इमाम हुसैन और मानवता

इमाम हुसैन और मानवता

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कर्बला में ईश्वरीय प्रेम और मानवता को दृष्टिगत रखकर जो क़ुर्बानियां दीं उनको पूरा संसार जानता है। 

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जीवन से संबन्धित एक घटना का उल्लेख कर रहे हैं जिससे आम जीवन में ईश्वर के प्रति उनके प्रेम की झलक दिखाई देती है। 

 

एक दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के एक दास ने कोई एसा कार्य किया जिससे इमाम को उसपर क्रोध आ गया और उन्होंने उसे दंडित करने का आदेश दिया। 

 

यह सुनकर दास ने पवित्र क़ुरआन की वह आयत पढ़ना आरंभ कर दी जिसमें ईश्वर कहता है कि पवित्र लोग अपना ग़ुस्सा पी जाते हैं। 

 

ईश्वर का यह कथन सुनते ही इमाम हुसैन ने कहा कि इसे छोड़ दो।  इसके बाद दास ने एक अन्य आयत पढ़ी जिसका अर्थ होता है कि पवित्र लोग, लोगों को क्षमा कर देते हैं।  इमाम हुसैन ने उससे कहा कि मैंने तुझे क्षमा कर दिया। 

 

दास ने क़ुरआन की एक और आयत पढ़ी कि ईश्वर भलाई करने वालों से प्रेम करता है।  यह सुनकर इमाम ने कहा कि मैंने तुझे स्वतंत्र कर दिया और अबतक तुझे जो कुछ दिया था उसका दोगुना और दिया।  इस प्रकार से ज्ञात होता है कि क्रोध की स्थिति में भी ईश्वर का आदेश सुनकर मनुष्य स्वयं को नियंत्रित कर सकता है और अपने कर्म को उसके आदेशानुसार बना सकता है।

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