शत्रु के साथ सहनशील रहो : इमाम अली (अ)
शत्रु के साथ सहनशील रहो : इमाम अली (अ)
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि अपने शत्रुओं के साथ सहनशील रहो और मित्रों के प्रति अपनी मित्रता को विशुद्ध बनाओ।
यह दोनों बातें जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कही हैं यह दोनों ही हमारी सोच और स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायक हैं क्योंकि सहनशीलता बरतने वाले और मित्रों के प्रति निष्ठावान रहने वाले लोगों को सभी पसंद करते हैं और मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि वह चाहता है कि लोग उससे प्रेम करें और जब उसे इस बात पर विश्वास हो जाता है कि लोग उसके प्रति अच्छी भावना रखते हैं तो वह शान्ति का आभास करता। मन की यही शान्ति उसमें प्रगति, परिश्रम तथा और जनसेवा की भावना उत्पन्न करती है और इस प्रकार वह व्यक्ति समाज में सम्मान के साथ-साथ तन और मन दोनों का स्वास्थ्य भी प्राप्त कर लेता है।
नवीन अनुसंधानों से पता चलता है कि मन में शत्रुतापूर्ण भावना यदि पलती रहे तो ब्लड प्रेशर बढ़ाने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है और उससे जुड़े जो ख़तरनाक रोग होते हैं वह तो आप जानते ही हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने शारीरिक या मानसिक तनाव के संबन्ध में अनुसंधान करते हुए पाया कि क्षमाशील व्यक्तियों में अर्थात जो बड़ी सरलता से किसी की ग़लती को क्षमा कर देते हैं। जब वे शांत होते हैं तो उनका ब्लड प्रेशर साधारण स्तर से नीचे होता है और जब क्रोध में हो तब ब्लडप्रेशर बढ़ने की दर उन लोगों से बहुत कम होती है जिनमें क्षमाशीलता कम और मन में द्वेश की भावना रखने की आदत अधिक होती है।
इस शोध के अनुसंधानकर्ता के अनुसार शत्रुता की बात जब की जाती है तो किसी का भी ख़ून खौल सकता है परन्तु ग़लती का क्षमा करना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। यहां तक कि इस शोध से पता चलता है कि क्षमाशील व्यक्ति को चिकित्सक की आवश्यकता बहुत कम पड़ती है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के पौत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि यदि कोई मेरे एक कान में मुझे अपशब्द कहे और दूसरे कान में क्षमा मांग ले तो मैं उसे तुरन्त क्षमा कर देता हूं। जितनी जल्दी क्षमा कर दिया जाए उतनी ही जल्दी मानसिक तनाव समाप्त हो जाता है। जो लोग शत्रुता और द्वेष की भावना को दूर करने में सक्षम होना चाहते हैं उन्हें चाहिए कि एक तो स्वयं को ग़लती करने वाले के स्थान पर रखकर समझने का प्रयास करें कि उसने वह ग़लती कैसे और क्यों की और फिर अपनी पूरी शक्ति लगाकर स्वयं को क्षमा करने पर तैयार करें और फिर इस प्रयास को निरंतर जारी रखें।
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