कभी किसी को बुराभला न कहो
कभी किसी को बुराभला न कहो
एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम अपने एक साथी के साथ बाज़ार से गुज़र रहे थे। इमाम के साथी के पीछे-पीछे उसका एक दास चल रहा था।
एक बार इमाम सादिक़ के साथी ने पीछे मुड़कर देखा और जब दास कहीं दिखाई नहीं पड़ा तो उससे उसने एसे अपशब्द कहे जिसका अर्थ होता है अपनी माता के दुष्कर्मों की निशानी।
इमाम ने जब यह सुना तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने बहुत दुखी होकर कहा कि मैं तो तुम्हें बहुत ही पवित्र और ईश्वर से भय रखने वाला व्यक्ति समझता था। तुमने इतनी ग़लत बात उस दास के लिए क्यों कही? तुमको यह अधिकार किसने दिया?
इमाम के साथी ने कहा कि आप दुखी न हों क्योंकि यह व्यक्ति अनेकेश्वरवादी है। उसने कहा कि इसकी माता अमुक क़बीले की है और वे सबके सब अनेकेश्वरवादी हैं।
इसपर इमाम ने उत्तर दिया कि अगर अनेकेश्वरवादी है तो क्या हुआ। विवाह के विशेष रीति-रिवाज तो सबके यहां होते हैं। उसके माता-पिता ने भी अपनी रीतियों और परंपरा के अनुसार ही विवाह किया होगा। इस प्रकार यह दास अपनी माता की वैध संतान है। तुमने उसपर कैसे इतना बुरा आरोप लगा दिया? उसके बाद से इमाम ने कभी उस व्यक्ति के यहां आना-जाना नहीं रखा।
यह कहानी सुनाकर हम आपको केवल यह बताना चाहते हैं कि दूसरों को अपशब्द कहने वालों विशेषकर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के प्रति श्रद्धा रखने वालों को इस बात की ओर से सचेत रहना चाहिए कि वे सदैव ही दूसरों को अपशब्द कहने से बचें। यह बुरी आदत समाज में उनकी छवि को बिगाड़ने के अतिरिक्त ईश्वर के उनसे क्रोधित होने का कारण बनती है क्योंकि इससे दूसरे के अधिकारों का हनन होता है और वे ईश्वर के समक्ष उत्तरदायी हैं।
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