सूर-ए-फ़ातिहातुल किताब “अलहम्द” 4

सूर-ए-फ़ातिहातुल किताब “अलहम्द” 4

पाँचवीं आयत

इय्याका नअबुदु व इय्याका नस्तईनु

अनुवाद- हम केवल तेरी ही इबादत करते हैं और केवल तुझ ही से मदद चाहते हैं।

इंसान अल्लाह के सामने

यहाँ से बंदा अल्लाह से सम्बोधित होता है। पहले अल्लाह के सामने अपनी बंदगी को बयान करता है बादमें उससे सहायता की गुहार करता है। कहता है कि हम केवल तेरी ही इबादत करते हैं और केवल तुझ ही से सहायता चाहते हैं।

वास्तविक्ता यह है कि इससे पहली आयतों में तौहीदे ज़ात व तौहीदे सिफ़ात का वर्णन हुआ है और इस आयतमें तौहीदे इबादत व तौहीदे अफ़आल को बयान किया गया है।

तौहीदे इबादत का अर्थ यह है कि अल्लाह के अलावा कोई भी अस्तित्व इबादत योग्य नही है। अर्थात किसी अन्य के समक्ष सिर नही झुकाया जा सकता। अतः इंसान को चाहिए कि वह अल्लाह के अलावा अन्य किसी चीज़ को स्वीकार करने व उसक बंदा बनने से बचे।

तौहीदे अफ़आल अर्थात इस संसार में वास्तविक कारक अल्लाह है। इस कथन का मतलब यह नही है कि हम कारणो के पीछे न जायें बल्कि अर्थ यह है कि हमें यह विश्वास होना चाहिए कि यहाँ प्रत्येक कारण व प्रभाव अल्लाह के आदेशानुसार ही है। इस प्रकार का चिंतन इंसान को संसार समस्त वस्तुओं से दूर करके अल्लाह से जोड़ता है।

छठी आयत

इहदिना अस्सिराता अलमुस्तक़ीम

अनुवाद  - हमारा सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन कर

अल्लाह को उसके वास्तविक रूप में स्वीकार करने के बाद उसकी बंदगी करते हुए उसके द्वारा बनाये गये क़ानूनों के अनुरूप उससे सहायता की गुहार करने के बाद बंदे की पहली माँग यह है कि अल्लाह उसका सत्यता, पवित्रता, नेकी इंसाफ़ व न्याय, ईमान व अमल के सीधे रास्ते का मार्ग दर्शन करे। यहाँ पर यह प्रश्न उठता है कि  हम अल्लाह से सीधे रास्ते के लिए मार्ग दर्शन करने का निवेदन क्योँ करे?क्या हम भटके हुए हैं या हम किसी ग़लत रास्ते पर हैं? फिर यह दुआ पैग़म्बरे इस्लाम(स.) व आइम्मा-ए-मासूमीन ने भी की है जो कि सिद्धी प्राप्त इंसान थे। तो इसका अर्थ क्या है?

इस प्रश्न के उत्तर में हम कह सकते हैं कि इंसान को हिदायत के रास्ते में प्रति क्षण अपने डग मगाने एवं भटकने व गुमराह होने का डर रहता है। अतः इसी कारण हमें चाहिए कि स्वयं को अल्लाह के हवाले कर दें और उससे प्रार्थना करें कि वह सीधे रास्ते पर अग्रसर रहने की तौफ़ीक़ दे एवं हमारा मार्ग दर्शन करे। इसके अलावा हिदायत उसी रास्ते को तै करने के लिए है जो इंसान को धीरे धीरे सिद्धता की ओर ले जाता है और वह अपने समस्त नुक़सानों को छोड़ता चला जाता है और अन्ततः सिद्धी प्राप्त कर लेता है। अतः अगर पैगम्बर या इमाम अल्लाह से सीधे रास्ते की हिदायत की दुआ करें तो इसमें ताज्जुब की कोई बात नही है। क्योँकि अल्लाह ही सिद्धी का वास्तविक रूप है तथा सम्पूर्ण संसार सिद्धी के मार्ग पर अग्रसर है।

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम इस आयत की तफ़्सीर करते हुए फ़रमाते हैं कि “ऐ अल्लाह हमें उस रास्ते पर स्थिर व अडिग रख जिस पर तेरी मुहब्बत व कृपा दृष्टि हो तथा जो सवर्ग से जाकर मिलता हो औरसमस्त भौतिक चिंताओं व गुमराही से दूर हो। ”

सिराते मुस्तक़ीम (सीधा रास्ता) क्या है?

