अधिनुक युग में इस्लाम का विस्तार और तरक़्क़ी
अधिनुक युग में इस्लाम का विस्तार और तरक़्क़ी
वर्तमान समय में इस्लाम धर्म ने संपूर्ण विश्व में बड़ी संख्या में लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। इस्लाम की यह चौतरफ़ा प्रगति उसकी उज्जवल शिक्षाओं एवं मूल्यों का मानव सृष्टि एवं बुद्धि से समरूपता की कृतज्ञ है। इस्लाम की ओर अरबों की अभिरूचि इस्लामी जागरुकता के रूप में उभर कर सामने आयी है कि जो समस्त राष्ट्रों को विशुद्ध एवं वास्तविक इस्लाम की ओर आकर्षित कर रही है। दूसरी ओर अमरीका में इस्लाम के प्रति रूचि में वृद्धि हुई है और दिन प्रतिदिन इस्लाम स्वीकार करने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। जर्मनी के पूर्व विदेश मंत्री किलौस किन्केल के कथानुसारः अब से तीस वर्ष पूर्व विश्व में मुसलमानों की संख्या 18 प्रतिशत थी जबकि वर्तमान में विश्व जनसंख्या की एक चौथाई संख्या अर्थात् एक अरब चालीस करोड़ मुसलामन हैं।
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पूर्व की तुलना में इस्लाम धर्म में रूची की लहर वर्तमान समय में व्यापक रूप से निरंतर जारी है तथा विभिन्न राष्ट्र इस्लाम में अभूतपूर्व रूची दिखा रहे हैं। व्यापक स्तर पर इस्लाम में अभिरुचि के विश्लेषण हेतु अनेक कारणों और कारकों को प्रस्तुत किया जा सकता है। मानव स्वभाव में ईश्वर की खोज के अनुरूप इस्लाम का होना, संपूर्ण जगत पर इस ईश्वरीय धर्म की छत्रछाया का होना एवं मानव अस्तित्व के समस्त आयामों पर इसका ध्यान तथा उसकी समूची आवश्यकताओं का उत्तर, इस्लाम की ओर विभिन्न राष्ट्रों के झुकाव के कुछ कारण हैं। नेपिल विश्विद्यालय की प्रोफ़ेसर श्रीमती लौरा वैक्सिया वेग्लियरि अपनी पुस्तक इटली के हृदय से इस्लाम की आवाज़ में इस्लाम की सफलता के रहस्यों की ओर संकेत करते हुए कुछ रोचक बिंदुओं का वर्णन करती हैं। इस्लाम के सिद्धांतों की सर्वश्रेष्ठता के संबंध में आश्चर्य व्यक्त करते हुए वह लिखती हैं कि आज अनेक उदारवादी लेखक इस धार्मिक एवं राजनीतिक क्रांति की प्रगति की तीव्रता से आश्चर्यचकित हैं और प्रश्न करते हैं कि इस्लाम की इस तीव्र सफलता का कारण क्या है? इस प्रश्न के उत्तर में श्रीमती वेग्लियरि कहती हैं कि में स्वयं को ऐसे सिद्धांत के समक्ष पाती हूं कि जिसकी शैली विस्मयकारी एवं आश्चर्यजनक है इस लिए कि यह धर्म न केवल मावन जीवन के बारे में अपनी शिक्षाओं का वर्णन करता है बल्कि जीवनदायी एवं सर्वश्रेष्ठ सिद्धांतों का संकलन कर समाज को शाश्वत सुख एवं मुक्ति प्रदान करता है। अपने आपमें यह सबसे बड़ा कारण है कि मनुष्य संतोष से भरे मन से यह स्वीकार कर सकता है कि वास्तव में इस्लाम ईश्वरीय एवं पारलौकिक धर्म है।
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संपूर्ण विश्व में आध्यात्मिकता में वृद्धि एवं इस्लामी जागरुकता में विस्तार के साथ ही इस्लाम विरोधियों की गतिविधियों में भी व्यापक वृद्धि हुई है। वर्तमान समय में इस्लाम विरोधी एवं इस्लाम से भयभीत घात लगाकर बैठे हुए हैं ताकि प्रत्येक घटना को इस्लाम के विस्तार के मार्ग में रुकावट उत्पन्न करने हेतु बहाने के रूप में प्रयोग करें। यद्यपि इस्लाम से भय तथा इस्लाम का विरोध कोई नया विषय अथवा वर्तमान समय से विशेष नहीं है। व्याख्याता धर्म इस्लाम के प्रकट होने तथा 1400 वर्ष पूर्व उसके चमकते हुए सूर्य एवं उज्जवल ज्योतियों के उदय के प्रारम्भ से ही विभिन्न रूपों में यह विषय मौजूद था। इस्लाम के प्रारम्भ में तथा मक्के और मदीने में ही इस्लाम विरोधियों विशेषकर बहुईश्वरवादियों एवं यहूदियों ने इस्लाम पर दोषारोपण द्वारा उसके प्रकाशयुक्त चेहरे को दाग़दार बनाने का अथक प्रयास किया और मुसलमानों के विरुद्ध वातावरण में ज़हर घोल दिया। अंतिम ईश्वरीय धर्म के विरुद्ध इस प्रकार का