ट्रंप की मुसलमान विरोधी नीति पर यूरोप में हंगामा लेकिन अरब देशों में चुप्पी क्यों?
जर्मनी के एस समाचार पत्र ने ट्रंप द्वारा सात मुसलमान देशों के नागरिकों के अमरीका में प्रवेश पर प्रतिबंध अरब देशों की चुप्पी और उसके विरुद्ध कुछ पूरोपीय देशों की प्रतिक्रिया रिपोर्ट पेश की है।
जर्मनी के एक समाचार पत्र के अनुसार ट्रंप की नीतियों पर अरब देशों के सत्ताधारियों ने अमरीका के साथ अपने संबंधों के डर से चुप्पी साथ रखी है।
इस समाचार पत्र ने पश्चिम के कुछ देशों की तरफ़ इशारा किया है जिन्होने ट्रंप के इस फैसले का विरोध और उसकी निंदा की है जैस फ़्रांस, जर्मनी कनाडा आदि।
इसी के साथ ही कनाडा का राष्ट्रपति जस्टिन ट्रोडो ने अमरीका ने निकाले गए तमाम शरणार्थियों का अपने देश में स्वागत किए जाने की बात कही है।
जब कि मिस्र की अलअज़हर यूनिवर्सिटी ने कनाडा के कबक की मस्जिद पर हुए आतंकवादी हमले की निंदा की है लेकिन उन्होंने ट्रंप की मुसलमान विरोधी नीति पर कुछ भी नहीं कहा है।
इसी प्रकार 56 देशों पर आधारित इस्लामी सम्मेलन संगठन ने भी अलअज़हर की भाति ट्रंप के इस फ़ैसले पर चुप्पी साथे रखी है।
जब कि मिस्र के पूर्व विदेश मंत्री और अरब लीग के महासचिव तहमद अबू अलग़ैज़ ने इस क़ानून के लागू होने के दो दिन बाद प्रतिक्रिया देते हुए इसकी निंदा की है।
इस समाचार पत्र के अनुसार अरब दुनिया में प्रमुख स्थान रखने वाले सऊदी अरब और मिस्र जैसे देशों ने इस निर्णय के विरुद्ध कोई स्टैंड नहीं लिया है, क्योंकि वह अमरीका की नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहते हैं, दूसरी तरफ़ ट्रंप का यह फ़ैसला अरब देशों के कट्टर शत्रु ईरान को शामिल हुआ है जिसका अर्थ यह है कि परमाणु समझौते के बाद अब ईरान का क्षेत्र में प्रभाव कम होगा।
ट्रंप ने अपनी इस मुसलमान विरोधी नीति का कारण आतंकवाद से लड़ाई और 9/11 जैसे हमलों को रोकना बताया है, जब कि 9/11 के हमलावर और जहाज़ को हाइजैक करने वाले संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, मिस्र और लेबनान जैसे देशों के थे, लेकिन इन में से किसी भी देश को प्रतिबंध वाली लिस्ट में नहीं रखा गया है!
इसी प्रकार जहां आतंकवादी संगठनों में लड़ने वाले अधिकतर जेहादी अफ़गानिस्ता, पाकिस्तान, ट्यूनीशिया, मोरक्को जैसे देशों के हैं लेकिन इन देशों का नाम भी प्रतिबंधित लिस्ट में दिखाई नहीं देता है।
इस समाचार पत्र ने लिखा है कि सच्चाई तो यह है कि इन सात देशों में से किसी भी देश के नागरिक ने कभी भी अमरीका में किसी भी आतंकवादी घटना को अंजाम नहीं दिया है, तो प्रश्न यह है कि ट्रंप के इस फ़ैसले के पीछे का कारण क्या है?
राजनीतिक अध्ययन अनुसंधान संस्थान के अनुसार पिछले दो दशक में अमरीका की ज़मीन पर इस देश का कोई भी नागरिक इन सात देशों के नागरिकों द्वारा नहीं मारा गया है।
स्पष्ट है कि ट्रंप ने जिन देशों को प्रतिबंधित लिस्ट में डाला है उनमें से किसी के साथ भी अमरीका के आर्थिक और व्यापारिक हित नहीं जुड़े हुए हैं, अब हम आगे उन देशों के नामों की तरफ़ इशारा करने जा रहे हैं जिनका आतंकवाद के साथ गहरा संबंध है लेकिन उन देशों का इस लिस्ट में नाम नहीं है।
राजनीतिक अध्ययन अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के अनुसार 1975 से 2015 के बीच लगभग 3000 अमरीकी सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात औऱ मिस्र के नागरिकों द्वारा मारे गए हैं जिनमें से अधिकतर 9/11 में मारे गए थे, लेकिन अमरीका अब भी इन तीन देशों के नागरिकों का अपने देश में स्वागत करता है और इस देश की नागरिक अब भी अमरीका का वीज़ा ले कर यात्रा पर जा सकते हैं!!
इस समाचार पत्र ने आगे लिखाः मिस्र में तख़्तापलट करने वाले लीडर अब्दुल फ़त्ताह सीसी की ख़ामोशी बताती है कि वह ट्रंप सरकार के साथ संबंधों को अंधकारमयी नहीं बनाना चाहते हैं।
याद रहे कि अपने चुनाव प्रचार अभियान में ट्रंप ने सीसी को अच्छा व्यक्ति बताया था, सीसी ने भी अमरीका के सामने शर्त रखी है कि व्हाइट हाऊस मिस्र अख़वानुल मुस्लेमीन संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित करने में समर्थन करेगा।
यह तो मिस्र की बात थी लेकिन दूसरी तरफ़ सऊदी अरब अमरीका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को संकट में नहीं डालना चाहता है, क्योंकि सऊदी अरब वाशिंगटन के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों में से है जो उसकी तेल आवश्यकताओं को पूरा करता है और उसके बदले सेना के लिए हथियारों को अमरीका से ख़रीदता है। ओबामा सरकार में इस देश ने अमरीका के साथ 120 अरब डॉलर से अधिक का अनुबंध किया है।
वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार ट्रंप ने अक्तूबर 2015 चुनाव अभियान की शुरूआत करने के कुछ समय बाद ही अपने शेयर वाली आठ होटल कंपनियों का सऊदी अरब में पंजीकरण कराया है।
इसी प्रकार अपने पूरे प्रचार अभियान के दौरान ट्रंप ने सऊदी अरब की प्रशंसा की है।
ट्रंप ने कहाः वह हमसे फ्लैट ख़रीदते हैं 40 से 50 मिलयन डॉलर ख़र्च करते हैं, क्या मुझे उनसे नफ़रत करनी चाहिए? मैं उनको बहुत चाहता हूँ?
इसी प्रकार ट्रंप की कंपनी दुबई में दो गोल्फ़ कोर्स के पट्टे और एक निर्माणाधीन लक्ज़री विला के प्रबंधन का अनुबंध किया है।
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