नबियों का हर प्रकार के पाप और भूल चूक से मासूम होना

नबियों का हर प्रकार के पाप और भूल चूक से मासूम होना

हम पिछले लेख में पढ़ चुके हैं कि नबियों के आने का मक़सद लोगों की हिदायत व रहबरी है और यह बात भी अपनी जगह साबित है कि अगर ख़ुद रहबर और मार्गदर्शक गुनाहों में फंसे हों तो वह अपनी क़ौम का मार्गदर्शन नही कर सकते और उन्हे नेकी और पवित्रता की तरफ़ दावत नही दे सकते। हर नबी के लिये ज़रुरी है कि वह सब से पहले इस तरह लोगों का विश्वास प्राप्त करे कि उसकी कथनी और करनी में गल्ती और पाप का ऐहतेमाल भी न दिया जाये, अगर नबी मासूम न हो तो दुश्मन उन की ग़लती और पाप को आधार बना कर और दोस्त उन की दावत को आधारहीन समझ कर दीन को स्वीकार नही करेगें। इसलिए ज़रुरी है कि अल्लाह के नबी मासूम हों यानी हर प्रकार की ग़लती और भूल चूक से पाक हों ता कि लोग उनका अनुसरण करते हुए सौभाग्य एवं ख़ुशियों की मंज़िलों तक पहुचें।

यह कैसे संभव है कि ख़ुदा बिना किसी शर्त किसी इंसान के अनुसरण का हुक्म दे दे जबकि उसके अंदर गल्ती की संभावना व ऐहतेमाल भी पाया जाता हो? ऐसी सूरत में क्या लोगों को उस का अनुसरण एवं पैरवी करना चाहिये? अगर अनुसऱण करें तो गोया उन्होने एक गल्ती करने वाले का अनुसरण किया है और अगर न करें तो नबियों की रहबरी बे मक़सद हो जायेगी।

यही वजह है कि मुफ़स्सेरीन जब आयत

اطیعوا الله واطیعوا الرسول و اولی الامر منکم

इताअत करो ख़ुदा की और इताअत करो रसूल और उलिल अम्र की, (सूर ए निसा आयत 59)

पर पहुचते हैं तो कहते हैं कि ख़ुदा ने बिना किसी क़ैद व शर्त रसूल की इताअत का हुक्म दिया है और यह इस बात की दलील है कि रसूल भी मासूम हैं और उलिल अम्र यानी आइम्म ए मासूमीन (अ) भी वर्ना ख़ुदा कदापि बिना क़ैद व शर्त उनका अनुसरण करने का हुक्म नही देता।

नबियों की इस्मत और उनके हर प्रकार के पाप एवं गल्ती से पवित्र होने को साबित करने का एक रास्ता यह है कि हम ख़ुद को देखें, जब हम अपने अंदर ग़ौर व फ़िक्र करेंगे तो देखेंगे कि हम भी बाज़ गुनाहों या गंदे और बुरे कामों में मासूम हैं जैसे क्या कोई अक़्लमंद इंसान टायलेट की गंदगी या कूढ़ा करकट खा सकता है? क्या कोई समझदार इंसान बिजली के नंगे तार को छू सकता है? क्या कोई समझदार और सभ्य इंसान नंगा हो कर सड़क व बाज़ार में आ सकता है? ऐसे बहुत से दूसरे सवाल जिनका जवाब नही में होगा यानी ऐसे काम समझदार लोग कभी नही करेंगे और अगर कोई शख़्स ऐसे काम अंजाम दे तो यक़ीनन या तो वह दीवाना होगा या फ़िर किसी मजबूरी में वह कार्य अंजाम दे रहा होगा।

जब हम ऐसे कामों पर ध्यान देते हैं तो मालूम होता है कि इन कामों की बुराई हमारे लिये इतनी वाज़ेह और स्पष्ट है कि हम उसे अंजाम नही दे सकते।

इस मक़ाम पर पहुँचने के बाद हम यह कह सकते हैं कि हर अक़्ल मंद व समझदार इंसान बाज़ गंदे और बुरे कामों से महफ़ूज़ है यानी एक तरह की इस्मत रखता है ।

इस मरहले से गुज़रने के बाद हम देखते है कि बाज़ लोग बहुत से दूसरे कामों को भी अंजाम नही देते हैं जबकि आम लोगों के लिये वह मामूली सी बात होती है जैसे एक माहिर और जानकार डाँक्टर जो हर तरह के जरासीम के बारे में जानता है, हरगिज़ इस बात पर राज़ी नही होगा कि सड़क पर लगे नल का गंदा पानी पिये जब्कि संभव है कि एक आम इंसान उस पानी को हमेशा पिये और उस में किसी तरह की घिन का अहसास भी न करे।

इससे मालूम होता है कि इंसान का ज्ञान जितना ज़्यादा होगा वह उतना ही बुरे और गंदे कामों से दूर रहेगा लिहाज़ा अगर किसी का ज्ञान और उसका ईमान इतना ज़्यादा बुलंद हो जाये और ख़ुदा पर उसका यक़ीन इतना अधिक हो जाये कि वह समझने लगे कि ईश्वर हर स्थान पर उसको देख रहा है और उसके कार्यों पर नज़र रखे हुए है तो यक़ीनन ऐसा शख़्स बुराई से दूर होगा, अब उसके सामने हर बुरा काम और हर गुनाह टायलेट की गंदगी, कूड़ा करकट खाने, बिजली के नंगे तार को छूने या कूचे व बाज़ार में बिल्कुल नग्न होने के जैसा होगा ।

इन तमाम बातों का नतीजा यह हुआ कि हमारे अंबिया अपने बे पनाह ज्ञान और असीमित ईमान की वजह से गुनाहों और हर तरह की भूल चूक से महफ़ूज़ हैं और कभी भी गुनाहों के कारण उन पर ग़लबा हासिल नही कर सकते और यही अंबिया के मासूम होने का अर्थ है।

सारांश

-          अंबिया ए इलाही (अ) का मासूम होना लाज़मी है इस लिये कि :

1.  जो शख़्स ख़ुद गुनाह अंजाम देता हो उसमें ग़ल्ती की संभावना हो वह दूसरों की हिदायत नही कर सकता।

2. ख़ुदा ऐसे शख़्स का बिना क़ैद व शर्त अनुसरण करने का हुक्म नही दे सकता जिसमें गुनाह करने की संभवना हो।

- अंबिया ए इलाही (अ) अपने बे पनाह ज्ञान और असीमित ईमान की वजह से गुनाह अंजाम नही देते।

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