पूरी दुनिया में ज़ायोनी दूतावास बंद!
ज़ायोनी शासन के विदेश मंत्रालय के कर्मचारियों की हड़ताल के कारण पूरे विश्व के विभिन्न देशों में इस अतिग्रहणकारी शासन के दूतावास बंद हो गए हैं। ज़ायोनी शासन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ईगल पाल्मर के अनुसार विदेश मंत्रालय के कर्मचारियों और राजनयिकों ने वेतन कम होने के विरोध में हड़ताल कर दी है जिसके कारण संसार के एक सौ दो देशों में ज़ायोनी शासन के दूतावासों और प्रतिनिधि कार्यालयों की गतिविधियां बंद हो गई हैं। उन्होंने कहा कि पांच मार्च से शुरू होने वाली राजनयिकों की हड़ताल के कारण कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरू पोप फ़्रांसिस ने अपना इस्राईल का दौरा स्थगित कर दिया है।
यह ऐसी स्थिति में है कि जब ज़ायोनी प्रधानमंत्री के कार्यालय ने इससे पहले ही घोषणा कर दी थी कि राजनयिकों की हड़ताल के कारण प्रधानमंत्री नेतन याहू ने लैटिन अमेरिका की अपनी यात्रा अगली सूचना तक के लिए विलंबित कर दी है। ज़ायोनी शासन के विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार उच्चाधिकारियों की चेतावनियों के बावजूद राजनयिकों की हड़ताल की समाप्ति की तारीख़, जिसमें बारह सौ से अधिक कर्मचारी शामिल हैं, निश्चित नहीं है।
ज़ायोनी शासन के विदेश मंत्रालय के कर्मचारियों की यह अभूतपूर्व हड़ताल ऐसी स्थिति में जारी है कि जब कुछ दिन पहले शैक्षिक संस्थानों, चिकित्सा और सार्वजनिक परिवहन सहित विभिन्न क्षेत्रों के दसियों हज़ार लोगों ने तेल अवीव में व्यापक विरोध प्रदर्शन करके ज़ायोनी प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतिन याहू के मंत्रीमंडल की कड़ी आलोचना की थी और परिस्थितियों के अनुकूल वेतन बढ़ाने की मांग की थी।
ज़ायोनी अधिकारियों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान सामान्य जीवन के ख़र्चों में वृद्धि, आवास के संकट, वर्गभेद में वृद्धि, अपराधी गुटों की संख्या में बढ़ोतरी, बेरोज़गारी और असुरक्षा जैसी समस्याओं ने इस्राईली जनता को आक्रोशित कर दिया है और बहुत से इस्राईली नागरिक अतिग्रहित फ़िलिस्तीन को छोड़ कर जाने लगे हैं। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि हालिया वर्षों में नेतिन याहू की नीतियां इस बात का कारण बनी हैं कि यह शासन क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर पहले से अधिक अलग-थलग पड़ गया है और यहूदी बस्तियों में विस्तार के कारण उस पर यूरोपीय संघ की ओर से प्रतिबंध भी लगाए गए हैं।
इन्हीं सब बातों के कारण न केवल यह कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में अन्य देशों से यहूदी आकर नहीं बस रहे हैं बल्कि यहां से उलटा पलायन आरंभ हो गया है और यह प्रक्रिया इस समय, ज़ायोनी शासन के लिए मुख्य चुनौती बनी हुई है।
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