अल्लाह को याद करने का महत्व

अल्लाह को याद करने का महत्व

इंसान की प्रगति एवं उत्कृष्टता में अल्लाह की याद और उसके नाम को जपने की भूमिका

ईश्वर से संपर्क स्थापित करने का एक बेहतरीन रास्ता उसका नाम जपना है। इसका अर्थ है उसे याद करना और उसका नाम जपना। ईश्वर की याद से दिल साफ़ होता है मन से अहम की भावना दूर होती है। यही कारण है कि ज़िक्र अर्थात अल्लाह का नाम जपने को पैग़म्बरों और क़ुरान की विशेषता बताया गया है। क़ुराने मजीद के सूरए तलाक़ की 10वीं और 11वीं आयतों में उल्लेख है कि अल्लाह ने तुम्हारे लिए ज़िक्र भेजा ताकि तुम्हारे लिए आयतों की तिलावत करे अर्थात पढ़े।

इसी प्रकार, क़ुरान का एक नाम ज़िक्र है, जिसकी ओर सूरए हिज्र की नवीं आयत में इशारा किया गया है, हमने तुम्हारे ऊपर उतारा है और हम उसकी सुरक्षा करेंगे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) और क़ुरान को ज़िक्र नाम देने का कारण यह है कि दोनों ही ईश्वर की याद का कारण बनते हैं, और मन से उपेक्षा एवं भूलने को दूर करके उस पर ईश्वरीय प्रकाश की किरने बखेरते हैं। वास्तव में ज़िक्र ऐसा प्रकाश है जो मन को अंधेरे, निराशा और कट्टरता से मुक्ति दिलाता है और उसे ताज़गी प्रदान करता है। ज़िक्र के इस लाभ को हज़रत अली (अ) इस तरह बयान फ़रमाते हैं, अल्लाह ने अपनी याद को दिलों के लिए इस प्रकार प्रकाश क़रार दिया कि उसके कारण बहरे पन के बावजूद कान सुनते हैं और प्रकाश नहीं होने के बावजूद आँखे देखती हैं, यही कारण है कि इंसान शत्रुता के बावजूद नर्म पड़ जाता है।

अल्लाह का का नाम जपने और उसे याद करने से मन को शांति प्राप्त होती है। वास्तव में ईश्वर की याद, निराशा एवं मानसिक तनाव की आध्यात्मिक दवा है। ऐसा तनाव कि जो मानव की शांति प्रेमी प्रवृत्ति के विरुद्ध है और मानसिक एवं आत्मिक रोगों का कारण बनता है। शांति प्रेम मानव प्रवृत्ति में शामिल है, और इंसान बहुत से काम वास्तव में इस आंतरिक इच्छा के कारण अंजाम देता है। इंसान अपने जीवन में शांति और सुख प्राप्ति के लिए प्रयास करता है, और ऐसा सभी करते हैं। हालांकि जीवन को शांति एवं सुख प्रदान करने वाली चीज़ों के बारे में मतभेद पाए जाते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि धन दौलत इक्ट्ठा करने से सुख एवं शांति प्राप्त होती है, कुछ लोग पद और प्रसिद्धि में तो कुछ लोग काम वासना में सुख खोजते हैं। इसके विपरीत क़ुराने मजीद सुख और शांति को ईश्वर की याद में क़रार देता है जैसा कि सूरए रअद की 28वीं आयत में उल्लेख है, जान लो कि केवल अल्लाह का ज़िक्र करने से मन को शांति प्राप्त होती है।

ईश्वर का नाम जपने और उसे याद करने का एक और लाभ बुद्धिमत्ता की प्राप्ति है। ज़िक्र से इंसान के समझने की योग्यता में वृद्धि होती है, इसलिए कि ईश्वर ज़िक्र करने वालों की सहायता करता है। क़ुराने मजीद कि जो ख़ुद ईश्वर का उच्चतम रूप से ज़िक्र करता है अपनी विभिन्न आयतों में चिंतन मनन का आदेश देता है। वास्तव में ईश्वर ने चिंतन मनन को अपने ज़िक्र और याद का पूरक क़रार दिया है और इंसानों से उनकी सृष्टि एवं इर्द गिर्द के वातावरण में सोच विचार का आहवान करता है। सूरए आले इमरान की 191वीं आयत में बुद्धिमानी लोगों की विशेषता बयान करते हुए ईश्वर कहता है, वे लोग ईश्वर को खड़े होने, बैठने और करवट से लेटने की अवस्था में याद करते हैं, ज़मीन और आसमानों की रचना के रहस्यों में चिंतन मनन करते हैं और कहते हैं, तूने यह सब कुछ व्यर्थ पैदा नहीं किया है, तू पाक व साफ़ है हमें नरक के परकोप से बचा।

इस आयत के मुताबिक़, बुद्धिमानों की सबसे पहली विशेषता हर हाल में ईश्वर को याद करना है। इस आयत की दृष्टि से बुद्धिमान लोग एक पल भी ईश्वर को याद करना नहीं भूलते। उनका मानना है कि वह हर जगह है और हम हर समय उसकी सेवा में उपस्थित हैं। वे कहीं भी हों, काम में व्यस्त हों, मनोरंजन स्थल पर हों, किसी गली या सड़क पर हों, घर में हों या जंगल में कहीं भी ईश्वर को याद करना नहीं भूलते। सूरए नूर की 37वीं आयत में उल्लेख है कि ऐसे लोग भी हैं कि जिन्हें व्यापारिक गतिविधियां भी ईश्वर की याद से नहीं रोकतीं। ऐसे लोग जहां भी होते हैं और जिस काम में भी व्यस्त होते हैं, मानो ईश्वर की उपासना कर रहे होते हैं और उसे याद कर रहे होते हैं। उनका शरीर तो दुनिया के कामों में व्यस्त होता है लेकिन उनका अंग अंग, मन और आत्मा ईश्वर की याद में होती है।

