नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा-145 का हिन्दी अनुवाद

नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा-145 का हिन्दी अनुवाद

नबी को भेजे जाने का मक़सद

अल्लाह सुब्हानहू ने मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को हक़ के साथ भेजा ताकि उस के बन्दों को मोहकम व वाज़ेह क़ुरआर के ज़रिए बुतों की परस्तिश की इताअत से अल्लाह की इताअत की तरफ़ निकाल ले जायें, ताकि बन्दें अपने पर्वरदिगार से जाहिलो बेखबर रहने के बाद उसे जान लें। हठधर्मी और इन्कार के बाद उस के वजूद का यक़ीन और उस का इक़्रार करें। अल्लाह उन के सामने, बग़ैर इस के कि उसे देखा हो, क़ुदरत की उन निशानियों की वजह से जलवा तराज़ है, कि जो उस ने अपनी किताब में दिखाई हैं और अपनी सित्वतो शौकत की क़हरमानियों से नुमायां है कि जिन से डराया है। और देखने की बात यह है कि जिन्हें उसे मिटाना था उन्हें किस तरह अपनी उक़्बतों से मिटा दिया, और जिन्हें तहस नहस करना था उन्हें क्यों कर अपने अज़ाबों से तहस नहस कर दिया।

पैग़म्बर के बाद क़ुरआन का हाल

मेरे बाद तुम पर एक ऐसा दौर आने वाला है जिस में हक़ बहुत पोशीदा और बातिल बहुत नुमायं होगा, और अल्लाह व रसूल (स.) पर इफ़तिरा पर्दाज़ी का ज़ोर होगा। उस ज़माने वालों के नज़्दीक क़ुरआन से ज़ियादा बे क़ीमत कोई चीज़ न होगी। जब कि उसे इस तरह पेश किया जाए जैसे पेश करने का हक़ है। और इस क़ुरआन से ज़ियादा उन में कोई मक़बूल व क़ीमती चीज़ नहीं होगी, उस वक्त जब कि उस की आयतों का बेमहल इस्तेमाल किया जाए। और न उन के शहरों में नेकी से ज़ियादा कोई बुराई और बुराई से ज़ियादा कोई नेकी होगी। चुनांचे क़ुरआन का बार उठाने वाले उसे फ़ेक कर अलग करेंगे और हिफ़्ज़ करने वाले उस की तअलीम भुला बैठेंगे। और क़ुरआन और क़ुरआन वाले (अहलेबैत) बे घर व बे दर होंगे और एक ही राह में एक दूसरे के साथी होंगे। उन्हें कोई पनाह देने वाला न होगा। वह बज़ाहिर लोगों में होंगे मगर अलग थलग। उन के साथ होंगे मगर बे तअल्लुक़। इल लिये कि गुमराही हिदायत से साज़गार नहीं हो सकती, अगरचे वह यक्जा हों। लोगों ने तफ़रिक़ा पर्दाज़ी पर तो इत्तिफ़ाक़ कर लिया है और जमाअत से कट गए हैं, गोया कि वह किताब के पेशवा हैं किताब उन की पेशवा नहीं। उन के पास तो क़ुरआन का नाम रह गया है और सिर्फ़ उस के ख़ुतूतो नुक़ूश (लेख व चिन्हों) को पहचान सकते हैं। उस आने वाले दौर से पहले वह नेक बन्दों को तरह तरह की अज़ीयतें पहुंचा चुके होंगे और अल्लाह के मुतअल्लिक़ उन की सच्ची बोतों का नाम भी बोह्तान रख दिया होगा और नेकियों के बदले में उन्हें बुरी सज़ायें दी होंगी।

लोगों की बर्बादी का कारण

तुम में पहले लोगों की तबाही का सबब यह है कि वह उम्मीदों के दामन फैलाते रहे और मौत को नज़रों से ओझल समझा किये। यहां तक कि जब वअदा की हुई मौत आ गई तो उन की मअज़िरत को ठुकरा दिया गया, और तौबा उठा ली गई और मुसीबत व बला उन पर टूट पड़ी।

ईश्वर से मोहब्बत करने वाला ही कामियाब है

ऐ लोगों! जो अल्लाह से नसीहत चाहे उसे ही तौफ़ीक़ नसीब होती है, और जो उस के इर्शादात को रहनुमा बनाए वह सीधे रास्ते पर हो लेता है। इस लिये कि अल्लाह की हमसायगी (पड़ोस) में रहने वाला अम्नो सलामती में है और उस का दुशमन ख़ौफ़ो हिरास में। जो अल्लाह की अज़मतो जलाल को पहचान ले उसे किसी तरह ज़ेब (शोभा) नहीं देता कि वह अपनी अज़मत की नुमाईश (प्रदर्शन) करे। चूंकि जो उस की अज़मत को पहचान चुके हैं उन की रिफ़अत व बलन्दी इसी में है कि उस के आगे झुक जायें और जो उस की क़ुदरतको जान चुके हैं उन की सलामती इसी में है कि उस के आगे सरे तस्लीम ख़म कर दें। हक़ से इस तरह भड़क न उठो जिस तरह सहीह व सालिम ख़ारिश ज़दा से, या तन्दुरुस्त बीमार से। तुम हिदायत को उस वक्त तक न पा सकोगे जब तक उस के छोड़ने वालों को न पहचान लो। और क़ुरआन के अहदो पैमान के पाबन्द न रह सकोगे जब तक कि उस के तोड़ने वाले को न जान लो, और उस से वाबस्ता नहीं रह करते जब तक उसे दूर फेंकने वालों की शनाख्त न कर लो। जो हिदायत वाले हैं उन्हीं से हिदायत तलब करो, वही इल्म की और ज़िन्दगी और हिदायत की मौत हैं। वह ऐसे लोग हैं कि जिन का दिया हुआ हर हुक्म उन के इल्म का और उन की ख़ामोशी उन की गोयाई का पता देगी, और उन का ज़ाहिर उन के बातिन का आईना दार है। वह न दीन की मुख़ालिफ़त करते हैं न उस के बारे में बाहम इख़तिलाफ़ (परस्पर विरोध) रखते हैं। दीन उन के सामने एक सच्चा गवाह है और एक ऐसा बे ज़बान है जो बोल रहा है।

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