बीस जमादिस्सानी महिलाओं की आइडियल का जन्म दिवस

बीस जमादिस्सानी महिलाओं की आइडियल का जन्म दिवस

आज के दिन धरती की गोद एक एसी हस्ती के अस्तित्व से भर गई जिसकी उपाधि ईश्वर ने कौसर रखी। एकेश्वरवाद के प्रचारक पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में इस महान हस्ती का पालन पोषण हुआ। यह एसी अनुपम हस्ती है कि जिसकी ख़ुशी को ईश्वर ने अपनी ख़ुशी और जिसकी अप्रसन्नता को अपनी अप्रसन्नता ठहराया। यह हस्ती ईश्वर की कोमल रचना महिलाओं के उत्थान और परिपूर्णता का आदर्श बनी।

 

वर्ष 615 ईसवी में और हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आले ही सल्लम की पैग़म्बरी की घोषणा के पांच वर्ष बाद बीस जमादिस्सानी को मक्का नगर में पैग़म्बरे इस्लाम और उनकी पत्नी हज़रत ख़दीजा के घर में एक बच्ची ने जन्म लिया। इस घर को ईश्वर ने वह बच्ची प्रदान की जिसके माध्यम से पैग़म्बरे इस्लाम का वंश आगे बढ़ा और इसी पहलू को रेखांकित करने के लिए ईश्वर ने क़ुरआन का सूरए कौसर अपने पैग़म्बर पर उतारा। पैग़म्बरे इस्लाम ने ईश्वर के आदेश के अनुसार इस महान नवजात का नाम फ़ातेमा रखा जिसका अर्थ होता है हर प्रकार की बुराइयों से दूर रहने वाली हस्ती। ईश्वर की यह इच्छा थी कि यह हस्ती समस्त बुराइयों और त्रुटियों से दूर रहे। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के जन्म से पूरी सृष्टि में प्रेम और स्नेह की लहर दौड़ गई। पैग़म्बरे इस्लाम अपनी इस सुपुत्री के प्रेम में ओत प्रोत हो गए जो ईश्वर की चयनित हस्ती भी थी। इस महान हस्ती के जन्म पर आकाश के फ़रिश्तों ने विशेष दुआएं पढ़ीं और पैग़म्बरे इस्लाम का घर ख़ुशियों से छलक उठा।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को इस्लाम धर्म में विशेष स्थान और महत्व प्राप्त है जबकि वह केवल मुसलमानों ही नहीं अपितु पूर्व मानव जाति के लिए श्रेष्ठ आदर्श हैं। शीया और सुन्नी समुदाय दोनों ही हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा से ख़ास लगाव और श्रद्धा रखते हैं। सुन्नी समुदाय के धर्मगुरुओं की पुस्तकों में भी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को अत्यंत त्यागी और बिल्कुल सादा जीवन व्यतीत करने वाली महान ज्ञानी महिला के रूप में परिचित कराया गया है।

हज़रत फ़ातेमा पैग़म्बरे इस्लाम के अभियान को आगे बढ़ाने में आगे आगे रहीं और उनके पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भी इस्लाम धर्म के प्रचार में पैग़म्बरे इस्लाम की सराहनीय सहायता की। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद कुछ ही हफ़्तों के भीतर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा भी इस दुनिया से चल बसीं किंतु इस छोटी से अवधि में भी उन्होंने सत्य के लिए उल्लेखनीय रूप से संघर्ष किया। उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम का इस प्रकार परिचय करायाः वह ईश्वरीय मार्गदर्शक हैं, वह प्रकाश व ज्योति की प्रतिमा हैं, वह समस्त ज्ञानियों के ध्रुव हैं, वह पवित्र ख़ानदान के पवित्र सदस्य हैं, वह हमेश सत्य कहने वाले और मार्गदर्शन करने वाले हैं वह मार्गदर्शन और नेतृत्व का केन्द्र हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम कहते थे कि फ़ातेमा इंसान के रूप में एक अलौकिक हस्ती हैं। वह स्वर्ग की सुगंध हैं और उनका नाम स्वर्ग में अंकित है। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बारे में इतिहास में आया है जब उनका जन्म हुआ तो अलौकिक हस्तियां पैग़म्बरे इस्लाम के घर में एकत्रित हुईं।

 

इतनी विशेषताओं ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को एक महान व ज़िम्मेदार मार्गदर्शक बना दिया और वे अपने समय की ही नहीं बल्कि बाद के समय में आने वाली महिलाओं की भी आदर्श बनीं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का जन्म जिस काल में हुआ वह अरब जगत की अज्ञानता का काल था। वहां लड़कियों को महत्वहीन बल्कि त्रुटि के रूप में देखा जाता था। क़ुरआन में इस स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जब किसी को सूचना दी जाती थी कि उसके यहां लड़की पैदा हुई है तो उसका चेहरा क्रोध से काला पड़ जाता था और वह नवजात को जीवित ज़मीन में दफ़्न करने की तैयारी आरंभ कर देता था। पैग़म्बरे इस्लाम ने उस काल की इस अति घिनौनी सोच को व्यवहारिक रूप से चुनौती दी तथा। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जन्म पर भाव-विभोर हो उठे तथा असीम हर्ष-व-उल्लास प्रकट किया। वे हज़रत फ़ातेमा का बहुत सम्मान करते थे, यहां तक कि जब हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा आतीं तो पैग़म्बरे इस्लाम उनके सम्मान में खड़े हो जाते थे और उनके हाथों को चूमते थे।