व्यावहार पहले भी रहा है और अब भी है। जिस प्रकार क्रूसेड अथवा ईसाईयों के धर्मयुद्ध के दौरान भी इस्लाम का विरोध रक्तपात युद्धों के रूप में उजागर हुआ, तथा वर्तमान समय में भी ग्यारह सितम्बर के आक्रमणों के बाद इस्लाम के विरुद्ध षडयंत्रों में अभूतपूर्व वृद्धि हो गयी है। यहां पर यह प्रश्न उठता है कि इस्लाम के विरुद्ध इन समस्त षडयंत्रों और प्रयासों के बावजूद अमरीका और यूरोपीय देशों में इस्लाम फैलता जा रहा है? पश्चिमी सभ्यता में नैतिक सिद्धांतों में आयी गिरावट विशेषकर हालिया एक दो शताब्दियों में तथा पीड़ितों पर हो रहे अत्याचारों को रुकवाने में विरूपण हुए धर्मों के प्रभावहीन होने में इस प्रश्न का उत्तर खोजा जा सकता है। इस्लाम के विस्तार के संबंध में आस्ट्रेलियाई समाचार पत्र सिडनी मौर्निंग हेराल्ड लिखता है कि इस्लाम भूगोलिक सीमाओं को पार कर रहा है और राजनीतिक सिद्धांतो एवं राष्ट्रवादी विचारधाराओं को पीछे छोड़ रहा है। विभिन्न देश इस्लाम की सुदृढ़ प्रगति एवं राजनीतिक सक्रीयता के साक्षी बनेंगे।
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न्याय पर बल और अन्याय एवं ऊँच नींच से मुक़ाबला इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों में से है। वियना विश्वविद्यालय में पूरब के मामलों की विशेषज्ञ लिज़ा लेस का मानना है कि अलौकिक धर्म इस्लाम के अनुयाईयों में वृद्धि का कारण इस धर्म का न्याय प्रेम है। श्रीमती लेस के कथनानुसारः अब समय आ गया है कि इस्लाम धर्म की वास्तविक पहचान को समझते हुए पश्चिमी समाज में उसके विस्तार हेतु भूमि प्रशस्त करें। ध्यान योग्य बिंदु यह है कि निष्पक्ष पश्चिमी शोधकर्ता इस्लाम के सामाजिक एवं न्याय प्रेमी आयाम को सकारात्मक दृष्टि से देखते हैं। जैसा कि ब्रिटिश आर्कबिशप रौजर सेन्सबरी ईसाईयों की तुलना में मुसलमानों की संख्या में वृद्धि शीर्शक लेख कि जो सन्डे टाईम्स पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है लिखते हैं कि पीड़ित एवं पिछड़े हुए युवाओ के इस्लाम की ओर आकर्षित होने के कारणों में से एक मुसलमानों का सामाजिक एवं जाति बराबरी के लिए संघर्ष है। ब्रिटिश चर्च को इस प्रयत्न एवं संघर्ष को सीखना चाहिए। एरिज़ोना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री डी माइकल ब्रेडिन कि जिन्होंने वर्ष 1991 में इस्लाम धर्म स्वीकार किया, इस्लाम धर्म स्वीकार करने के कारण का विवरण देते हुए कहते हैं कि मैं इस कारण मुसलमान हुआ हूं क्योंकि इस्लाम तार्किक धर्म है तथा व्यक्तिगद, सामाजिक एवं वैश्विक समस्याओं का वैज्ञानिक और तार्किक समाधान केवल इस्लाम के पास है। मैंने इस लिए इस्लाम स्वीकार किया है क्योंकि अमरीका और विश्व की समस्याओं का समाधान केवल इस्लाम धर्म में है। इक्कीसवीं शताब्दि और उसके बाद जीवन व्यापन हेतु आवश्यकताओं का उत्तर केवल इस्लाम के पास है। इस्लाम के बग़ैर भविष्य अंधेरा एवं अज्ञात है।
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इस्लाम के विरुद्ध उसके विरोधियो के समस्त प्रयासों के बावजूद पश्चिम में उनके दुष्प्रचारों की ओर ध्यान कम होता जा रहा है। इस संदर्भ में कम्पलोटेन्सी विश्विद्यालय में इस्लाम एवं अरब विभाग के मुखिया प्रोफेसर ज्वान मातुस का कहना है कि किसी भी समय की तुलना में आज इस्लाम सबसे अधिक लोकप्रीय है तथा हर पल विश्ववासी इस दिव्य धर्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वह बल देकर कहते हैं कि यहां तक कि इस्लाम के विरुद्ध दुष्प्रचारों की जो लहर चली है वह भी एक कारण बना है कि लोग इस धर्म के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें। वर्तमान समय में विश्व में मुसलमानों की स्थिति बहुत जटिल यद्यपि अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अनेक पश्चिमवासी निरंतर वर्षों