इस्लाम और बड़ों का सम्मान

इस्लाम और बड़ों का सम्मान

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम का कहना है कि ईश्वरीय अनुकंपा और स्थाई भलाइयां, आपके बूढ़ों के दम से होती हैं।

हमारे बड़े-बूढ़ों और बुज़ुर्गों ने पूरे परिवार के लिए एक लंबी अवधि तक बड़े प्रेम और निष्ठा के साथ कठिन परिश्रम किया।  उन्होंने हमारी न जाने कितनी बुरी बातों को यह सोचकर सहन किया कि यह नासमझ हैं।  

हम बीमार पड़े तो वे व्याकुल रहे हैं। वे हमारे लिए हाथ-पैर, पैसे, किसी भी प्रकार की सेवा आदि से पीछे नहीं हटे अतः इस आयु में हमें उनको अपने लिए बोझ नहीं समझना चाहिए। बड़ी आयु वाले लोग, अनुभवों का ख़ज़ाना होते हैं। उनके अनुभवों से हमें लाभ उठाना चाहिए।  

उन्हें अपने पारिवारिक मामलों में सम्मिलित करना चाहिए और यदि शारीरिक और मानसिक रूप से वे बहुत कमज़ोर हो गए हों तो भी उनकी देखभाल, उनका सम्मान और उनसे प्रेम करके हम जाने-अनजाने में अपने बुढ़ापे को अच्छी तरह बीतने की ज़मानत ले लेते हैं क्योंकि घर के बच्चे हमसे ही सीखते हैं कि बड़ों का सम्मान कैसे करना चाहिए।  

एक बात और बता दें कि धार्मिक पुस्तकों में मिलता है कि यदि मुहल्ले के किसी एक घर में कोई वृद्ध मौजूद होता है तो उसके कारण न जाने कितने घरों तक ईश्वर की कृपा की वर्षा होती है। अतः आप अपने बड़े बूढ़ों का सम्मान करें ताकि आप पर ईश्वर की कृपा दृष्टि हो और अगली पीढ़ियां आपका सम्मान करें।

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