ऐ ग़ैरते मरयम तेरा बाज़ार में आना
ऐ ग़ैरते मरयम तेरा बाज़ार में आना
न भूल सकेगा इसे ता हश्र ज़माना
आह ज़ैनबो कुलसूम की छिनती हैं रिदाएं
जाओ अरे लोगों मेरे ग़ाजी़ को बुलाना
तू दुख़्तरे ज़हरा है नवासी है नबी की
सर नंगे तेरा शाम के बाज़ार में जाना
कनीज़े यतीमान जो गिरी लाश पे रोकर
कहता है शिम्र लाश पे आँसू न बहाना
अब ख़ाक पे सोएगी सकीना तेरी कैसे
था तूने सिखाया उसे सीने पे सुलाना
मर जाय जो शौहर तो पनाह देते हैं भाई
कुबरा कहां जाए न रहा कोई ठिकाना
उठती नहीं बाबा से तेरी लाश अली अकबर
था तूने ही बेटे मेरे लाशे को उठाना
जिस दर पे सलामी दिया करते थे शब्बीर
रुक जाओ मुसलमानों वही घर न जलाना
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