया। अल्लाह की क़सम ऐसा ही तौरात में है। फिर हुज़ूर ने इब्ने सूरिया से दरियाफ़्त किया कि अल्लाह के हुक्म में तबदीली किस तरह वाक़े हुई?

उसने अर्ज़ किया कि हमारा दस्तूर यह था कि हम किसी शरीफ़ को पकड़ते, तो छोड़ देते और ग़रीब आदमी पर हद क़ायम करते। इस तरह शरीफ़ों में बलात्कार बहुत बढ़ गया, यहाँ तक कि एक बार बादशाह के चचाज़ाद भाई ने बलात्कार किया, तो हमने उसको संगसार ना किया, फिर एक दूसरे शख़्स ने अपनी क़ौम की औरत के साथ बलात्कार किया, तो बादशाह ने उसको संगसार करना चाहा। उसकी क़ौम उठ खड़ी हुई और उन्होंने कहा कि जब तक बादशाह के चचाज़ाद भाई को संगसार ना किया जाए, उस वक़्त तक इसको हर्गिज़ संगसार ना किया जाएगा। तब हमने जमा होकर ग़रीब शरीफ़ सबके लिये संगसार करने के बजाय यह सज़ा निकाली कि चालीस कोड़े मारे जाएं और मुंह काला करके गधे पर उलटा बिठाकर घुमाया जाए।

यह सुनकर यहूदी बहुत बिगड़े और इब्ने सूरिया से कहने लगे, तूने हज़रत को बड़ी जल्दी ख़बर दे दी और हमने जितनी तेरी तारीफ़ की थी, तू उसका हक़दार नहीं। इब्ने सूरिया ने कहा कि हुज़ूर ने मुझे तौरात की क़सम दिलाई, अगर मुझे अज़ाब के नाज़िल होने का डर ना होता, तो मैं आपको ख़बर ना देता। इसके बाद हुज़ूर के हुक्म से उन दोनों बलात्कार करने वालों को संगसार किया गया।

बदकारी की सुरक्षा के लिये इस्लाम ने दो तरह के इंतेज़ामात किये हैं: एक तरफ़ इस रिश्ते की ज़रूरत और अहमियत और उसकी सानवी शक्ल की तरफ़ इशारा किया है तो दूसरी तरफ़ उन तमाम रास्तो पर पाबंदी लगा दी है जिसकी वजह से यह रिश्ता ग़ैर ज़रुरी या ग़ैर अहम हो जाता है और मर्द को औरत या औरत को मर्द की ज़रूरत नही रह जाती है। इरशाद होता हैः

ولا تقربوا الزنا انه کان فاحشه و ساء سبيلا (سوره اسراء)

(और ख़बरदार बलात्कार के क़रीब भी न जाना कि यह खुली हुई बे हयाई और बदतरीन रास्ता है)

इस आयत में बलात्कार की दोनों बुराईयों की वज़ाहत की गई है कि शादी के मुमकिन होते हुए और उसके क़ानून के रहते हुए बलात्कार और बदकारी एक खुली हुई बे हयाई है कि यह ताअल्लुक़ उन्हीं औरतों से क़ायम किया जाये जिन से निकाह हो सकता है तो भी क़ानून से ख़िलाफ़ काम करना या इज़्ज़त से खेलना एक बेग़ैरती है और अगर उन औरतों से रिश्ता क़ायम किया जाये जिन से निकाह मुमकिन नहीं है और उनका कोई पवित्र रिश्ता पहले से मौजूद है तो यह और भी ज़्यादा बेहयाई है कि इस तरह उस रिश्ते की भी तौहीन होती है और उसकी पवित्रता भी पामाल होती है।

फिर और भी ज़्यादा वज़ाहत के लिये इरशाद होता हैः

ان الذين يحبون ان تشيع الفاحشه فی الذين آمنوا لهم عذاب الهم (سوره نور)

(जो लोग इस बातो को दोस्त रखते हैं कि ईमान वालों के दरमियान बदकारी और बे हयाई फ़ैलाएँ तो उन के लिये दर्दनाक अज़ाब (सज़ा) है।)

जिसका मतलब यह है कि इस्लाम इस क़िस्म के जरायम को आम करने और उसके फ़ैलाने दोनो को नापसंद करता है इसलिये कि इस तरह से एक तो एक इंसान की इज़्ज़त ख़तरे में पड़ जाती है और दूसरी तरफ़ ग़ैर मुतअल्लिक़ लोग में ऐसे जज़्बात पैदा हो जाते हैं और उनमें जरायम को आज़माने और उसका तजरुबा करने का शौक़ पैदा होने लगता है जिस का वाज़ेह नतीजा आज हर निगाह के सामने है।

कि जबसे ज़्यादा फ़िल्मों और टी वी के ज़रिये जिन्सी मसायल को बढ़ावा मिलने लगा है हर क़ौम में बे हयाई में इज़ाफ़ा हो गया है और हर तरफ़ उसका दौर दौरा हो गया है और हर इंसान में उसका शौक़ पैदा हो गया है जिसका मुज़ाहरा सुबह व शाम क़ौम के सामने किया जाता है और उसका बदतरीन नतीजा यह हुआ है कि पच्छिमी समाज में सड़कों पर खुल्लम खुल्ला वह हरकतें हो रही हैं जिन्हें आधी रात के बाद फ़िल्मों के ज़रिये से पेश किया जाता है और उनके अपने गुमान के अनुसार अख़लाक़ियात का पूरी तरह से ख़्याल रखा जाता है और हालात इस बात की निशानदही कर रहे हैं कि आने वाला समय उससे भी ज़्यादा बद तर और भयानक हालात साथ लेकर आ रहा है और इंसानियत मज़ीद ज़िल्लत के किसी गढ़े में गिरने वाली है। क़ुरआने मजीद ने उन्हा ख़तरों को देखते हुए ईमान वालों के दरमियान इस तरह के बढ़ावे को मना और हराम क़रार दिया है ताकि एक दो लोगों की बहक जाना सारे समाज पर असर न डाल सके और समाज तबाही और बर्बादी का शिकार न हो। अल्लाह तआला ईमान वालों को इस बला से बचाये रखे।

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