धैर्य का महत्व इमाम अली की निगाह में

धैर्य का महत्व इमाम अली की निगाह में

धैर्य का महत्वः हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि हे लोगों! धैर्य रखो क्योंकि जो व्यक्ति संयम नहीं रखता वह धर्म भी नहीं रखता।

आप इस कथन को गहराई से देखें तो बात बिल्कुल सीधी सी है। जिस व्यक्ति में धैर्य और संयम बरतने की आदत नहीं होती वह थोड़ी सी परेशानी आते ही चिन्तित हो उठता है और बहुत जल्द व्याकुल होकर लोगों को ही नहीं, ईश्वर को भी बुरा भला कहने लगता है। एसा व्यक्ति, अपनी समस्या का समाधान ढूंढने के स्थान पर दूसरों को दोषी ठहराता है और अपने भाग्य को कोसने लगता है। यह कहना किसी  भी धैर्यहीन व्यक्ति के लिए साधारण सी बात होती है कि सारी कठिनाइयां, बस मुझको ही झेलती पड़ती हैं।

अपने सामने आने वाली कठिनाइयों को हम यदि इस दृष्टि से देखें कि इस कठिनाई के उत्पन्न होने का अवश्यक ही कोई कारण है और भविष्य में इसका सकारात्मक परिणाम निकलेगा तो एसी स्थिति में हम अपनी चिंता पर भी नियंत्रण पा सकते हैं और ठंडे मन से समस्या का समाधान भी ढूंढ सकते हैं। इस प्रकार की सोच रखने वाला व्यक्ति न केवल महान ईश्वर का अपमान करके और लोगों को दोषी ठहराकर अधर्मी बनता है और न ही मानसिक तनाव का शिकार होता है।

देखिये मनुष्य की प्रवृत्ति अधिकतर इस प्रकार की होती है कि जब तक वह किसी काम पर विवश न हो जाए उसे नहीं करता और नहीं सीखता। अब आप स्वयं सोचें कि अपने जीवन के महत्वपूर्ण फ़ैसले आपने कब किये हैं? क्या उस समय जब कठिनाइयां आन पड़ीं या जब कोई क्षति उठाई?

हम अपनी सफलताओं से प्रसन्न होते हैं परन्तु उनसे कोई विशेष पाठ नहीं सीखते जबकि पराजय और विफलता, कठिनाई तथा विफलता, कटु होने के बावजूद पाठदायक होती है और हम उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं।  आप यदि अपने बीते हुए समय पर दृष्टि डालें तो आपको पता चलेगा कि जीवन में आने वाली कठिनाइयां ही आपके जीवन के लिए महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुई हैं। 

परिस्थितियों के प्रति हम मुख्यतः तीन प्रकार से प्रतिक्रियाएं दिखा सकते हैं। प्रथम यह कि जीवन, विभिन्न प्रकार की शिक्षाओं और पाठों का मिश्रण है जिसकी हमें आवश्यकता है। यह पाठ जीवन में विभिन्न अवसरों पर सामने आते रहते हैं अतः चिता की कोई बात नहीं है। कठिनाइयों से निबटने का यह सबसे उत्तम ढंग है। इससे मन भी शांत रहता है।  दूसरे प्रकार की प्रतिक्रया यह होती है कि हम यह सोचें कि जीवन एक प्रतिस्पर्धा है और इसमें जो भी घटना घटेगी उसका हम अच्छी तरह से सामना करेंगे।

यह प्रतिक्रिया मध्यम वर्ग की प्रतिक्रिया है परन्तु यह ठीक होती है। तीसरे प्रकार की प्रतिक्रिया यह है कि मनुष्य बस यह सोचे कि सारी कठिनाइयां मुझपर ही क्यों आ पड़ती हैं? इस सोच के साथ मनुष्य को न तो शांति मिलती है और न ही वह परिस्थतियों से कोई पाठ ले सकता है। जब व्यक्ति कोई पाठ नहीं लेता तो वह पुनः इसी प्रकार की समस्या में घिर सकता है। मनुष्य को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि संसार में हम दंड भोगने के लिए नहीं बल्कि पाठ लेने के लिए आए हैं अतः यदि हम चाहें तो जीवन की प्रत्येक घटना, हमारे जीवन को सकारात्मक मोड़ दे सकती है।  हमें परिवर्तित और विकसित करने में कठिनाइयां और समस्याएं बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

नई टिप्पणी जोड़ें