एकेश्वरवाद (तौहीद)

एकेश्वरवाद (तौहीद)

तौहीद के सम्पूर्ण व परिपूर्ण प्रसंसा यह है किः इंसान को जान लेना चाहीए, कि ख़ूदा वन्दे आलम इस पृथ्वी को सृष्ट किया है. और इस पृथ्वी को अनुपस्थित से उपस्थित में लाया है। और उस पृथ्वी को समस्त प्रकार के निर्देश उस अल्लाह के हाथ में है, रुज़ी, ज़िन्दगी, मौत देना, सही व सालिम रख़ना, व्याधि वगैरह.... उस के हाथ में है। कभी उसके इरादे और इख़तियार में ख़ल्ल वाक़े नहीं होता। ..... इस पृथ्वी के समस्त प्रकार मख़लूक़ पर चाहे वह छोटे हो या बढ़े (समस्त प्रकार मख़लूक़ पर) निर्देशन करता है और अक़्ल भी यही कहती है, कि पृथ्वी को उपस्थित में लाने वाला ख़ूदा वन्दे आलम है. जो हाकिम व आलिम है। और इस सम्पर्क क़ुरआन में अधिक से अधिक आयतें उपस्थित है जो इंसानों के अक़्ल की ताईद करती है।

हाँ, यह सब प्रमाण पर्वरदिगार की अज़मत का पहचान है, और हम सब अपनी अक़्ल व गुणावली के बुनयाद पर यक़ीन करते है (कि वह अल्लाह इस पृथ्वी को वजूद में लाया है) हम सब को चाहिए उनका पैरुवी करे, उस से सहायता मागें, उस पर यक़ीन करें।

सिफाते जमाल व कमाले ख़ुदा

ख़ुदा वन्दे आलम एक व एकेला है और समस्त की समस्त अच्छी गुणावली उस के भीतर उपस्थित है, उदाहरणः

ज्ञानः ज्ञान का अर्थ है, कि अल्लाह समस्त जहान के मख्लूक़ को चाहे वह बड़ा हो या छोटा या कहीं भी हो हत्ता इंसानों के दिलों में वह उस चीज़ को भी ज्ञान रख़ता है।

शक्तिः शक्ति का अर्थ हैं, कि वह समस्त चीजों पर शक्ति रख़ता हैः पृथ्वी को ख़ल्क करना, रुज़ी, मौत दिलाना और ज़िन्दा करना उस कि ताक़त की उदाहरण हैं. और समस्त मख्लूक़ को वजूद में लाया है।

हायात (जीवन): उसकी ज़िन्दगी सब समय से है और सब समय रहेगी, और यह संभव नहीं है कि गैर हयात के कोई भी चीज़ ज़िन्दगी का मज़ा चाखे. उसके ज्ञान व क़ुदरत उसकी हयात के साथ है और शक्ति व क़ुदरत के बगैर हयात के कोई अर्थ नहीं रख़ता. और क़ाबिले क़बूल भी नहीं है।

चाह- इरादाः अल्लाह के लिए किसी चीज़ को चाहना व इरादा करने का प्रमाण यह हैं की वह समस्त कामों में मजबूर नहीं है, वह एक फ़ूल के उदाहरण नहीं है की वगैर अख़्तियार व इरादा के ख़ूश्बु दें।

इद्राकः यानी वह समस्त चीजों को दिख़ता और प्रत्येक शब्दों को सूनता है, चाहे वह शब्द अहिस्ता क्यों न हो।

क़दीमः वह सब समय से है और सब समय रहेगा क्योंकि यह पृथ्वी वजूद में नहीं थी लेकिन वह वजूद में लाया, हदस व इस्तेक़लाल नहीं थी, लेकिन हर हदस व इस्तेक़लाल आपरों के नियाज़मन्द है, और हर वजुदे ज़िन्दगी अल्लाह से सम्पर्क रख़ता है, और यही वजह है कि समस्त वजुदे ज़िन्दगी अल्लाह के मोहताज है, वह क़दीम है हमेंशा से है और हमेंशा रहेगा।

तकल्लूमः यानी किसी चीज़ में शब्द पैदा करना, औरं जिस समय व जिस पाक व ख़ालिस बान्दों में चाहे, पैग़म्बरे या फरिश्ते से बात करता है यानी अवाज़ को पैदा करता है।

सादिक़ः जो कुछ वह फरमाता हैः वह सच-मूच और सही होता हैं. और किसी समय आपने वादे की ख़िलाफ़ वर्ज़ि नहीं करता, किसी चीज़ को पैदा करना, रुज़ी देना, वजूद में लाना, किसी को क्षमा करना-माफ़ करना, करीम, व मेंहैरबान........है।

सिफ़ाते जलाले ख़ुदा

ख़ुदा हमेंशा से है और हमेंशा रहेगा वह समस्त नुक़्स व ऐब से पाक व पवित्र है। प्रत्येक कम व बेशि से दूर है, वह उपस्थित जैसी उपस्थित नहीं है कि शरीर का मोह्ताज हो या विभिन्न प्रकार किसी आज ज़ा से पैदा नहीं है कि किसी स्थान को पुर करे या क़ाबिले लम्स या दिख़ाई देता हो वह न पृथ्वी में दिख़ाई देगा और न आख़ेरत में।

वह कोई उपस्थित चीज़ नहीं है की क़ाबिले परिवर्तन या परिवर्धन हो, और उस में कोई मद्दि शैई प्रवेश कर नहीं सकती, और यही वजह है की वह व्याधि में नहीं पढ़ता, उस को भूक नहीं लग्ती, निन्द नहीं अती, अल्लाह पर बूढ़ापे व जवानी का कोई प्रभाब नहीं होता।

वह ला-शरीक है यानी उस का कोई शरीक नहीं है, बल्कि वह एक है, जो उस के सिफ़ात है वही उस की ज़ात है, वह हमारे जैसा मख़लूक़ नहीं है अल्लाह प्रत्येक चीज़ से पाक व पवित्र है। और उस को किसी चीज़ की जरुरत नहीं पड़ती और न परामर्श की ज़रुरत और न सहायता, उज़िर, न लश्कर, माल, सर्वत की ज़रुरत पड़ती है।

नई टिप्पणी जोड़ें