फ़ातेमा ज़हरा (स) पर ईश्वर की अनुकंपाएं अहले सुन्नत की किताबों से
बुशरा अलवी
ईश्वर ने पैग़म्बर (स) की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) पर विशेष मेहरबानिया की हैं और उनको विशेष प्रकार की अनुकंपाएं दी हैं, और इस प्रकार आपको दूसरों से श्रेष्ठता प्रदान की है।
हम यहां पर ईश्वर की अनुकंपाओं के उन नमूनों को प्रस्तुत करेंगे जो अहलेसुन्नत की किताबों में आए हैं।
1. हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) का विवाह ईश्वरीय आदेश से हुआ
अल्लामा अब्दुर्रऊफ़ मनावी लिख़ते हैं
و کان تزویج فاطمة لعلی بامر الله تعالی. فعن ابن مسعود: قال (ان الله تعالی امرنی ان ازوج من علی) و رواه الطبرانیو و رحاله ثقات(1)
फ़ातेमा (स) का अली (अ) के साथ विवाह ईश्वर के आदेश से था। इस बारे में इब्ने मसऊद से रिवायत है कि पैग़म्बर (स) ने फ़रमायाः जान लो कि ईश्वर ने मुझे आदेश दिया है कि फ़ातेमा (स) की शादी अली (अ) से कर दूं इस चीज़ की तबरानी ने रिवायत की है और उसके सारे रावी विश्वस्नीय हैं।
वह आगे लिखते हैं
... واما وقوع الترویج ابالامر الالهی....(2)
शादी का आदेश अली (अ) के लिए था और इससे पहले अबूबक्र और उमर ने उनसे शादी करने की इच्छा प्रकट की थी (और पैग़म्बर ने इन्कार कर दिया था) और फ़ातेमा (स) का मेहर अली (अ) की ज़िरह थी, यह सब वह बातें हैं जिनके बारे में किसी प्रकार का संदेह नहीं है।
2. ख़ुदा और रसूल (स) की मर्ज़ी फ़ातेमा (स) की मर्ज़ी में
सैय्यद अहमद साया अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के बारे में लिखते हैं
فانی قد استخرت الله ... لان رضا الزهرا هو رضاء لله .. و لرسوله. قال تعالی (و الله و رسوله احق ان یرضوه)...(3)
मैंने ख़ुदा से इस्तेख़ारा किया कि सिद्दीक़ए ताहेरा हज़रत फ़ातेमा (स) के बारे में फ़ज़ीलतों को एकत्र करूं, और मैं ख़ुदा से चाहता हूं कि इस कार्य में वह मेरी सहायता करे क्योंकि ज़हरा (स) की मर्ज़ी ही ख़ुदा और उसके रसूल (स) की मर्ज़ी है। ख़ुदा ने फ़रमाया है (और ख़ुदा एवं उसका रसूल अधिक योग्य हैं कि उनकी मर्ज़ी को चाहा जाए) रसूले ख़ुदा (स) ने हज़रत फ़ातेमा (स) से फ़रमायाः मैं तुम्हारी प्रसन्नता पर प्रसन्न और तुम्हारे क्रोध पर क्रोधित होता हूं।
3. फ़ातेमा ज़हरा (स) पवित्र क़ुरआन में
अहमद ख़लील जोमोअह जो कि सुन्नी विद्वान हैं लिखते हैं
فی القران کریم مواضع تشیر الی مکانة فاطمة الزهرا... و مکانة اولادها ...
و فی سورة آل عمران....
و قد ورد فی التفسیر والصحاح و السنن ... إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّـهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًا (4)
... و فی سورة الشوری... قُل لَّا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْبَىٰ (5)
.... فنزل قول الله عزوجل ... يُوفُونَ بِالنَّذْرِ وَيَخَافُونَ يَوْمًا كَانَ شَرُّهُ مُسْتَطِيرًا * وَيُطْعِمُونَ الطَّعَامَ عَلَىٰ حُبِّهِ مِسْكِينًا وَيَتِيمًا وَأَسِيرًا * إِنَّمَا نُطْعِمُكُمْ لِوَجْهِ اللَّـهِ لَا نُرِيدُ مِنكُمْ جَزَاءً وَلَا شُكُورًا(6)
क़ुरआन में कुछ ऐसे स्थान हैं जो हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की महानता और पैग़म्बर (स) के घर में उनकी औलाद की महानता की तरफ़ इशारा करती हैं, वह ख़ानदान जिससे ईश्वर ने बुराई और अपवित्रता को दूर कर दिया और उनको पूर्णरूप से पवित्र कर दिया है।
और सूरा आले इमरान में नजरान के ईसाईयों और मुबाहेला के अनतर्गत हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) और आपकी औलाद के बारे में बहुत ही सूक्ष्म बातों की तरफ़ इशारा किया गया है।
इसी प्रकार क़ुरआन में दूसरे स्थानों पर भी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के बारे में बयान किया गया है कि जिनमें से सूरा अहज़ाब की एक आयत है जो इस बात की दलील है।
तफ़्सीर और सहीह और सुनन में आया है कि पैग़म्बर इस्लाम (स) छः महीने तक सुबह की नमाज़ के समय फ़ातेमा (स) के घर के पास से गुज़रते थे और फ़रमाते थे (नमाज़ हे अहलेबैत नमाज़, निःसंदेह ईश्वर ने इरादा किया है कि अपवित्रता तो तुम से दूर कर दे और तुमको पवित्र बना दे)
हदीस में आया है कि रसूले ख़ुदा (स) ने हसन (अ) हुसैन (अ) अली (अ) और फ़ातेमा (स) पर एक चादर डाली और फिर फ़रमायाः (हे ईश्वर! यह मेरे अहलेबैत हैं और मेरे ख़ास हैं, हर प्रकार की अपवित्रता को इनसे दूर कर और उनको पूर्णरूप से पवित्र बना)...