सिराते मुस्तक़ीम अल्लाह की इबादत और दीने हक़ पर रहते हुए अल्लाह के क़ानूनों का पालन है। क्योँकि सूरा-ए- अनाम की आयत न. 161 में वर्णन हुआ है कि कहो, कि अल्लाह ने हमें सिराते मुस्तक़ीम की हिदायत की है, उस दीन की जो इब्राहीम का दीन था, और अल्लाह के साथ किसी अन्य को हरगिज़ शरीक न करो।

सातवीँ आयत

सिरात अल्लज़ीना अनअमता अलैहिम ग़ैरिल मग़ज़ूबि अलैहिम व ला अज़्ज़ाल्लीन।

अनुवाद--- मुझे उन लोगों के रास्ते की हिदायत कर जिन पर तूने अपनी नेअमतें नाज़िल कीं (हिदायत की नेअमत, तौफ़ीक़ की नेअमत, सत्य ,लोगों के मार्गदर्शन की नोअमत, ज्ञान,कर्म जिहाद व शहादत की नेअमत) उन लोगों के रास्ते पर न चला जो अपने कुकर्मों के कारण तेरे परकोप का निशाना बने और नही उन लोगों के रास्ते पर जो सत्य का मार्ग छोड़ कर गुमराही व असत्य के मार्ग पर चल पड़े।

वास्तविक्ता यह है कि अल्लाह हमें निर्देश दे रहा है कि हमें उस रास्ते को चुनना चाहिए जो पैग़म्बरों, नेक लोगों व उन लोगों का है जिन पर नेअमतें नाज़िल हुईं। साथ ही साथ हमें अवगत भी करा रहा कि गुमराही के दो रास्ते हैं एक उन लोगों का जो अल्लाह के क्रोध का निसाना बने और दूसरा उनलोगों का जो हक़ के मार्ग से भटक गये।

1-अल्लज़ीना अनअमता अलैहिम

वह लोग जिन पर तूने नेअमते नाज़िल कीं।

प्रश्न पैदा होता है कि वह लोग कौन हैं जिन पर अल्लाह ने नेअमतें नाज़िल कीं?

सूर-ए निसा की आयत न. 69 में उन लोगों का परिचय कराते हुए वर्णन हुआ है कि और जिन्होंने पैग़म्बरो को माना( उनके आदेशों पर चले) तो ऐसे लोगों उन बंदो के साथ होंगे जिन्हें अल्लाह ने अपनी नेअमतों प्रदान की हैं। यानि पैग़म्बर, सच्चे लोग, शहीद व नेक लोग और यह लोग कितने अच्छे दोस्त हैं।

इस आधार पर हम सूरा-ए-हम्द में अल्लाह से यह चाहते हैं कि इन चार गिरोहों के मार्ग पर हमेशा अडिग रहें और इस रास्ते पर चलते हुए अपने उत्तरदायित्व को निभायें व कर्तव्यों को पूरा करें।

2 अलमग़ज़ूबि अलैहिम व अज़्ज़ाल्लीन

जिनपर अल्लाह क्रोधित हुआ तथा जो गुमराह हुए।

यह लोग कौन है ?

कुरआन मेंप्रयोग होने वाले इन दो शब्दों से अलग अलग अभिप्रायः लिया गदया है। ज़ाल्लीन से अभिप्रायः साधरण गुमराह लोग और मग़ज़ूब से अभिप्रायः कपटी, हटधर्मी व मुनाफ़िक जैसे गुमराह लोग हैं।

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