अहलेबैत की मोहब्बत अहलेसुन्नत की नज़र में
अहलेबैत की मोहब्बत अहलेसुन्नत की नज़र में
अब्दुल क़ादिर बग़दादी जो पाँचवीं सदी में अहले सुन्नत के एक बुज़ुर्ग आलिम थे उन्हों ने अहले बैत अलैहिमुस्सलाम से मुहब्बत के बारे में अहले सुन्नत के नज़रिये को इस तरह ब्यान किया हैः
अहले सुन्नत हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के मशहूर फर्ज़न्द जैसे हसन बिन हसन, अब्दुल्लाह बिन हसन, हज़रत ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, हज़रत मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम, जिन को जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी ने रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का सलाम पहुँचाया और ज़ॉफर बिन मुहम्मद मारुफ़ बे सादिक़, मूसा बिन जाफ़र अलैहिस्सलाम और अली बिन मुसर्रेज़ा अलैहिस्सलाम को दोस्त रखते हैं। नीज़ अहलेबैत अलैहिस्सलाम की दीगर औलाद को जो अपने आबा ए ताहेरीन की सुन्नत पर थीं उन सब को भी दोस्त रखते हैं। (बग़दादी बग़ैर तारीख़ पेज 360, 362).
बेना बर इन शियों को यह मालूम होना चाहिए कि पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अहले बैत अलैहिमुस्सलाम से मुहब्बत करना शियों से मख्सूस नहीं है बल्की बिरादराने अहले सुन्नत भी उनको दोस्त रखते हैं। पस इस लेहाज़ से अहले बैत अलैहिमुस्सलाम की मुहब्बत मुसलमानों के अन्दर इत्तेहाद बरक़रार करने और उन्हें इख्तेलाफ़ से नेजात देने का बेहतरीन ज़रीया है।
ग़ुलात, तहरीफ़े क़ुरआन और असहाबे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के बारे में अइम्मा और शिया उलमा का नज़रियाः
मज़कूरा बात के मुकाबले में शियों के बारे में बाज़ अहले सुन्नत का नज़रिया व ख्याल यह हैः शिया हज़रात अहले ग़ुलू हैं। (हज़रत अली अलैहिस्सलाम और दीगर अइम्मा की उलूहियत व नबुवत के क़ायल हैं।) और क़ुरआन में तहरीफ़ के क़ायल हैं। नीज़ हज़रत पैग़म्बरे अकरम सलल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के तमाम असहाब को बुरा भला कहते हैं। जबकि अइम्म ए हुदा अलैहिमुस्सलाम और शिया उलमा बड़ी शिद्दत के साथ ग़ुलात की मुख़ालेफ़त करते हैं और उन्हें काफिर बताते हैं जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस बारे में फ़रमाया हैः
अल्लाहुम्म इन्नी बरीय मिनल ग़ुलात कब्राऐ इसा ईब्ने मर्यम मिनन नसारा अलाला हुम्म अखज़ लहुम अब्दा वला तन्सुर मिन्हुम अहदाः. ख़ुदाया मैं ग़ोलात से बेज़ार हूँ जिस तरह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम नसारा से बेज़ार थे, खुदाया उन्हें ज़लील कर और उन में से किसी एक की भी मदद न फ़रमा। (अल्लामा मजलिसी, जिल्द 25, पेज 346).
हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम ने भी फ़रमायाः अल ग़ुलात शर्रील ख़ल्क। ग़ुलात ख़ल्क में सब से बुरे हैं। (गुज़श्ता).
शैख़ सदूक़ (मोत्वफ्फी सन 413 हिज्री) जो शियों के एक बुज़ुर्ग आलिमे दिन और मुहद्दिस हैं वह कहते हैं ग़ुलात और मकूज़ा के बारे में हमारा अकीदा यह है कि वह लोग काफिर यहूदी नसारा से भी बदतर हैं। (शैख सदूक पेज 17, बेहवाले फर्को मज़ाहिब रबानी गुल पाऐगानी).
शैख मुफीद (मोत्वफ्फी सन 413 हिज्री) चौथी सदी के मशहूर आलिम व मुत्कल्लीम का भी गुलात के बारे में यही नज़रिया है। (शैख़ मुफीद, पेज 109).
बेना बर इन शियों और ग़ुलात को एक ही जानना ग़ुलात के बारे में शियों के नज़रियात से बे खबरी की दलील है।
इसी तरह शिया हज़रात क़ुरआने मजीद में तहरीफ़ के क़ायल नहीं हैं। उनका अकीदा ये है की मौजूदा क़ुरआन वही है जिसे खुदा ने अपने पैग़म्बर सलल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पर नाज़िल किया है, फज़्ल बिन शाज़ान से मौजूदा ज़माने तक तमाम शिया उलमा में कोई भी तहरीफ़े क़ुरआन का क़ायल नहीं हुआ है अगर्चेः शिया व सुन्नी दोनों के मनाबे में तहरीफ़े क़ुरआन के बारे में कुछ शाज़ो ज़ईफ़ रिवायात मौजूद हैं लेकिन किसी ने भी उन पर अमल नहीं किया है।
क़ुरआन के तहरीफ़ न होने के सिल्सिले में नमूने के तौर पर सिर्फ़ शैख़ सदूक की ईबारत नक्ल की जा रही है आप ने जिस रेसाले में शियों के अकायद के बारे में ब्यान फ़रमाया है उसमें तहरीफ़े क़ुरआन के बारे में लिखा हैः. हम शियों का अकीदा क़ुरआन के बारे में ये है, जिस क़ुरआन को खुदा वन्दे आलम ने अपने पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पर नाज़िल फ़रमाया है, वह यही है और जो तमाम लोगों के इख्तेयार में है वह इससे ज़्यादा नहीं था और नहीं है और जो शख्स शियों की तरफ़ ये निस्बत दे कि उनका अकीदा यह है कि क़ुरआन इससे ज़्यादा था वह झूठा है. (शैख सदूक़ ऐतेकादातुल इमामिया ज़मीमे शर्ह बॉबे हादी अशर, बेहवाले रेसायल व मक़ालात आयतुल्लाह सुब्हानी, जिल्द 1, पेज 192).
