आर्थिक आत्मनिर्भरता आयतुल्लाह ख़ामेनाई की दृष्टि में
आर्थिक आत्मनिर्भरता आयतुल्लाह ख़ामेनाई की दृष्टि में
आर्थिक आत्मनिर्भरता का अर्थ यह है कि देश और राष्ट्र अपनी आर्थिक गतिविधियों में अपने पैरों पर खड़ा हो और किसी पर निर्भर न रहे। इस का अर्थ यह नहीं है कि जो राष्ट्र आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर है वह विश्व में किसी अन्य के साथ लेन देन या व्यापार नहीं करते एसा नहीं है क्योंकि सौदा और लेनदेन कमजो़री का चिन्ह नहीं है। किंतु यह सब कुछ इस प्रकार से होना चाहिए कि राष्ट्र अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति पर स्वंय ही सक्षम हो और दूसरे यह कि विश्व व्यापार और लेनदेन में उसका अपना स्थान हो और अन्य देश उसे सरलता से किनारे न लगा सकें, उसका आर्थिक बहिष्कार न कर सकें और उसे अन्य देश आदेश न देने लगें। आज जो देश आर्थिक दृष्टि से विकसित हैं उनके पास शक्ति है और दुर्भाग्यवश वह विश्व साम्राज्य का भाग हैं और साम्राज्यवादी नीतियों पर आगे बढ़ रहे हैं यह देश जब किसी अन्य देश से लेनदेन करना चाहते हैं , सहयोग करते हैं तो उस देश पर कुछ शर्ते भी थोप देते हैं। देश की स्वतंत्र अर्थ व्यवस्था से आशय यह है कि देश को जिस वस्तु की आवश्यकता हो उसे देश के भीतर तैयार करना संभव हो। देश के कारख़ाने सब कुछ तैयार कर लें और देश में श्रामिक वर्ग केवल वही लोग नहीं हैं जो किसी कारखाने में काम करते हों। जो भी देश में कोई लाभदायक काम कर रहा है या देश की किसी भी प्रकार से सेवा कर रहा है वह श्रामिक है। लेखक, कलाकार, शिक्षक, आविष्कारक और अध्ययनकर्ता को भी देश के श्रामिक वर्ग में गिना जा सकता है।
आर्थिक आत्मनिर्भरता, राजनीतिक आत्मनिर्भरता से अधिक महत्वपूर्ण है, देश के अधिकारी, संसद सदस्य और आर्थिक विभाग से जुड़े लोग इस बात पर ध्यान दें कि पुंजी, आर्थिक गतिविधियों और इस क्षेत्र में अन्य लोगों पर निर्भरता समाप्त करें। देश के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता एक मूल आवश्यकता है। जब किसी देश की अर्थ व्यवस्था विदेशियों पर निर्भर होती है तो इसका अर्थ यह होता है कि इस शरीर की आत्मा और उसकी सांसों की डोर किसी अन्य के हाथ में है इस आधार पर अधिकार व नियंत्रण भी दूसरों के हाथ में होता है।
पिछली शताब्दी में अधिकांश क्रांतिय देशों का रुझान पूर्व की ओर था। यह देश पूर्वी सरकारों और शक्तियों से सहायता लेते थे। उदाहरण स्वरूप जब चीन में क्रांति आयी तो दस वर्षों बल्कि उससे भी अधिक समय तक सोवियत संघ ने जिसे उसका बड़ा भाई कहा जाता था और जो साम्यवादी क्रांति में सब से आगे था, चीन की आर्थिक व तकनीकी सहायता की और उसने इस देश के लिए अपने विशेषज्ञ भेजे। अन्य कम्यूनिस्ट देशों की भी यही स्थिति थी किंतु इस्लामी गणतंत्र ईरान ने अपनी आर्थिक निर्भरता को समाप्त करने के लिए केवल अपने राष्ट्र के संकल्प और ईरानियों की उच्च क्षमताओं पर भरोसा किया।
