इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वालों से दुश्मनी

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वालों से दुश्मनी

जैसे इमाम हुसैन (अ) और उनके मानने वालों की ख़िदमत पर दुनिया और आख़िरत में सवाब है इसी तरह उनसे दुश्मनी और जंग का अंजाम बहुत बुरा होगा।

जान बूझ कर या बगैर जाने बूझे अगर कोई इमाम हुसैन (अ) के मानने वालों के लिये मुशकिलें खड़ी करेगा तो अगरचे उसकी कोई ग़लती न भी हो, आख़िरत से वह पहले इस दुनिया की मुसीबत में ज़रूर फँसेगा।

जैसे कोई दवा की बजाए ज़हर पी ले तो मर जायेगा, इमाम हुसैन (अ) से जंग भी ऐसे ही है। हालाँकि असली सज़ा उसे आख़िरत में मिलेगी। लेकिन इमाम हुसैन (अ) के लिये बुरा करने वाला उस दुनिया से पहले इस दुनिया में सज़ा पायेगा।

एक दूसरा मतलब जिसकी तरफ़ तवज्जो करनी चाहिये वह अल्लाह की तरफ़ से इमाम हुसैन (अ) की ख़िदमत के बदले में दी जाने वाली नेमत है। लिहाज़ा हमें दूसरी सारी नेमतों की तरह इस नेमत को भी ग़नीमत समझना चाहिये और उसे हाथ से नही जाने देना चाहिये इसलिये कि बाद में उसकी हसरत करेगें कि क्यों हमने उससे फ़ायदा नही उठाया। जबकि उस वक़्त का पछतावा कोई काम नही आयेगा।

एक और मतलब जिसकी तरफ़ तवज्जो करनी चाहिये वह यह है कि अगर हम इस वक़्त अज़ादारी करते हैं तो वह हमारे बाप दादा और हमसे पहले वाली नस्ल की ज़हमतों का नतीजा है लिहाज़ा उसको भूलना नही चाहिये और यह भी समझना चाहिये कि हम भी इमाम हुसैन (अ) की ख़िदमत करेंगें तो उसका असर भी हमारी आने वाली नस्ल पर पड़ेगा।

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