सूर-ए-फ़ातिहातुल किताब (अलहम्द) 2
सूर-ए-फ़ातिहातुल किताब (अलहम्द) 2
पहली आयत
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान (दयालु) व रहीम (कृपालु) है।
संसार के हर समाज में यह प्रथा है कि किसी कार्य को शुरू करने से पहले एक महान एवं महत्वपूर्ण नाम का उच्चारण किया जाता है। अर्थात उस कार्य को किसी ऐसे अस्तित्व से जोड़ते हैं जिसकी कृपा दृष्टि के अन्तर्गत उसे पूरा किया जा सके। लेकिन क्या इससे श्रेष्ठ यह नही है कि किसी कार्य को सफ़लता पूर्वक करने के लिए तथा एक संगठन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए उसे किसी ऐसे अस्तित्व से जोड़ा जाये जो अनश्वर हो, सम्पूर्ण सृष्टि में अनादिकाल से हो व सार्वकालिक हो। ऐसा अस्तित्व अल्लाह के अलावा और कोई नही है। अतः हमें हर काम को उसके नाम से शुरू करना चाहिए और उसी से सहायता माँगनी चाहिए। इसी लिए क़ुरआन की पहली आयत में कहा गया है कि अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ जो रहमान व रहीम है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने एक हदीस में कहा है कि “कुल्लु अमरिन जी बालिन लम युज़कर फ़ीहि इस्मुल्लाहि फ़हुवा अबतर” अर्थात वह कार्य जो अल्लाह के नाम के बिना शुरू किया जाता है वह अधूरा रह जाता है।
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा है कि हर काम को शुरू करने से पहले चाहे वह काम छोटा हो या बड़ा अल्लाह का नाम लिया जाये, ताकि वह काम सफलता पूर्वक पूरा हो सके।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि किसी भी काम को सफलता पूर्वक करने के लिए उसे किसी पूर्ण अस्तित्व से जोड़ना चाहिए। इसी वजह से अल्लाह ने अपने पैग़म्बर (स) को आदेश दिया कि इस्लाम धर्म के प्रचार से पहले इस विशाल व कठिन ज़िम्मेदारी को अल्लाह के नाम से शुरू करो, ताकि अपने मक़सद में कामयाब हो सको। इसी लिए क़ुरआन ने पैग़म्बर (स) को सबसे पहला आदेश यही दिया कि इक़रा बिस्मि रब्बिक अर्थात अपने रब के नाम से पढ़ो। इसी प्रकार हम देखते हैं कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम तूफ़ान जैसी विकट परिस्थिति में भी अपने साथियों को नाँव पर सवार होने, इसके चलने और रुकने के समय अल्लाह का नाम लेने को कहते हैं और इसी नाम के सहारे उन्होंने अपनी यात्रा को कुशलता पूर्वक पूरा किया। [5]
इसी तरह जब हज़रत सुलेमान ने सबा नामक राज्य की रानी बिलक़ीस को ख़त लिखा तो सबसे पहले उस ख़त में अल्लाह का नाम लिख था। [6]
इसी आधार पर, कुरआन के समस्त सूरों को अल्लाह के नाम से शुरू किया गया है ताकि शुरू से आख़िर तक किसी अड़चन के बग़ैर अल्लाह के संदेश को पूरा किया जा सके। सिर्फ़ सूर-ए-तौबा एक ऐसा सूरह है जिसके शुरू में बिस्मिल्लाह नही है और इसका कारण यह है कि इस सूरहे में ज़ालिमों व वादा तोड़ने वालों की निंदा करते हुए उनसे जंग का ऐलान किया गया है और जंग की घोषणा रहमान व रहीम जैसी विशेशताओं के साथ उपयुक्त नही है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें
1. बिस्मिल्लाह हर सूरे का अंग है
समस्त शिया आलिम इस बात पर एक मत हैं कि बिस्मिल्लाह सूर-ए- हम्द ही नही बल्कि कुरआन के हर सूरे का हिस्सा है। समस्त सूरों से पहले बिस्मिल्लाह का पाया जाना इस बात की ठोस दलील है कि यह प्रत्येक सूरे का हिस्सा है। क्योँकि हमें ज्ञात है कि क़ुरआन में किसी भी चीज़ को बढ़ाया नही गया है। क़ुरआन के हर सूरे से पहले बिस्मिल्लाह का चलन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ज़माने से ही है। इसके अलावा समस्त मुसलमानों की प्रथा यही रही है कि कुरआन पढ़ते समय हर सूरे से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ते हैं। मुसलमानों का हर सूरेह से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना इसबात की ओर संकेत है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) भी हर सूरे से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ते थे। अगर बिस्मिल्लाह को कुरआन के हर सूरे का हिस्सा न माने तो जो चीज़ सूरे का हिस्सा नही है उसका पैग़म्बर और मुसलमानों के द्वारा पढ़ा जाना व्यर्थ है। अतः सिद्ध हो जाता है कि सूर-ए- तौबा को छोड़ कर, बिस्मिल्लाह कुरआन के हर सूरे का हिस्सा है और इसका हर सूरे का हिस्सा होना इतना स्पष्ट है कि मुविया ने अपने शासन काल में एक दिन नमाज़ पढ़ाते समय बिस्मिल्लाह नही कहा तो नमाज़ के बाद कुछ मुहाजिर व अंसार ने उनसे पूछा कि तुमने बिस्मिल्लाह को चुरा लिया है या भूल गये हो?
2. अल्लाह, ख़ुदा का सर्वगुण सम्पन्न नाम है
अल्लाह का जो भी अन्य नाम क़ुरआन या दूसरी इस्लामी किताबों में वर्णित हुए है वह उसकी किसी मुख्य विशेषता पर प्रकाश डालते हैं। परन्तु अल्लाह ऐसा नाम है जो अपने अन्दर उसकी समस्त विशेषताओं को इकठ्ठा किये हुए है। इसी कारण अल्लाह के अन्य नाम उसकी सिफ़तों के लिए प्रयोग किये जाते हैं। जैसे ग़फ़ूर (क्षमा करने वाला) रहीम (अत्यन्त दया करने वाला) यह दोनों नाम अल्लाह की क्षमा करने की विशेषता को प्रदर्शित करते हैं। फ़ इनल्लाह ग़फ़ूरुर रहीम[7] अर्थात निःसंदेह अल्लाह क्षमा करने वाला वह अत्यन्त दयावान है।
इसी तरह उसका समीअ (बहुत अधिक सुनने वाला) नाम उसकी सुनने की विशेषता को प्रकट करता है। इसी प्रकार उसका अलीम नाम उसके ज्ञान की ओर इशारा करता है कि वह हर चीज़ का जानने वाला है। फ़ इन्नल्लाहा समीउन अलीम।[8] निःसंदेह अल्लाह अत्यधिक सुनने वाला व जानने वाला है।
एक आयत में अल्लाह के विभिन्न नाम उसकी विशेषताओं के रूप में प्रयोग हुए हैं और वह आयत यह है। हुवा अल्लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवा अलमलकु अलक़ुद्दूसु अस्सलामु अलमुमिनु अलमुहैमिनु अलअज़ीज़ु अलजब्बारु अलमुतकब्बिरु।[9] अर्थात अल्लाह वह है जिसके अतिरिक्त कोई अन्य माबूद नही है, वह बादशाह, पाकीज़ा सिफ़ात, बे ऐब, देख भाल करने वाला, इज़्ज़तदार, ज़बरदस्त व किबरियाई का मालिक है।
अल्लाह, नाम के सर्वगुण सम्पन्न होने का दूसरा कारण यह हो सकता है कि इस नाम के द्वारा अर्थात ला इलाहा इल्ला अल्लाह कह कर ही ईमान को प्रकट किया जा सकता है।
