आले सऊद शेख़ ईसा क़ासिम को तुर्की निर्वासित करने के फिराक़ में, यह हैं कारण
बहरीनी जनता वर्षों से अपने अधिकार पाने की प्रतीक्षा कर रही थी और इसी के लिए उसने 14 फरवरी 2011 को अपनी क्रांति आरम्भ की, यह क्रांति मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के बर्खास्त होने के तीन दिन बाद शुरू हुई, तब से अब तक सरकार की तरह से जाली लगातार दमन के बावजूद जनता अपना विरोध दर्ज करा रही है।
बहरीन की 14 फरवरी 2011 की क्रांति की शुरुआत के समय से ही शेख़ ईसा क़ासिम क्रांतिकारियों और विरोध पार्टी «अलवेफ़ाक़» के आध्यात्मिक गुरू रहे हैं। बहरीन जनता ने शेख़ ईसा क़ासिम के नेतृत्व में आले खलीफा के अत्याचार के विरुद्ध और अपने अधिकारों पाने के लिए शांतिपूर्ण विरोध शुरू किया, और जब भी आले खलीफा ने जनता से वार्ता के बहाने, क्रांति को शांत करने की कोशिश की, शेख़ ईसा क़ासिम ने बाक़ी उलेमा के साथ आले खलीफ़ा की साज़िशों को उजागर कर दिया, और हमेशा लोगों के साथ रहे।
आले खलीफा ने कुछ महीनों पहले बहरीनी शियों के नेता शेख़ ईसा क़ासिम की बहरीनी नागरिकता समाप्त करने के आदेश के बाद राख के नीचे छिपी चिंगारी को फिर से भड़का दिया, और अब उनके निर्वासित होने की संभावना बढ़ गई है, जिसके बाद से इस देश की जनता कफ़न पहन कर अपने लीडर के समर्थन में सड़कों पर उतर आई है, ताकि सऊदी समर्थित सरकार का ख़ात्मा करें।
लेकिन आले ख़लीफ़ा को अभी तक कोई ऐसा इस्लामी देश नहीं मिला है जहां शेख़ को निर्वासित किया जाए और वहां की सुरक्षा संस्थान शेख़ और उनके साथियों पर नजर रखें और उसकी रिपोर्ट बहरीन को दे।
और दूसरी तरफ एक ऐसे देश की खोज है कि जिसमें यह दो शर्तें भी पाई जाती हों:
एक यह कि इस देश में शियों की संख्या कम हो, और उन्हें मीडिया, आर्थिक और राजनीतिक सुविधाएं प्रदान न हों।
और दूसरी शर्त यह है कि ईरान और उसके सहयोगियों का इस देश में प्रभाव न हो, कि कहीं ऐसा न हो शेख़ क़ासिम ईरान की मदद से एक मजबूत विरोधी में तब्दील हो जाएं।
इस सब चीज़ों को देखते हुए बहरीन के लिए तुर्की सबसे अच्छा विकल्प है, क्योंकि इसमें शेख़ के निर्वासिन की सभी शर्तें पाई जाती हैं, बल्कि तुर्की अमेरिका और इस्राईल से भी अच्छे संबंध हैं, और यह बात बहरीन के लिए बहुत अच्छी साबित हो सकती है।
इसलिए बहरीनी राजा ने उर्दोग़ान से शेख़ क़ासिम को तुर्की निर्वासित करने का समझौता किया है, इसके बदले में बहरीन तुर्की में निवेश करेगा, ताकि तुर्की वित्तीय कठिनाइयों हल हो सके।
शेख़ ईसा क़ासिम मामले पर एक आवश्यक दृष्टिकोण:
सच्चाई यह है कि पिछले कुछ महीनों में पश्चिमी और अरबी गठबंधनों को सीरिया और इराक में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है।
दूसरी ओर ईराक़ के अलअंबार प्रांत के फल्लूजा शहर मुक्त होना जिसे मीडिया आईएस के अड्डे के नाम से याद करता है, इस वजह से इन आतंकवादियों के समर्थक मुश्किल में पढ़ गए हैं, क्योंकि इराक़ और सीरिया को जलाने का उनका अस्ली उद्देश्य जनता की आवाज़ और क्रांति को दबाना था जिसमें वह अब तक विफल रहे हैं।
यही कारण है कि बहरीन, अमेरिका के पांचवें बड़े नौसैनिक बेड़े और सऊदी अरब के पड़ोसी होने के नाते ध्यान का केन्द्र बना है, क्योंकि क्रांति की सफलता से उनके हित खतरे में पढ़ जाएंगे और निःसंदेह बहरीन में शियों की क्रांति की सफ़लता सऊदी अरब के अलशर्क़िया क्षेत्र के शियों को हौसला देगा जो आले सऊद के विरुद्ध विद्रोह के लिए तैयार हैं, इसलिए आले खलीफा ने बहरीन शियों के नेता को निर्वासित करने का फैसला किया है ताकि स्थिति पर काबू पा सके।
आले खलीफा के इस कदम क्षेत्रीय स्थिति और राजनीति से अलग नहीं है और यह केवल आले ख़लीफ़ा सरकार का फैसला नहीं है बल्कि इसमें आले सऊद भी शामिल है।
सऊदी अरब ने पिछले कुछ समय में यह दिखा दिया है कि वह मध्यपूर्व और अफ़्रीक़ा में जनता के बीच से उभरे एक शक्तिशाली नेता से डर रहा है। क्योंकि उसे अच्छी तरह पता है कि क्षेत्र में किसी भी देश में लोकतंत्र आना, सऊदी की तानाशाही बादशाहत और रूढ़िवादी युग की समाप्ति को ओर एक क़दम है। इसीलिए अपनी सारी कोशिशें, क्षेत्र में लोकतंत्र के विनाश के लिए लगा रहा है।
आले सऊद ने अपना पूरा ज़ोर लगा दिया कि मुर्सी सरकार और मिस्र क्रांति को विफल बना सके, यमन की पीड़ित जनता को 18 महीनों से हिंसा और बर्बरता का निशाना बना रहा है, जबकि सऊदी शियों के नेता अयातुल्ला नम्र को शहीद कर चुका है।
और अब शायद शेख़ ईसा क़ासिम की बारी है कि उन्हें बहरीनी क्रांति से दूर कर दिया जाए।
इसका सबसे बड़ा सबूत, सऊदी राजा का लीक हुआ पत्र है, जिसमें उसने आले खलीफा से शेख़ ईसा क़ासिम के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी
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