रसूले इस्लाम के जीवन के अन्तिम पल और हज़रते ज़हरा
रसूले इस्लाम के जीवन के अन्तिम पल और हज़रते ज़हरा
क्योंकि हज़रत पैगम्बर(स.) का रोग उनके जीवन के अन्तिम चरण मे अत्याधिक बढ़ गया था। अतः हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा हर समय अपने पिता की सेवा मे रहती थीं। उनकी शय्या की बराबर मे बैठी उनके तेजस्वी चेहरे को निहारती रहती व ज्वर के कारण आये पसीने को साफ़ करती रहती थीं।
जब हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा अपने पिता को इस अवस्था मे देखती तो रोने लगती थीं। पैगम्बर से यह सहन नही हुआ। उन्होंने हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा को संकेत दिया कि मुझ से अधिक समीप हो जाओ।
जब हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा निकट हुईं तो पैगम्बर उनके कान मे कुछ कहा जिसे सुन कर हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा मुस्कुराने लगीं। इस अवसर पर हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का मुस्कुराना आश्चर्य जनक था।
अतः आप से प्रश्न किया गया कि आपके पिता ने आप से क्या कहा? आपने उत्तर दिया कि मैं इस रहस्य को अपने पिता के जीवन मे किसी से नही बताऊँगी। पैगम्बर के स्वर्गवास के बाद आपने इस रहस्य को प्रकट किया।और कहा कि मेरे पिता ने मुझ से कहा था कि ऐ फ़ातिमा आप मेरे परिवार मे से सबसे पहले मुझ से भेंट करोगी। और मैं इसी कारण हर्षित हुई थी।
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