शिष्टाचार, अध्यात्म, ज्ञान, साहस, गुणों, महानताओं और ईमान में सर्वश्रेष्ठ महिला थीं। उनका कहना था कि महिला की महानता और प्रतिष्ठा का  रहस्य उसकी सुंदरता नहीं बल्कि उसका ज्ञान, सोच, और संतान के प्रशिक्षण की क्षमता है। उन्होंने अपने अत्यां सादे किंतु ज्ञान और महानताओं से भरे जीवन में यह प्रमाणित कर दिया कि महिला सभी इंसानी गुणों को प्राप्त कर सकती है और मानव जाति के लिए आदर्श बन सकती है। यही कारण है कि हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम जिन्हें शीया समुदाय बारहवां इमाम और समस्त मानव जाति का मार्गदर्शक मानता है, कहते हैं कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा उनके जीवन में आदर्श का स्थान रखती हैं।

 

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा एक आदर्श पत्नी थीं जिन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ अपने दाम्पत्य जीवन को एक उदाहरण बना दिया। उन्होंने जीवन के सभी कठिन चरणों में स्वयं को अपने पति की सहभागी और सहायक साबित किया। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से सवाल किया कि ज़हरा को तुमने कैसा पाया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उत्तर दिया कि फ़ातेमा, ईश्वर के आज्ञापालन और उपासना में बेहतरीन सहयोगी हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी पत्नी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के गुण बयान करते हुए कहते हैं कि फ़ातेमा कभी मुझसे नाराज़ नहीं हुईं और उन्होंने कभी मुझे नाराज़ नहीं किया। मैंने उन्हें कभी किसी काम के लिए विवश नहीं किया और उन्होंने भी मुझे कभी किसी काम पर मजबूर नहीं किया। ईश्वर की सौगंध मैंने कभी भी एसा कोई काम नहीं किया जिससे फ़ातेमा को क्रोध आए। मैं जब भी उनके मुख को देखता मेरे अस्तित्व का हर दुख दर्द दूर हो जाता था मैं अपनी सारी पीड़ाएं भूल जाता था।

 

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने समाज की संस्कृति को निखारा। उन्होंने लोगों को चिंतन मनन और वैचारिक विकास का निमंत्रण दिया तथा उनके प्रश्नों और भ्रांतियों का उत्तर दिया। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने महिलाओं के प्रशिक्षण पर विशेष रूप से ध्यान दिया ताकि वे अपने कल्याण और परिपूर्णता का मार्ग तय कर सकें। एक महिला हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के पास गई और उसने बताया कि उसकी एक बूढ़ी और कमज़ोर मां हैं जो नमाज़ पढ़ते समय बहुत सी चीज़ें भूल जाती हैं और नमाज़ ग़लत हो जाती है अतः उन्होंने मुझे आपके पास भेजा है कि आपसे उनकी नमाज़ के बारे में कुछ सवाल करूं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने कहा कि जो दिल चाले पूछो। उस महिला ने अनेक सवाल पूछे और हज़रत फ़ातेमा ने सारे प्रश्नों के उत्तर बड़े संयम और सहानुभूति से दिए। यहां तक कि इतने अधिक सवाल पूछने पर वह महिला स्वयं ही लज्जित हो गई। उसने कहा कि अब मैं और आपको कष्ट नहीं दूंगी। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने कहा कि नहीं और सवाल पूछो क्योंकि मुझे तुम्हारे हर प्रश्न के उत्तर के बदले ईश्वर से पारितोषिक मिल रहा है अतः मैं कदापि उकताती और थकती नहीं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का घर शिक्षा व प्रशिक्षण का केन्द्र माना जाता था। यह एसा मोर्चा था जिसने इस्लाम धर्म की रक्षा की। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को भलीभांति पता था कि घर समाज को सुरक्षित व विकासशील बनाने हेतु संतान के पालन पोषण और प्रशिक्षण की इकाई है। अतः उन्होंने अपने घर को यह भूमिका दिलाने के लिए सफल प्रयास किया।

 

दूसरी ओर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की आर्थिक स्थिति कमज़ोर नहीं थी। उन्हें फ़ेदक नामक बाग़ की आमदनी मिलती थी किंतु उसे हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा अपने परिवार पर खर्च नहीं करती थीं बल्कि उससे ग़रीबों की सहायता करती थीं। यही कारण था कि कभी कभी हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा के घर में खाने के लिए कुछ नहीं होता था। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के विवाह की रात एक ग़रीब महिला पैग़म्बरे इस्लाम के घर गई और उसने पहनने के लिए वस्त्र मांगा। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने दुल्हन का जोड़ा उठाकर उस ग़रीब महिला को दे दिया तथा स्वयं वही लिबास पहना जो वे हमेशा पहनती थीं और उसी सामान्य लिबास में विदा होकर अपने पति के घर गईं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के इस उपकार और परित्याग की पुष्टि और सराहना क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत नंबर 92 में की गई हैः वास्तविक उपकार तक कोई नहीं पहुंच सकता सिवाए इसके कि वह चीज़ खर्च करे जिसे वह चाहता है।

लेबनान के ईसाई लेखक सुलैमान कतानी ने जो अने इस्लामी हस्तियों के बारे में कई पुस्तकें लिख चुके हैं हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में लिखते हैः एतिहासिक साक्ष्यों और रवायतों में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जिस स्थान का उल्लेख है उनका स्थान इससे कहीं ऊंचा है। उनकी जीवनी के बारे में जो कुछ लिखा गया है हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा उससे कहीं अधिक महान और आदरणीय हैं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की महानता को समझने के लिए इतना ही जान लेना काफ़ी है कि वे हज़रत मुहम्मद की सुपुत्री, अली की पत्नी और हसन व हुसैन की मां हैं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा कहती हैः जो अपनी निष्ठापूर्ण उपासनाएं ईश्वर के समक्ष प्रस्तुत करता है महान पालनहार उसके सर्वोत्तम हितों को सुनिश्चित करेगा।

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