नमाज़ को सम्मान करने वाले की अल्लाह भी करता है प्रशंसा
नमाज़ को सम्मान करने वाले की अल्लाह भी करता है प्रशंसा
क़ुरआने करीम के सूरए नूर की 37वी आयत में अल्लाह ने उन हज़रात की तारीफ़ की है जो अज़ान के वक़्त अपनी तिजारत और लेन देन के कामों को छोड़ देते हैं। (1)
ईरान के साबिक़ सद्र शहीद रजाई कहा करते थे कि नमाज़ से यह न कहो कि मुझे काम है बल्कि काम से कहो कि अब नमाज़ का वक़्त है।
ख़ास तौर पर जुमे की नमाज़ के लिए हुक्म दिया गया है कि उस वक़्त तमाम लेन देन छोड़ देना चाहिए। लेकिन जब नमाज़े जुमा तमाम हो जाए तो हुक्म है कि अब अपने कामो को अंजाम देने के लिए निकल पड़ो। यानी कामों के छोड़ने का हुक्म थोड़े वक़्त के लिए है।
ये भी याद रहे कि तब्लीग़ के उसूल को याद रखते हुए लोगों की कैफ़ियत का लिहाज़ रखा गया है। क्योंकि तूलानी वक़्त के लिए लोगों से नही कहा जा सकता कि वह अपने कारोबार को छोड़ दें। लिहाज़ा एक ही सूरह( सूरए जुमुआ) मे कुछ देर कारोबार बन्द करने के ऐलान से पहले फ़रमाया कि “ऐ ईमान वालो” ये ख़िताब एक क़िस्म का ऐहतेराम है। उसके बाद कहा गया कि जिस वक़्त अज़ान की आवाज़ सुनो कारो बार बन्द करदो न कि जुमे के दिन सुबह से ही। और वह भी सिर्फ़ जुमे के दिन के लिए कहा गया है न कि हर रोज़ के लिए और फ़िर कारोबार बन्द करने के हुक्म के बाद फ़रमाया कि “ इसमे तुम्हारे लिए भलाई है” (2)
आखिर मे ये भी ऐलान कर दिया कि नमाज़े जुमा पढ़ने के बाद अपने कारो बार मे फिर से मशगूल हो जाओ। और “नमाज़” लफ़्ज़ की जगह ज़िकरुल्लाह कहा गया है इससे मालूम होता है कि नमाज़ अल्लाह को याद करने का नाम है।
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(1) رِجَالٌ لَّا تُلْهِيهِمْ تِجَارَةٌ وَلَا بَيْعٌ عَن ذِكْرِ اللَّـهِ وَإِقَامِ الصَّلَاةِ وَإِيتَاءِ الزَّكَاةِ
(2) يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا نُودِيَ لِلصَّلَاةِ مِن يَوْمِ الْجُمُعَةِ فَاسْعَوْا إِلَىٰ ذِكْرِ اللَّـهِ وَذَرُوا الْبَيْعَ ۚ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ
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