क़ुरआन इमाम अली (अ) की निगाह में

क़ुरआन इमाम अली (अ) की निगाह में

जान लो! क़ुरआन ऐसा नसीहत करने वाला है जो धोखा नही देता, और ऐसा हिदायत करने वाला है जो गुमराह नही करता, और ऐसा क़ाऍल करने वाला है जो झूठ नही बोलता, कोई भी क़ुरआन का हम नशीन नही हुआ मगर ये कि उस के इल्म में इज़ाफ़ा और दिल की तारीकी और गुमराही में कमी हुई ।

जान लो कि क़ुरआन के होते हुए किसी और चीज़ की ज़रूरत नही रह जाती और बग़ैर क़ुरआन के कोई बे नियाज़ नही है।

पस अपने दर्दों का इलाज क़ुरआन से करो और सख़्तियों में उस से मदद मांगो, कि क़ुरआन में बहुत बड़ी बीमारियों कुफ़्र, निफ़ाक़, सर कशी और गुमराही का इलाज मौजूद है।

पस क़ुरआन के ज़रिये से अपनी ख़्वाहिशों को ख़ुदा से तलब करो, और क़ुरआन की दोस्ती से ख़ुदा की तरफ़ आओ, और क़ुरआन के ज़रिये से ख़ल्क़े ख़ुदा से कुछ तलब न करो इस लिये कि ख़ुदा से क़ुरबत के लिए क़ुरआन से अच्छा कोई वसीला नही है, आगाह रहो!कि क़ुरआन की शिफ़ाअत मक़बूल, और उसका कलाम तस्दीक़ शुदा है। क़यामत में क़ुरआन जिस की शिफ़ाअत करो वह बख़्श दिया जाएगा, और क़ुरआन जिस की शिकायत करे वह महकूम है, क़यामत के दिन आवाज़ लगाने वाला आवाज़ लगाएगा

“जान लो! जिस के पास जो भी पूंजी है और जिस ने जो भी काटा है उस को क़ुरआन पर तौला जाएगा” पस तुम को क़ुरआन पर अमल करना चाहिये, क़ुरआन की पैरवी करो और उसके ज़रिए ख़ुदा को पहचानो, क़ुरआन से नसीहत हासिल करो और अपनी राए व नज़र को क़ुरआन पर अरज़ा करो और अपने मतलूबात को क़ुरआन के ज़रिए से नकार दो।

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