अच्छाई और बुराई का आधार अक़्ल है
अच्छाई और बुराई का आधार अक़्ल है
हमारा अक़ीदा है कि इंसान की अक़्ल बहुत सी चीज़ों के हुस्न व क़ुब्ह (अच्छाई व बुराई ) को समझती है। और यह उस ताक़त की बरकत से है जो अल्लाह ने इंसान को अच्छे और बुरे में अंतर करने के लिए अता की है। यहाँ तक की आसमानी शरीयत के नाज़िल होने से पहले भी इंसान के लिए मसाइल का कुछ हिस्सा अक़्ल के ज़रिये रौशन था जैसे नेकी एवं न्याय की अच्छाई,ज़ुल्म व अत्याचार की बुराई, अख़लाक़ी सिफ़तें जैसे सदाक़ा देना, अमानत, वीरता, उदारता और इन्हीं के जैसी दूसरी सिफ़तों की अच्छाईयाँ।
इसी तरह झूट, ख़ियानत, कंजूसी और इन्हीँ के जैसे दूसरे ऐबों की बुराईयाँ वग़ैरह ऐसे मसाइल हैं जिन को इंसान की अक़्ल बहुत अच्छे तरीक़े से समझती है।
लेकिन चूंकि इन्सान की अक़्ल हर चीज़ की अच्छाई और बुराई की पहचान नहीं कर सकती है और इन्सान की जानकारियां सीमित हैं तो ईश्वर ने इसको पूरा करने के लिए दीन,आसमानी किताबों व पैग़म्बरों को भेजा ताकि वह इस काम को पूरा करें अक़्ल जिस चीज़ को समझती है करती है उसका समर्थन करें और अक़्ल जिन चीज़ों को नहीं समझ सकती है उनको रौशन करे।
अगर हम अक़्ल द्वारा चीज़ों को समझने को पूर्ण रूप से ख़ारिज कर दें तो एकेश्वरवाद, धर्मशास्त्र, पैग़म्बरों की बेअसत व आसमानी धर्मों का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा क्योंकि अल्लाह के वुजूद और अम्बिया की दवत की हक़्क़ानियत की सच्चाई को केवल अक़्ल के माध्यम से ही साबित किया जा सकता है। ज़ाहिर है कि शरीअत के तमाम आदेश उसी वक़्त क़ाबिले क़बूल हैं जब यह दोनों विषय (तौहीद व नबूवत) पहले अक़्ल के ज़रिये साबित हों जायें और इन दोनों विषयों को केवल शरीअत के ज़रिये साबित करना संभव नहीं है।
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