गहरे अनुसंधान एवं शोध के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि व्याख्याता इस्लाम धर्म प्रत्येक पूर्वाग्रह एवं पक्षपात से ऊपर उठकर समस्त मानव जाति को वास्तविक मुक्ति एवं भलाई अंततः ब्रह्माण्ड निर्माता की ओर मार्गदर्शन का निमंत्रण देता है। अब पश्चिम में इस वास्तविकता से पर्दा उठ रहा है कि कुच रूढ़ीवादी एवं चरमपंथी गुटों का मामला वास्तविक इस्लाम से पृथक है। यहां तक कि कुछ पश्चिमी गणमान्य व्यक्तियों का प्रयास है कि ग्यारह सितम्बर की आतंकवादी घटना के बाद पश्चिम में उत्पन्न इस्लाम विरोधी विचारधारा में परिवर्तन लायें। उदाहरणस्वरूप ब्रिटेन के युवराज चार्ल्ज़ ने इस्लाम और पश्चिम के विषय पर अपने एक भाषण में उल्लेख किया कि मुस्लिम, ईसाई और यहूदी सभी आसमानी पुस्तकों के अनुयाई हैं तथा इस्लाम एवं ईसाईयत एकेश्वरवाद में सहभागी हैं। एक ईश्वर में विश्वास, यह कि ब्रह्माण्ड नश्वर है और हम अपने कर्मों के प्रति उत्तरदायी हैं तथा परलोक पर विश्वास और दूसरे अनेक मूल्यों में दोनो धर्मों का संयुक्त मत है। न्याय का सम्मान, पिछड़ों और पीड़ितों के साथ कृपालुता, पारिवारिक जीवन को महत्व देना तथा माता पिता के सम्मान पर जैसे कि कुरआन बल देता है हमारे सिद्धांतों में भी मौजूद है। परन्तु दुर्भाग्यवश हम अनेक पश्चिमी लोग पक्षपात एवं चरमपंथ की ऐनक लगाकर इस्लाम को रूढ़वादी समझते हैं तथा अन्यायपूर्ण एवं अतार्किक निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। वास्तव में इस्लाम के संबंध में घिनावनी विकृतियां स्वयं हमारी ओर पलटती है न कि इस्लाम की ओर। इस लिए कि इस्लामी सिद्धांतो के बारे में जो भ्रांतियां एवं दृष्टिकोण पाये जाते हैं वे अतार्किक एवं वास्तविकता से बहुत भिन्न हैं। ब्रिटिश युवराज का मानना है कि यदि पश्चिम में वास्तविक इस्लाम को समझने का प्रयास नहीं किया गया तो पश्चिम वासियों को हानि होगी। प्रिंस चार्ल्ज़ बल देते हैं कि धर्म में विश्वास रखने वाले मुसलमानों का सम्मान किया जाना चाहिए, इस लिए कि पश्चिमी समाज के लिए यह एक अच्छा आदर्श हैं।
ब्रिटेन के भूतपूर्व विदेश मंत्री राबिन कुक अपने एक भाषण में उल्लेख करते हैं कि हमारी संस्कृति इस्लाम की आभारी है और पश्चिम के लिए अनिवार्य है कि वह इसे न भूले और जैसे कि क़ुरआन में मुसलमानों को परस्पर सहयोग एवं एक दूसरे को समझने का निमंत्रण दिया गया है हमें भी आपसी तालमेल में वृद्धि हेतु प्रयास करना चाहिए तथा इस्लाम और पश्चिम के बीच जो रुकावटें वातावरण को दूषित कर रही हैं एक एक कर रास्ते से सबको हटा दें।
पश्चिमी समाज में इस्लाम कुछ इस प्रकार चमका कि यहूदी शोधकर्ता मूशे फीगलिन तक कि जो इस्लाम में विरूपण को अपने धर्म के लिए लाभदायक मानता है स्वीकार करता है कि अंततः पश्चिम इस्लाम के समक्ष झुक जायेगा और उसे सजदा करेगा तथा इस्राईल नष्ट हो जायेगा। अमरीका और यूरोप की सामाजिक परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए यह यहूदी विशेषज्ञ कहता है कि अमरीका अपनी समस्त आर्थिक एवं सैन्य शक्ति एवं यूरोप अपनी समस्त सूक्ष्म व चालाकीभरी नीतियो के बावजूद इस्लाम फैलने की लहर का मुक़ाबला करने की शक्ति नहीं रखते और यह वास्तविकता है कि इस्लाम बहुत अधिक देर से नहीं बल्कि शीघ्र ही पश्चिम जगत में प्रथम होगा। वह कहता है कि पश्चिम में ऐतिहासिक नियतत्ववाद इस महाद्वीप में दिन प्रतिदिन इस्लाम के विस्तार का कारण बना है तथा इस्लाम के इस विस्तार को अनेक स्थानों एवं अवसरों पर देखा जा सकता है। फीलगिन उल्लेख करता है कि अमरीका और यूरोप में मस्जिदों के निर्माण में इतनी वृद्धि हो गयी है कि अनेक गिरजाघर संग्राहलयों में परिवर्तित हो गये हैं और इसके विपरीत मस्जिदों में नमाज़ियों के लिए जगह नहीं है।
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