सूरए आले आले इमरान की 191वीं आयत के दूसरे भाग में उल्लेख है कि बुद्धिजीवी ईश्वर की रचना के बारे में कहते हैं कि, हे ईश्वर तूने इसे व्यर्थ पैदा नहीं किया है, तू पाक व साफ़ है, हमें नरक के परकोप से बचा। वास्तव में आयत के इस भाग में बुद्धिजीवियों की दूसरी विशेषता बयान की गई है जो चिंतन मनन है। इस्लाम में चिंतन मनन को बहुत महत्व दिया गया है और उसकी सिफ़ारिश की गई है। इसलिए इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि क़ुरान की दृष्टि में ईश्वर की याद के बाद चिंतन मनन को महत्व दिया गया है। क़ुराने मजीद के अलावा ईश्वरीय दूतों और इस्लाम की महान हस्तियों ने भी चिंतन मनन के महत्व का उल्लेख करते हुए इस पर काफ़ी बल दिया है।

उदाहरण स्वरूप इमाम हसन असकरी (स) फ़रमाते हैं, बंदगी और उपासना का मानदंड, अधिक रोज़े रखना और नमाज़ें पढ़ना नहीं है, बल्कि उपासना अधिक चिंतन करना और ईश्वर की महत्वपूर्ण निशानियों के बारे में सोच विचार करना है। सूरए ज़ुम्र की 17वीं और 18वीं आयत में उल्लेख है कि मेरे बंदों को शुभ सूचना दो, वे लोग जो बात सुनते हैं और अच्छी बातों का अनुसरण करते हैं। वे वह लोग हैं जिनका ईश्वर ने मार्गदर्शन किया है और वे बुद्धिजीवी हैं। इन आयतों में अल्लाह ने बुद्धिजीवियों की एक दूसरी स्पष्ट विशेषता की ओर संकेत किया है। और वह ढेर सारी बातों के बीच से अच्छी बात का चयन करता है। बुद्धिजीवी के लिए कहने वाले से अधिक बात का महत्व होता है। जब भी वह अच्छी बात सुनता है उसे स्वीकार करता है, यद्यपि स्पष्ट रूप में स्वीकार्य न हो। इसलिए कि वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) की इस हदीस पर विश्वास रखता है कि, ज्ञान और बुद्धिमत्ता मोमिन की खोई हुए चीज़ें हैं, जहां कहीं भी उन्हें पाता है, ले लेता है।

एक बुद्धिजीवी ज्ञानपूर्ण बात का स्वागत करता है यद्यपि वह ऐसे किसी व्यक्ति की ओर से हो जिसके साथ वैचारिक मतभेद हों। इसलिए कि उसकी नज़र में ज्ञान पर आधारित बातें उन हीरे मोतियों की तरह हैं जो बुरे लोगों की गंदगी में फंसे हुए हैं। हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं, सही ज्ञान मोमिन की खोई हुई चीज़ है, उसे प्राप्त करो और सीखो, यद्यपि वह काफ़िरों के पास ही क्यों न हो।

अंत में इस बिंदु की ओर भी इशारा करते चलें कि चिंतन मनन उड़ान भरने के लिए दो पंख हैं, उनमें से किसी भी एक के अभाव में उड़ान भरना संभव नहीं होगा। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसा व्यक्ति कि जो केवल ईश्वर की याद में लीन रहता है लेकिन चिंतन मनन नहीं करता, उसे संपूर्ण इंसान एवं बुद्धिजीवी नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार जो व्यक्ति केवल चिंतन मनन करता है और ईश्वर को भूल जाता है, उसे बुद्धिजीवी नहीं कहा जा सकता। अगर हम मानव इतिहास पर नज़र डालेंगे तो देखेंगे कि अधिकतर मानव समाज के लिए उत्पन्न होने वाली समस्याएं इन दो में से किसी एक की उपेक्षा का परिणाम हैं। जो लोग केवल ज़िक्र करते रहे या केवल चिंतन मनन में डूबे रहे वे न केवल अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचे बल्कि सही मार्ग से भटक गए। जिन लोगों ने ज़िक्र और ईश्वर की याद को चिंतन मनन से अलग किया और केवल उसकी याद में लीन रहे और उसका नाम जपते रहे उन लोगों ने इस्लामी समाज में ग़लत रहस्यवाद और सूफ़ीवाद को प्रचलित किया और लोगों को एकांतवास एवं सन्यास की ओर बुलाया है। इसके विपरीत कुछ लोगों ने इंसान के लिए चिंतन मनन को काफ़ी समझा और अल्लाह के ज़िक्र और उसकी याद की उपेक्षा की। ऐसे लोग भौतिकवाद की घाटी में गिर पड़े।

केवल इतना ही नहीं बल्कि उनमें से कुछ लोग भौतिकवाद में इतना ग्रास्त हो गए कि उन्होंने अपनी संपूर्ण क्षमताओं को भौतिक चीज़ों में झोंक दिया और हर चीज़ को भौतिकवाद पर परखा, इसलिए वे ऐसा भटके कि ईश्वर के अस्तित्व से ही इनकार कर बैठे।          

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