इन्सान की सोंच और कार्यों का आपसी तालमेल
इन्सान की सोंच और कार्यों का आपसी तालमेल
मनुष्य जो भी करता है उसे अपने भविष्य को ही दृष्टि में रखकर करता है। उसकी सोच सदैव ही भविष्य पर केन्द्रित होती है। यही कारण है कि बहुत से लोग वर्तमान क्षणों से आनंद नहीं उठा पाते और न ही उसके मूल्य को समझ पाते हैं। यही कारण है कि हम अपने दायित्वों का निर्वाह बोझ समझ कर करते हैं और स्वयं को थका हुआ समझते हैं एवं जीवन के बेरंग और उद्देश्यहीन होने का आभास करते रहते हैं।
यदि हमको वर्तमान समय में जीवन आ जाए और हम यह समझकर काम करने लगें कि यह क्षण जो हम अभी व्यतीत कर रहे हैं वे कभी पलट कर नहीं आएंगे। वह ऊर्जा जो ईश्वर ने हमारे शरीर में रख दी है, आने वाले दिनों में कम होती चली जाएगी। हमें ईश्वर का आभार व्यक्त करते हुए इससे अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहिए। ऊर्जावान रहने की स्थिति मे अच्छे और कठिन कार्य करने चाहिए। पढ़ाई करनी चाहए, कला सीखनी चाहिए और अपनी दिनचर्या को सुव्यवस्थित करना सीखना चाहिए।
जब बच्चे छोटे होते हैं तो रात को जागना पड़ता है। इस बात पर थकान का आभास न करते हुए ग़ुस्सा और झुंझलाहट प्रकट करके यदि हम सोचें कि सभी माताओं को यह कार्य करना होता है और अपनी प्रिय संतान के लिए सब करने के कारण ही तो ईश्वर ने कहा है कि संतान का स्वर्ग माताओं के पैरों के तले होता है और सबसे बढ़कर यह कि यह समय बहुत जल्दी बीत जाएगा। जब बच्चा बड़ा हो जाएगा तो उसे मांकी आवश्यकता कहां रह जाएगी? अतः इस समय के मूल्य को और उसकी मिठास को समझते हुए इससे आनंदित होना चाहिए।
रात को किसी भी कारणवश रोने वाला बच्चा जब प्रांत समय सुन्दर मुस्कान के साथ माता को देखता है तो उसकी सारी थकन उतर जाती है।
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