और सूरा शूरा में हज़रत ज़हरा (स) और उनकी औलाद की तरफ़ आयत में इशारा हुआ कि ख़ुदा ने फ़रमायाः (कह दो कि मैं कोई अज्र (परिश्रमिक) नहीं चाहता हूं मगर यह कि मेरे परिवार वालों से मोहब्बत करो)
मुफ़स्सिरों ने लिखा है कि हसन (अ) और हुसैन (अ) बीमार हुए तो अली (अ) फ़ातेमा (स) और उनकी दासी फ़िज़्ज़ा ने नज़्र की कि अगर यह दोनों स्वस्थ हो गए तो तीन दिनों तक रोज़ा रखेंगे। दोनों स्वस्थ हो गए, तो उन्होंने पहले दिन रोज़ा रखा, और खाना जो कि जौ की कुछ रोटियां थीं को दस्तरख़ान पर खाने के लिए लाया गया, कि अचानक एक मांगने वाला आया और सभी ने अपनी अपनी रोटियां उसको दे दीं और भूखे रहे। दूसरी रात यतीम आया और इन लोगों ने अपनी रोटियां उसको दे दीं और भूखे सो गए, और तीसरी रात एक असीर (क़ैदी) आया और सबी ने उसको दे दिया और फिर भूखे सो रहे, और यहीं वह समय था कि जब यह आयत नाज़िल हुईः (वह अपनी नज़्र को पूरा करते हैं, और उस दिन से कि जिसका अज़ाब फैला (सबको घेरने वाला) है डरते हैं और (अपने) खाने को बावजूद इसके कि उसको चाहते (आवश्यकता रखते) हैं मिस्कीन, यतीम और असीर को देते हैं (और कहते हैंः) मैं तुमको ख़ुदा के लिए खिलाते हैं और तुमसे कोई इनआम या धन्यवाद नहीं चाहते हैं)
4. हज़रते ज़हरा (स) और पैग़म्बर की नस्ल
तौफ़ीक़ अबू इल्म कहते हैं
کریمة الرسول و اصغر بناته... و قد انقطع نسل الرسول الا من فاطمة.... فحصر فی ولدها ذریة الرسول...(7)
करीमए पैग़म्बर (स) और आपकी सबसे छोटी बेटी (अहले सुन्नत के अक़ीदे के अनुसार हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) पैग़म्बर की एकमात्र बेटी नहीं थी बल्कि आपकी और भी बेटियां थीं) और उनकी सबसे चहीती। पैग़म्बर (स) की नस्ल फ़ातेमा (स) के अतिरिक्त समाप्त हो गई (यानी यह फ़ातेमा (स) और उनकी औलाद ही थीं जिनसे पैग़म्बर (स) की नस्ल चली अगर यह ना होती तो पैग़म्बर (स) की नस्ल समाप्त हो जाती) और इस प्रकार ईश्वर ने उनको बड़ी नेमत दी, और उनकी औलाद में पैग़म्बर (स) की नस्ल को रखा और सबसे महान नस्ल जिसके बारे में अरबों को पता था आपके माध्यम से सुरक्षित किया। फ़ातेमा (स) इस पवित्र नस्ल के लिए ज़र्फ़ और ख़ुश्बू के फ़ैलने का स्थान और अहलेबैत की महानता का स्थान थीं, बल्कि आप वह सबसे पवित्र मां हैं जिसको संसार और ज़माने ने देखा है...।
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स्रोत
(1) इतहाफ़ुल साएल, पेज 34, जमउल जवामे, सियूती, जिल्द 1, पेज 162
(2) वही पेज 49
(3) अलअज़वा फ़ी मनाक़िबिज़्ज़हरा, सैय्यद अहमद साया, पेज 17
(4) सूरा अहज़ाब आयत 33
(5) सूरा शूरा आयत 23
(6) सूरा इन्सान आयत 7 से 9
(7) वही पेज 33
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