इस्लाम में मेहमान का सम्मान

इस्लाम में मेहमान का सम्मान

हज़रत अली अलैहिस्सलाम

तुम्हारी दुनियों से तीन चीज़ों को दोस्त रखता हँ, लोगों को मेहमान बनाना, ख़ुदा की राह में तलवार चलाना और गर्मियों में रोज़ा रखना।

और फिर फ़रमाया

मकारिमे अख़्लाक़ दस हैं

हया, सच बोलना, दिलेरी, मांगने वाले को अता करना, खुश गुफ्तारी, नेकी का बदला नेकी से देना, लोगों के साथ रहम करना, पड़ोसी की हिमायत करना, दोस्त का हक़ पहुंचाना और मेहमान की ख़ातिर करना।

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इमाम हसन अलैहिस्सलाम

मेहमान का एहतेराम करो चाहे वह काफ़िर ही क्यों न हो।

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रसूले ख़ुदा सल्लललाहो अलैहे वआलेही वसल्लम

कि जब अल्लाह किसी बन्दे के साथ नेकी करना चाहता है तो उसे तोहफ़ा भेजता है। लोगों ने सवाल किया कि वह तोहफ़ा क्या है?

फ़रमाया मेहमान, कि जब आता है तो अपनी रोज़ी लेकर आता है और जब जाता है तो अहले ख़ाना के गुनाहों को लेकर जाता है।

मेहमान स्वर्ग के रास्ते का मार्गदर्शक है।

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रसूले ख़ुदा सल्लललाहो अलैहे वआलेही वसल्लम

खाना खिलाना मग़फ़िरते परवरदिगार है।

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रसूले ख़ुदा सल्लललाहो अलैहे वआलेही वसल्लम

परवरदिगार खाना खिलाने को पसन्द करता है।

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इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम

जो भी ख़ुदा और रोज़े क़ियामत पर ईमान रखता है उसे चाहिये कि मेहमान का एहतेराम करे।

तुम्हारे घर की अच्छाई यह है कि वह तुम्हारे गरीब रिश्तेदारों और बेचारे लोगों का ठिकाना हो।

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रसूले ख़ुदा सल्लललाहो अलैहे वआलेही वसल्लम

जो भी मोमिन मेहमान को देखकर प्रसन्न होता है ख़ुदा उसके तमाम गुनाह माफ़ कर देता है चाहे ज़मीनो-आसमान उसके पापों से भरे हों।

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हज़रत अली अलैहिस्सलाम

शरीरों की शक्ति खाने में है और आत्मा की शक्ति खिलाने में है।

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