3-अल्लाह की समान व विशेष कृपाएं
क़ुरआन के मुफ़स्सिरों (टीकाकारों) के मध्य यह तथ्य मशहूर है कि अल्लाह की रहमान नामक विशेषता उसके द्वारा सम्पूर्ण सृष्टि पर की जाने वाली कृपाओं की ओर संकेत करती है। जो दोस्त, दुशमन, मोमिन, काफ़िर अच्छे व बुरे सभी प्रकार के लोगों पर समान रूप से होती है। जैसे वर्षा, अल्लाह की रहमानी विशषेषता के अन्तर्गत आती है और इससे प्रत्येक प्राणी लाभान्वित होता है।
लेकिन अल्लाह की रहीम नामक विशेषता उसके द्वारा की जानी वाली उस विशेष कृपा व दया की ओर इशारा करती है, जो केवल विशेष बंदों को ही प्राप्त होती है। इसकी दलील यह है कि क़ुरआन में जहाँ जहाँ रहमान शब्द प्रयोग हुआ है वह अपने अन्दजर सभी प्राणियों को सम्मिलित किये हुए है। परन्तु जहाँ जहाँ रहीम शब्द आया है वह विशेष रूप में प्रयोग हुआ है और इसकी दलील क़ुरआन की वह आयत है जिसमें अल्लाह कह रहा है कि व काना बिल मोमिनीना रहीमा[10] अर्थात अल्लाह मोमिनों के प्रति रहीम है।
इसके अलावा हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा है कि अल्लाह सम्पूर्ण सृष्टि का माबूद (पूजनीय) व समस्त प्राणियों पर कृपा करने वाला तथा मोमिनों पर अत्याधिक दयालु है।
4-बिस्मिल्लाह में, अल्लाह की केवल रहमान व रहीम सिफ़त का ही, वर्णन क्यों हुआ है ?
अगर हम इस प्रश्न के संबन्ध में इस बात पर ध्यान दें कि “प्रत्येक कार्य के आरम्भ में उस विशेषता की इच्छा होती है जिसका प्रभाव सम्पूर्ण संसार पर विद्यमान हो और जो अपने अन्दर समस्त सृष्टि को छुपाये हुए हो और जो संकट के समय कल्याणकारी बन कर संकट से बचा सके।” तो यह प्रश्नसरलता पूर्वक हल हो सकता है। अब हम उपरोक्त वर्णित समस्त तथ्यों को कुरआन में देखते हैं। कुरआन में वर्णन हुआ है कि रहमती वसिअत कुल्ला शैइन।[11] अर्थात मेरी रहमत हर चीज़ को अपने अन्दर समेटे हुए है।
दूसरी ओर हम देखते हैं कि पैग़म्बरों ने संकट से निकलने व दुश्मनों से सुरक्षित रहने के लिए अल्लाह की रहमत का सहारा लिया। हूद व उनके अनुयाईयों के बारे में मिलता है कि फ़ अनजैनाहु व अल्लज़ीना मअहु बिरहमतिन मिन्ना।[12] अर्थात हमने हूद व उनके साथियों को अपनी रहमत के के द्वारा छुटकारा दिलाया।
इन तथ्यों से ज्ञात होता है कि अल्लाह के समस्त कार्य को आधार उसकी रहमत है। उसका क्रोध तो कभी कभी ही प्रकट होता है । जैसे कि हम दुआओं की किताबों में पढ़ते हैं कि या मन सबक़त रहमतुहु ग़ज़बहु अर्थात ऐ अल्लाह तेरी रहमत तेरे क्रोध पर भारी है।
इंसान को चाहिए कि अपनी ज़िनंदगी का आधार रहम व मुहब्बत को बनाये और अपनेक्रोध को उचित समय के लिए सुरक्षित रखे।
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[5] सूरा-ए-हूद आयत न. 41 व 48
[6] सूरा-ए-नहल आयत न.30
[7] सूरा-ए-बक़रह आयत न. 266
[8] सूरा-ए-बक़रह आयत न.227
[9] सूरा-ए-हश्र आयत न. 23
[10] सूरह-ए-अहज़ाब आयत न.43
[11] सूरा-ए-आराफ़ आयत न.156
[12] सूरा-ए-आराफ़ आयत न.72
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