हज़रत पैग़म्बरे अकरम सलल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के सहाबा के बारे में शियों का नज़रिया बिल्कुल मोअतदिल और इफ़रात व तफ़रीत से ख़ाली है यानी शिया हज़रात अस्हाबे पैग़म्बर सलल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का ऐहतेराम करते हैं लेकिन बाज़ कुर्आनी आयात नीज़ रिवायात के मुताबिक कुछ ऐसे अस्हाब थे जो हज़रत पैगम्बर सलल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की राह से मुन्हरिफ़ हो गऐ थे शिया ऐसे सहाबा के बारे में हस्सास हैं।
इस आधार पर जो कुछ ब्यान किया गया है उन से सारे अवामिल व अस्बाब नीज़ तजाविज़ खुसूसन हकायक़ को ब्यान करना और इस्लामी मज़ाहिब के अस्ली नज़रियात को ब्यान करना और हर मज़हब के साहेबे नज़र उलमा के अकायद से बाख़बर होना और इस्लामी मज़ाहिब के तमाम पैरु कारों के अकीदों को उन किताबों से ब्यान करना जिन्हें वह कुबूल करते हैं ये सारी बातों वह हैं जो मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद व हम बस्तगी कायम करने में बहुत ज़्यादा कारसाज़ और मुवस्सर हैं दीनी उलमा उन हकायक़ को ब्यान करके मुसलमानों को एक दूसरे को काफिर बनाने और न पर तोहमत लगाने से बचा सकते हैं और सब को ला कर एक सफ़ में खडा कर सकते हैं।
जहाने इस्लाम में मौजूदा उलमा अपने गुज़श्ता उलमा की इक्तेदा करते हुऐ ऐसे इल्मे कलाम, फिक्ह व उसूल लिखें जो एक दूसरे से करीब और तमाम मज़ाहिब के दर्मियान मक्बूल हों, उनकी तालीम दें और एक दूसरे से कस्बे फैज़ करें। बहस व मुनाज़ेरा और गुफ्तगू को पुर खुलूस और दुस्ताना फिज़ा में अन्जाम दें जैसा की शैख़ मुफीद और काज़ी अबू बकर बाक्लानी, दुस्ताना फिज़ा में मुनाज़रे के तमाम अदब व शरायत की रिआयत करते हुए आपस में मुनाज़रे करते थे इसी लिए अहले सुन्नत के दर्मियान शैख़ मुफीद का बड़ा ऐहतेराम है जिस वक्त उन्हों ने रेहलत की तशीऐ जनाज़ा में बहुत ज़्यादा मजमा था और बड़ी शानो शौकत से जनाज़ा उठा जब की बग़दाद के अक्सर लोग अहले सुन्नत थे।
इस तरह पाँचवी सदी में शैख़ तूसी ने किताब अलख़िलाफ़ लिखी जिसमें तमाम इस्लामी मज़ाहिब के नज़रियात को ब्यान फ़रमाया और अहले सुन्नत के फाज़िल आलिम क़ौशजी ने शिया आलिमे दीन ख्वाजा नसीरुद्दीन तूसी की किताब तजरीदुल ऐतेक़ाद की शर्ह लिखी और शिया आलिमे दीन जनाब फैज़ काशानी (मुत्वफ्फी सन 1072 हिज्री) ने अहले सुन्नत के मशहूर आलिम गज़ाली की किताब अहया ए ओलूमुद्दिन की तहज़ीब व तहकीक़ की।
इसी तरह अभी दूर की बात नहीं है सय्यद जमालुद्दिन अफ़गानी, शैख़ अब्दहु, अल्लामा इक्बाल लाहौरी, शैख़ हसन अल बन्ना, (इख्वानुल मुस्लेमीन के लीडर) शैख़ महमूद शल्तूत, आयतुल्लाह बुरुजर्दी, शर्फुद्दीन आमली, शैख़ सलीम बशरी और इमाम खुमैनी ये तमाम लोग इस्लामी इत्तेहाद के अलम्बर्दार थे उन लोगों ने इस्लामी इत्तेहाद व उखूवत को बर्करार करने के सिल्सिले में कोई कसर बाकी नहीं रखी बिना बर इन बहुत मुनासिब व शाइश्ता है कि आलमे इस्लाम के मौजूदा उलमा उन लोगों की तासी करते हुए मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद बर्तरार करें इस राह में रात दिन कोशिश करें और इख्तेलाफात के मन्हूस नग्मों की आवाज़ को नाबूद कर दें।
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