मोमिनों के चार गुण
मोमिनों के चार गुण
प्रसावना
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की एक हदीस है जो आपने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से खिताब फ़रमायी थी इसमें मोमिन के 103 सिफ़ात बयान फ़रमाये गये हैं जिनमें चार गुणों को हम आज आपके सामने पेश कर रहे हैं और आशा रखते हैं कि हम इन गुणों को अपने व्यवहारिक जीवन में अपना सकें।
हदीस-
“.....अहला मिन अश्शहदि व असलद मिन अस्सलद, ला यकशफ़ु सर्रन व ला यहतकु सितरन...... ” [1]
अनुवाद
मोमिन शहद से ज़्यादा मीठा और पत्थर से अधिक सख़्त होता है, जो लोग उसको अपने राज़ बता देते हैं वह उन राज़ो को फ़ाश नहीं करता और अगर ख़ुद से किसी के राज़ को जान लेता है तो उसे भी ज़ाहिर नही करता है।
1. मोमिश शहद से अदिक मीठा
“अहला मिन अश्शहद” है। मोमिन शहद से ज़्यादा मीठा होता है यानी दूसरों के साथ उसका व्यवहार बहुत अच्छा होता है। आइम्मा-ए- मासूमीन अलैहिमुस्सलाम विशेषकर पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बारे में प्रसिद्ध है कि आपकी बैठक और मुलाक़ातें बहुत अच्छी हुआ करती थीं, आप मज़ाक़ करने वाले और अच्छी बातें करने वाले थे। कुछ लोग का यह सोंचना हैं कि इंसान जितना ज़्यादा धार्मिक हो उसे उतना ही ज़्यादा सख़्त मिज़ाज और दुर्व्यवहारी होना चाहिए। जबकि वास्विक्ता यह है कि इंसान के समाजी, सियासी, तहज़ीबी और दूसरे पहलुओं में तरक़्क़ी के लिए जो चीज़ सबसे अधिक प्रभाव रखती है वह अच्छा व्यवहार है। कभी-कभी सख्त से सख्त मुश्किल को भी अच्छे व्यवहार, मुहब्बत भरी बातों और ख़न्दा पेशानी के माध्यम हल किया जा सकता है। अच्छे व्यवहार से जहाँ मुश्किलों को हल और शत्रुता को समाप्त किया जा सकता है, वहीँ ग़ुस्से की आग को ठंडा कर आपसी झगड़ों को भी ख़त्म किया जा सकता है।
पैग़म्बर (स.) फ़रमाते हैं कि “अक्सरु मा तलिजु बिहि उम्मती अलजन्नति तक़वा अल्लाहि व हुसनुल ख़ुल्क़ि।” [2] मेरी उम्मत के बहुत से लोग जिसके ज़रिये जन्नत में जायेंगे वह तक़वा और अच्छा अखलाक़ है।
2. मोमिन पत्थर से अधिक मज़बूत
“अस्लदा मिन अस्सलदि ” है यानी मोमिन पत्थर से ज़्यादा सख़्त होता है। कुछ लोग “अहला मिन अश्शहद” मंज़िल में हद से बढ़ गये हैं और ख़्याल करते हैं कि खुश अखलाक़ होने का मतलब यह है कि इंसान दुश्मन के मुक़ाबले में भी सख़्ती न बरते। लेकिन पैग़म्बर (स.) फ़रमाते हैं कि मोमिन शदह से ज़्यादा शीरीन तो होता है लेकिन सुस्त नही होता, वह दुश्मन के मुक़ाबले में पहाड़ से ज़्यादा सख़्त होता है। रिवायत में मिलता है कि मोमिन दोस्तों में रहमाउ बैनाहुम और दुश्मन के सामने अशिद्दाओ अलल कुफ़्फ़ार का मिसदाक़ होता है। मोमिन लोहे से भी ज़्यादा सख़्त होता है (अशद्दु मिन ज़बरिल हदीद व अशद्दु मिनल जबलि) चूँकि लोहे और पहाड़ को तोड़ा जा सकता है लेकिन मोमिन को तोड़ा नहीं जा सकता। जिस तरह हज़रत अली (अ.) थे, लेकिन एक गिरोह ने यह बहाना बनाया कि क्योंकि वह मज़ाक़ करने वाले है इस लिए ख़लीफ़ा नही बन सकते जबकि वह दूसरे मज़बूत और सख़्त थे। लेकिन जहाँ पर हालात सहीं हों वहा पर इंसान को ख़ुश्क और सख़्त नही होना चाहिए, क्यों कि जो दुनिया में सख़्ती करेगा अल्लाह उस पर आख़िरत में सख़्ती करेगा।
3. मोमिन रहस्यों को फ़ाश नहीं करता
“ ला यकशिफ़ु सिर्रन ” है। यानी मोमिन राज़ों को फ़ाश नही करता , राज़ों को फ़ाश करने के क्या अर्थ हैं ?
हर इंसान के व्यक्तिगत जीवन में कुछ राज़ पाये जाते हैं जिनके बारे में वह यह चाहता है कि वह खुलने न पाएं । क्योंकि अगर वह राज़ खुल जायेगें तो उसको जीवन में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। अगर कोई इंसान अपने राज़ को किसी दूसरे से बयान कर दे तो और कहे कि “अल मजालिसु अमानात” यानी यह बाते जो यहाँ पर हुई हैं अपके पास अमानत हैं, तो यह राज़ है और इसको किसी दूसरे के सामने बयान नही करना चाहिए। रिवायात में तो यहाँ तक आया है कि अगर कोई आप से बात करते हुए इधर उधर इस वजह से देखता रहे कि कोई दूसरा न सुन ले, तो यह राज़ है चाहे वह न कहे कि यह राज़ है। मोमिन का राज़ मोमिन के खून की तरह सम्मानीय है इसलिए किसी मोमिन के राज़ को फ़ाश नही करना चाहिए।
4. मोमिन रहस्यों को उजागर नहीं करता
“ला युहतकु सितरन ” है। यानी मोमिन राज़ों को फ़ाश नही करता। हतके सित्र (राज़ो का फ़ाश करना) कहाँ पर इस्तेमाल होता है इसकी वज़ाहत इस तरह की जा सकती है कि अगर कोई इंसान अपना राज़ मुझ से न कहे बल्कि मैं खुद किसी तरह उसके राज़ के बारे में पता लगा लूँ तो यह हतके सित्र है। इन्सान को ध्यान रखना चाहिए और ऐसे राज़ को फ़ाश नही करना चाहिए, क्यों कि हतके सित्र और उसका ज़ाहिर करना ग़ीबत है। और आज कल ऐसे राज़ों को फ़ाश करना एक आम काम बन गया है। लेकिन हमको इस से होशियार रहना चाहिए अगर वह राज़ दूसरों के लिए हानिकारक न हो और ख़ुद उसकी ज़ात से वाबस्ता हो तो उसको ज़ाहिर नही करना चाहिए।
लेकिन अगर हमको किसी ऐसे व्यक्ति का राज़ पता चल जाए जो व्यवस्था, समाज, नामूस, जवानो, लोगों के ईमान... के लिए ख़तरा पैदा कर रहा है तो उसके राज़ को ज़ाहिर करने में कोई आपत्ति नही है।
अल्लाह हम सबको सच्चा मोमिन बनने और उनके गुणों को अपने अंदर समोहित करने की तौफ़ीक़ अता करे।
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[1] बिहारूल अनवार जिल्द 64 पोज न. 310
[2] बिहारूल अनवार जिल्द 68 बाब हुस्नुल ख़ुल्क़ पोज न. 375
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