इस्राईल ने ईरान से कहा, हम पर एहसान किया जाए
सन 1979 में ईरान में क्रांति सफल हुई और ढाई हज़ार साल से जारी राजशाही का अंत हो गया, लेकिन इस राजशाही के अंत के साथ ही अमरीका और इस्राईल के लिए ईरान नामक "दुधारू गाय" ने दूध देना भी बंद कर दिया।
ईरान की शाही सरकार और इस्राईल के संबंध
उन्तीस नवंबर सन उन्नीस सौ सैंतालिस में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने फिलिस्तीन को अरब और यहूदी क्षेत्रों में बांटने के प्रस्ताव को पारित किया और इस तरह से अमरीका व ब्रिटेन की मदद से फिलिस्तीन में "इस्राईल" बन गया जिसके बाद मूशे शरतूक ने ईरान के तत्कालीन विदेशमंत्री को टेलीग्राफ किया और अपने इस टेलीग्राफ में हजारों वर्ष पहले सायरस महान द्वारा यहूदियों को बचाने की घटना का ज़िक्र करते हुए ईरान की शाही सरकार से अपील की कि वह इस्राईल को मान्यता दे और सायरस की महानता को यहूदिहयों के लिए दोहराए।
ईरान की शाही सरकार ने इस्राईल में ईरानी नागरिकों की संपत्ति की निगरानी के बहाने "अब्बास सैक़ल " के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल इस्राईल भेजा। इस्राईल से संबंध बनाने की दिशा में ईरान की शाही सरकार का यह पहला क़दम था।
इसी दौरान तुर्की ने इस्राईल को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया। तुर्की इस्राईल को मान्यता देने वाला पहला इस्लामी देश बना। ईरान की शाही सरकार को अच्छी तरह से पता चल चुका था कि यहूदी लाबी अमरीका में बेहद शक्तिशाली है, इसके अलावा अरबों से उसके संबंध भी बहुत अच्छे नहीं थे और फिर चौदह मार्च उन्नसी सौ पचास को ईरान की शाही सरकार ने इस्राईल को " कूबूल " कर लिया लेकिन देश विदेश और अरब देशों की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद यह संबंध खत्म कर लिये गये लेकिन यह " तलाक़ " अधिक दिनों तक नहीं चल पाया और 18 अगस्त 1953 को अमरीका और ब्रिटेन ने मिल कर ईरान में विद्रोह करा दिया जिसके बाद एक बार फिर ईरान व इस्राईल के मध्य संबंध बन गये।
ईरान की शाही सरकार ने इस्राईल को तेल बेचने का प्रस्ताव दिया जिसे इस्राईल ने झट से स्वीकार कर लिया क्योंकि अरब देशों ने उसका बहिष्कार कर रखा था, जब मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुन्नासिर ने स्वेज़ नहर के राष्ट्रीयकरण का एलान किया और इस्राईल ने ब्रिटेन और फ्रांस की सेना के साथ मिल कर मिस्र पर हमला किया तो ईरान और इस्राईल के बीच तेल का लेन- देन बढ़ गया।
1957 में ईरान की शाही सरकार और इस्राईल के मध्य गुप्त वार्ता हुई और दोनों के बीच एक डालर तीस सेंट प्रति बैरल तेल के समझौते पर दस्तखत हुए। इस्राईल के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड बिन गोरियन के आदेश से इस्राईली बंदरगाहों पर पाइप लाइनों का जाल बिछाया गया ईरान का तेल इस्राईल के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण हो गया। सन 19 59 में ईरान प्रतिदिन तीस हज़ार बैरल तेल इस्राईल को देता था जो सन 1971 में पच्चावनेव हज़ार बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया।
ईरान इस्राईल को तेल की आपूर्ति करने वाला सब से बड़ा देश था और इसके अलावा ईरान व इस्राईल के संबंध लगभग हर क्षेत्र में विस्तृत थे और इस्राईल के राजनेता और बुद्धिजीवी ईरान के नरेश को बार बार यह याद दिलाते थे कि वह उस सायरस महान की नस्ल से है जिसने ढाई हज़ार साल पहले यहूदी की पूरी जाति को बचा लिया था।
ईरान व इस्राईल की यह दोस्ती ऊपर से ज़्यादा अंदर थी और इस्राईल की इच्छा के बावजूद ईरान की शाही सरकार, देश की जनता और इस्लामी जगत की विशेष परिस्थितियों की वजह से ईरान व इस्राईल के संबंधों को पूरी तरह से सामने लाने का पक्ष में नहीं थी लेकिन ईरान में क्रांति की सफलता के साथ ही तीस वर्षों से जारी यह संबंध खत्म हो गये और इस्राईल को हर क्षेत्र में भारी नुक़सान हुआ। यही नहीं, ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद बनने वाली सरकार ने फिलिस्तीन के समर्थन में अत्याधिक महत्वपूर्ण क़दम उठाया जो निश्चित रूप से फिलिस्तीनियों के लिए आशा की किरण बना।
इस्लामी गणतंत्र ईरान में सब से पहला दूतावास
यह बदले हालात ही थे कि जिस देश के इस्राईल के सब से अधिक गहरे संबंध थे उसी देश ने क्रांति की सफलता के बाद सब से पहले फिलिस्तीन से कूटनैतिक संबंध स्थापित किये।
ईरान में ग्यारह फरवरी 1979 को इस्लामी क्रांति सफल हुई और उसके ठीक एक हफ्ते बाद फिलिस्तीन लिब्रेशन फ्रंट के नेता यासिर अरफात को बुलाकर एक कार्यक्रम में फिलिस्तीनी दूतावास खोल दिया गया। फिलिस्तीन का दूतावास उसी इमारत में खोला गया जिसमें शाही सरकार के ज़माने में इस्राईल का दूतावास था।
ईरान में क्रांति की सफलता के कुछ ही घंटों बाद लोगों ने तेहरान में स्थित इस्राईली दूतावास पर क़ब्ज़ा करके वहां " फिलिस्तीनी दूतावास " का बोर्ड लगा दिया था , ईरान में तत्तकालीन इस्राईली राजदूत युसुफ हार्मलिन अपने तैंतीस कर्मचारियों के साथ ईरान में किसी अज्ञात स्थान में छुप गये थे। बाद में अमरीकी रक्षा मंत्री हार्लोड ब्राउन ने मध्य पूर्व की यात्रा की और इस दौरान उनकी कोशिशों से यह लोग ईरान से निकलने में सफल हुए।
छे दिन बाद यासिर अरफात ईरान आए और क्रांति के बाद ईरान में पहले दूतावास का उदघाटन किया वह क्रांति के बाद ईरान की यात्रा करने वाले पहले विदेशी नेता भी बने।
ईरान में क्रांति की सफलता को अड़तीस वर्ष गुज़र चुके हैं लेकिन इस्राईल से दुश्मनी और फिलिस्तीन से दोस्ती उसी तरह से बाक़ी है और बहुत से विश्लेषकों का मानना है कि ईरान के खिलाफ पूरी दुनिया में अमरीका के नेतृत्व में जो कुछ हो रहा है उसकी अस्ल वजह भी यही है।
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