हे ईमान वालों दीन का उपहास करने वालों से दोस्ती न करो!
हे ईमान वालों दीन का उपहास करने वालों से दोस्ती न करो!
रिफ़ाह और सवीद नाम के दो मुशरेकीन ने पहले इस्लाम क़बूल किया और बाद मे मुनाफ़ेक़ीन के साथ हो गये। कुछ मुसलमान उनके पास आने जाने लगे तो सूरए मायदा की 57 और 58वी आयतें नाज़िल हुई कि:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا الَّذِينَ اتَّخَذُوا دِينَكُمْ هُزُوًا وَلَعِبًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَالْكُفَّارَ أَوْلِيَاءَ ۚ وَاتَّقُوا اللَّـهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ. وَإِذَا نَادَيْتُمْ إِلَى الصَّلَاةِ اتَّخَذُوهَا هُزُوًا وَلَعِبًا ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْقِلُونَ
ऐ मोमेनीन जो तुम्हारे दीन का मज़ाक़ उड़ाये उनसे दोस्ती न करो। क्योंकि जब तुम अज़ान देते हो तो वह मज़ाक़ बनाते हैं।
आपस मे मिली हुई इन दो आयतों मे पहले फ़रमाया गया कि वह तुम्हारे दीन का मज़ाक़ बनाते हैं। बाद मे कहा गया कि अज़ान का मज़ाक़ उड़ाते हैं। इससे मालूम होता है कि नमाज़ दीन का निचोड़ है।
नमाज़ का मज़ाक़ बनाने वालों से दोस्ती करने का किसी भी मुसलमान को हक़ नही है लिहाज़ा न उनसे दोस्ती की जाये और न ही उन से किसी क़िस्म का रबिता रखा जाये।
बेनमाज़ियों से मुहब्बत न करो
सूरए इब्राहीम की 37 वी आयत मे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की दुआ इस तरह ब्यान की गयी है कि:
رَّبَّنَا إِنِّي أَسْكَنتُ مِن ذُرِّيَّتِي بِوَادٍ غَيْرِ ذِي زَرْعٍ عِندَ بَيْتِكَ الْمُحَرَّمِ رَبَّنَا لِيُقِيمُوا الصَّلَاةَ فَاجْعَلْ أَفْئِدَةً مِّنَ النَّاسِ تَهْوِي إِلَيْهِمْ
उन्होंनें कहा कि ऐ पालने वाले मैंने अपनी ज़ुर्रियत (संतान) को इस सूखे पहाड़ी इलाक़े मे इस लिए बसाया कि वह नमाज़ क़ाइम करें। बस तू भी लोगों के दिलों मे इनकी मुहब्बत डाल दे।
जो लोग नमाज़ क़ाइम करने के लिए किसी भी जगह का सफ़र करें और इस सिलसिले मे हर तरह की सख्तियाँ बर्दाश्त करें तो शुक्र करने वाला अल्लाह उनका शुक्रिया अदा करता है। और लोगों के दिलों मे उनकी मुहब्बत डाल देता है।
लेकिन जो लोग नमाज़ क़ाइम करने के लिए कोई क़दम नही उठाते चाहे वह जनाबे इब्राहीम अलैहिस्सलाम की औलाद से ही क्यों न हो इस बात का हक़ नही रखते कि लोग उनसे मुहब्बत करे।
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