इमाम अली अलैहिस्सलाम की जवानों को वसीयतें भाग 2

इमाम अली अलैहिस्सलाम की जवानों को वसीयतें भाग 2

लेखक मुहम्मद सुबहानी

4. सम्मानित व प्रतिष्ठित स्वभाव

अपने ख़त में अमीरुल मोमिनीन (अ) जवानों को एक और वसीयत करते हैं:

اکرم نفسک عن کل دنِِيه و ان ساقتک الِِى الرغاءب فانک لن تعتاض بما تبذل من نفسک عوضا و لا تکن عبد غِِيرک و قد جعلک الله اجرا

हर पस्ती से अपने आप को बाला रख। (अपने वक़ार का भरपूर ख़्याल रख) अगरचे यह पस्तियाँ तुझे तेरे मक़सद तक पहुचा दें, अगर तूने इस राह में अपनी इज़्ज़त व प्रतिष्ठा खो दी तो उसका बदला तुझे नही मिल पायेगा और ग़ैर का गुलाम न बन क्योकि अल्लाह तआला ने तुझे आज़ाद पैदा किया है। इज़्ज़ते नफ़्स इंसान की बुनियादी ज़रुरतों में से है।

उसका बीज अल्लाह तआला ने इंसान की फितरत में बोया है, उसकी हिफ़ाज़त, सुरक्षा और उन्नती व प्रगति की आवश्यकता है। फ़िरऔन के बारे में क़ुरआने करीम में इरशाद है:

فاستخف قومه فاطاعوه انهم کانوا فاسقِِين

(सूरए ज़ुख़रुफ़ आयत 54)

फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को ज़लील किया इसलिये उन्होने उसकी आज्ञा का पालन किया क्योकि वह लोग फ़ासिक़ थे।

इज़्ज़त और वक़ार के लिये निम्नलिखित कार्य आनिवार्य हैं:

विभिन्न कार्यों में से एक पाप और गुनाह है जो इंसान की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुचाता है अत पाप और गुनाह से बचना नफ़्स की शराफ़त और वक़ार एँव सम्मान का कारण बनता है इमाम (अ) फ़रमाते हैं:

من کرمت علِِيه نفسه لم ِِ ياهنها بالمعصِِيه

जो अपने लिये सम्मान व प्रतिष्ठा का क़ायल हो ख़ुद को पाप और गुनाह के ज़रिये  ज़लील नही करता।

ब. बेनियाज़ी

दूसरों की चीज़ों पर नज़र रखना और मजबूरी के अलावा दूसरों से मदद माँगना इंसान की प्रतिष्ठा और सम्मान को बर्बाद कर देता है। इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं:

 

المسءله طوق المذله تسلب العز يز عزه والحسب حسبه۱۴

लोगो से माँगना बेइज़्ज़ती का एक ऐसा तौक़ है जो इज़्ज़तदारों की इज़्ज़त और शरीफ़ ख़ानदान और वंश के इंसानों से उनके वंश की शराफ़त को छीन लेता है।

स. सही राय

इज़्ज़त व शराफ़ते नफ़्स का बहुत ज़्यादा ताअल्लुक़ इंसान की अपने बारे में राय से है जो कोई ख़ुद को कमज़ोर ज़ाहिर करता है लोग भी उसे ज़लील व पस्त समझते हैं इसलिये इमाम (अ) फ़रमाते हैं:

الرجل حِِيث اختار لنفسه ان صانها ارتفعت و ان ابتذلها اتضعت ۱۵

हर इंसान की इज़्ज़त उसकी अपने कार्यों पर आधारित है जो उसने इख़्तियार की है अगर अपने आपको पस्ती व ज़िल्लत से बचा के रखे तो बुलंदियाँ तय करता है और ख़ुद को ज़लील करे तो पस्तियों और ज़िल्लतों का शिकार हो जाता है।

द. घटिया बातों और कार्यों से बचने का उपाय

अगर कोई चाहता है कि उसका वक़ार और इज़्ज़ते नफ़्स सुरक्षित रहे तो उसे चाहिये कि हर ऐसी बात और काम से जो कमज़ोरी का कारण बने उस से बचे। इसीलिये इस्लाम ने चापलूसी, ज़माने से शिकायत, अपनी मुश्किलों के लोगों से बयान करने, बड़े बड़े दावे करना, यहाँ तक कि बे मौक़ा आवभगत, सत्कार, तवाज़ो और इंकेसारी ज़ाहिर करने से मना किया है इमाम अली (अ) फ़रमाते है:

کثره الثنا ملق ِِ يحدث الزهوريدنِِي من العزه ۱۶

हद से ज़्यादा प्रशंसा और तारीफ़ चापलूसी है उससे एक तरफ़ तो इंसान में घमंड पैदा हो जाता है जबकि दूसरी तरफ़ इज़्ज़ते नफ़्स से दूर हो जाता है।

इसी तरह से इमाम (अ) फ़रमाते हैं:

رضِِي بالذل من کشف ضره لغِِيره ۱۷

जो शख़्स अपनी ज़िन्दगी की मुश्किलों को दूसरों से बयान करता है वह अस्ल में अपनी बेइज़्ज़ती व अपमान पर राज़ी हो जाता है।

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5. बिहारुल अनवार जिल्द 68 पेज 177
6. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 82
7. बिहारुल अनवार जिल्द 74 पेज 160
8. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 4 पेज 183
9. नहजुल बलाग़ा ख़त 31
10. आईने इंक़ेलाबे इस्लामी पेज 203
11. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 4 पेज 392
12. नहजुल बलाग़ा ख़त 31
13. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 5 पेज 357
14.ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 2 पेज 145
15. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 2 पेज 77
16. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 4 पेज 595
17. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 4 पेज 93

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