फ़िलिस्तीन के तीसरे इन्तिफ़ादा पर अरब और विश्व देशों की प्रतिक्रिया

फ़िलिस्तीनियों पर इस्राईली अत्याचार के विरुद्ध जारी प्रतिरोध और फ़िलिस्तीन के तीसरे इन्तेफ़ादा (क्रांति) के बारे में अरब देशों के साथ साथ विश्व कि भिन्न देशों ने अलग अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं।

अरब लीग के स्थायी प्रतिनिधियों ने फ़िलीस्तीन के अनुरोध पर "फ़िलीस्तीनी राज्य क्षेत्र में इस्राईल की बर्बरता, विशेष रूप से मस्जिदुल अक़्सा पर इस्राईली हमलों की जांच" नामक एक पर एक आपातकाली बैठक बुलाई।

3 अक्तूबर 2015 को अरब लीग के स्थायी प्रतिनिधियों ने फ़िलीस्तीन के अनुरोध पर एक आपातकाली बैठक “फ़िलीस्तीनी राज्य क्षेत्र में इस्राईल की बर्बरता, विशेष रूप से मस्जिदुल अक़्सा पर इस्राईली हमलों की जांच की समीक्षा” का आयोजन किया। जिसके अंत में फिलीस्तीनी लोगों के लिए संयुक्त राष्ट्र का समर्थन और इस्राईली आक्रामकता एवं यहूदी आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होने का फैसला किया।

इस संबंध में अरब देशों के विदेश मंत्रियों ने 9 नवंबर को “फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने” के लिए आपातकालीन बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में पूर्व में हुए अनुसंधान के आधार पर फ़िलिस्तीन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के साथ समन्वय और परामर्श की परियोजना को पेश किया गया।

इस परियोजना में अरबी देशों की संयुक्त और द्विपक्षीय गतिविधियों के साथ शांति प्राप्त करने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फ़िलिस्तीन के तुरंत समर्थन पर जोर दिया।

एक आधिकारिक बयान में ट्यूनीशिया कि विदेश विभाग ने 16 अक्टूबर को जारी घोषणा पत्र में फ़िलीस्तीनी लोगों के अधिकारों पर यहूदी आक्रामकता की तीव्र निंदा की। और कहा कि यह फिलीस्तीनी नागरिकों के सबसे बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है।

इस देश ने मस्जिदुल अक़सा पर जारी इस्राईली आक्रमण को तुरंत रोके जाने की मांग की और कहा कि यह देश हमेशा फ़िलीस्तीनी लोगों के अधिकारों के समर्थन में खड़ा रहेगा।

अंत में दुनिया के देशों से मांग की कि वह फ़िलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार को रोके जाने और पवित्र क़ुद्स में इस्लामी और ईसाई धार्मिक चिन्हों का सम्मान करने के लिए इस्राईल पर दबाव बनाएं।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं

फ़िलिस्तीन के तीसरे इन्तिफादा पर विश्व के विभिन्न देशों ने अलग अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं।

स्वीडिश विदेश मंत्री मार्गो फ़ॉस्ट्रीम ने स्वीडिश संसद के सामने फ़िलिस्तीनियों द्वारा चाक़ू के हमले की निंदा करने के बारे में कहा, इस कार्य पर बिना सुनवाई के मौत की सज़ा नहीं दी जानी चाहिए, औऱ उन्होंने इस्राईल द्वारा फ़िलिस्तीनियों के जारी जनसंहार की पड़ताल किए जाने की मांग की, जिसके उत्तर में इस्राईल ने कहा है कि आप इस्राईल की यात्रा पर न आएं।

अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जॉन कैरी ने एक प्रेस कांफ़्रेस में कहाः “हम फ़िलिस्तीनियों के हमलों को आतकंवाद समझते हैं क्योंकि चाक़ू और बंदूक़ से हमला आतकंवाद है”

उन्होंने कहाः यरूशलेम में यथास्थिति में बदलाव हिंसा को बढ़ाएगा, और कहा ज़ायोनी सैनिकों द्वारा चार फ़िलिस्तीनी नागरिकों पर दैमूना में गोली भी आतंकवाद है। ज़ायोनी शासन के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री ने जॉक कैरी की टिप्पणी को ढोंग बता कर उसे वापस लेने की मांग की।

9 नवंबर को व्हाइट हाउस में ओबामा ने नेतन याहू के साथ मुलाक़ात में “इस्राईल के विरुद्ध फ़िलिस्तीनी हिंसा” की निंदा की और कहाः “मैं फिर कह रहा हूँ कि मुझे विश्वास है कि इस्राईल न केवल अपनी सुरक्षा का हक़ रखता है उसका कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा करे”

रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़ोकारूफ़ा (Maria Zakharova) ने कहाः हम एक बार फिर इस्राईल और फ़िलिस्तीन से मांग करते हैं कि वह हिंसा को छोड़ दें।

इसी प्रकार 16 अक्टूबर को सुरक्षा परिषद की आपातकाली बैठक में रूस के स्थाई प्रतिनिधि विटाली चोरकीन ने कहाः बढ़ती अराजकता के लिए इस्राईल जिम्मेदार है और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से कहा कि फ़िलिस्तीनी प्रमुख द्वारा अपने देश में शांति स्थापित करने की मांग पर अपने सुझाव दें।

फ्रांस ने भी सुरक्षा परिषद के सामने क़ुद्स में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को भेजे जाने की परियोजना पेश की, फ़्रांस की इस परियोजना पर अपने रोष प्रकट करते हुए ज़ायोनी शासन ने 19 अक्टूबर को फ़्रांसीसी राजदूत को तलब किया।

तुर्की के विदेश मंत्रालय ने 12 अक्टूबर को एक बयानिया जारी किया जिसमें “ज़ायोनी सुरक्षा बलों के पवित्र हरम में प्रवेश और मुसलमानों के साथ टकराव” को अराजकता का कारण बताया। इस घोषणापत्र में “इस्राईली बर्बरता के कारण होने वाली घटनाओं और अराजकता के विरुद्ध इस्राईल द्वारा हिंसा के रास्ते को अपनाए जाने” की निंदा की।

5 जनवरी 2017 को ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस्राईली अदालतों की अयोग्यता और ज़ायोनी सैनिकों द्वारा फ़िलिस्तीनी युवाओं की हत्या में न्याय के विरुद्ध कार्य किए जाने की रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट में आया है इस्राईली सैन्य अदालत ने ज़ायोनी सैनिक आलवीर अज़ारिया को अनैच्छिक हत्या का आरोप लगाया है जब कि हत्या की वीडियो दिखाती हैं कि यह हत्या जानबूझ कर की गई थी।

यह घटना 24 मार्च 2016 को अलख़लील शहर के केन्द्र तिल अलरमीदा में घटी जिसमें ज़ायोनी सैनिकों ने मृत्क और एक दूसरे व्यक्ति रमज़ी अलक़सरावी पर गोलियां चलाईं, क्योंकि उनका कहना था कि यह दोनों लड़के चाक़ू से हमले वाली घटना में शामिल थे।

इस रिपोर्ट में आया है कि जिस समय इस्राईली सैनिक इन दो लड़कों पर गोलीबारी कर रहे थे तभी दाऊद का लाल सितारा अभियान में मामूली रूप से घायल एक इस्राईली सैनिक के उपचार में लगा था। यह रिपोर्ट इस्राईली न्यायिक प्रणाली के अन्याय और उसके द्वारा वास्तविकताओं की अनदेखी करने को बयान करती है।

 

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