जो देश स्वतंत्र होते हैं उनका सब से पहला क़दम यह होता है कि अपनी राजनीतिक व्यवस्था को स्वाधीनता प्रदान करते हैं। अर्थात विदेशी शक्तियों के प्रभाव से मुक्त होकर सरकार का गठन करते हैं। इस पर वह संतोष नहीं करते बल्कि आर्थिक निर्भरता कम करने की दिशा में क़दम बढ़ाते हैं। आर्थिक आत्मनिर्भरता राजनीतिक आत्मनिर्भरता से अधिक कठिन काम है और इस के लिए समय की आवश्यकता होती है जैसा कि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में हम देख सकते हैं कि आर्थिक निर्भरता को सरलता से समाप्त नहीं किया जा सकता। यदि कोई देश आर्थिक आत्मनिर्भरता तक पहुंचना चाहता है तो उसे विशेषज्ञ श्रम बल, दक्षता, वैज्ञानिक क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अन्य बहुत सी वस्तुओं की आवश्यकता होती है।
स्वतंत्र देशों को चाहिए कि अपनी आवश्यकता व अध्ययन के अनुसार आवश्यक सामान को उपलब्ध साधनों द्वारा देश के भीतर ही तैयार करें। इन देशों को चाहिए कि अपनी रचनात्मकता, परिश्रम तथा प्रशासन के सहयोग से पूरी स्वतंत्रता व स्वाधीनता और राष्ट्रीय एकता के साथ इस उद्देश्य तक पहुंच जाएं किंतु इसके साथ ही शत्रुओं के प्रचारिक आक्रमणों की ओर से भी चौकन्ना रहे।
हर देश का श्रम बल ही उसकी पुंजी होती है यदि श्रम बल न हो तो कुछ कुछ बेकार है। कुछ देशों में ईरान से पहले की क्रांति आ चुकी थी और आर्थिक, औद्योगिक व तकनीकी तथा अन्य क्षेत्रों में उन्हें सफलताएं भी मिली थीं। इन देशों ने अपनी क्रांति के बाद अपनी सभी योजनाओं को श्रम बल के प्रशिक्षण पर केन्द्रित रखा जिसके बाद आज भी हम देख सकते हैं कि इन में कुछ देश विशेषज्ञ को अन्य देशों में सेवाएं प्रदान करने के लिए भेजते हैं अर्थात न केवल यह कि यह देश, श्रम बल की दृष्टि से आत्मनिर्भर हो गये बल्कि स्थिति यह हो गयी कि यह देश अपने विशेषज्ञों के लिए कम पड़ने लगे और उनके लिए रोज़गार के अवसर कम होने लगें इसी लिए वे अन्य देशों में सेवारत हो गये। यह स्थिति इस लिए आयी है क्योंकि उन्होंने श्रम बल के प्रशिक्षण पर ध्यान दिया जिसका उनकी अर्थ व्यवस्था पर प्रभाव पड़ा जबकि यह एसे देश हैं जो तेल जैसे प्राकृतिक स्रोत भी नहीं हैं।
यदि आज सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए बजट दिया जा रहा है तो इस बात पर ध्यान रखा जाना चाहिए कि संभव है अल्पावधि में यह बजट आर्थिक क्षेत्र में लाभदायक न हो किंतु दीर्घकाल में निश्चित रूप देश को उसका लाभ मिलेगा। यदि सही ढंग से योग्यताओं व क्षमताओं को प्रयोग किया जाए तो उस से देश की अर्थ व्यवस्था को लाभ पहुंच सकता है। यदि सांस्कृतिक क्षेत्र विशेषकर शिक्षा क्षेत्र के लिए बजट और संसाधनों का प्रयोग किया जा रहा है तो इस से देश को कदापि हानि नहीं होने वाली है क्योंकि इस से भविष्य में देश के लिए संसाधनों के नये क्षेत्र खुलेंगे।
आर्थिक आत्म निर्भरता के लिए कुछ शर्ते हैं जिनमें पहली शर्त यह है कि देश में हर नागरिक अपने कर्तव्यों का भलीभांति पालन करे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम का कथन है कि ईश्वर की कृपा हो उस पर जो जब कोई काम करता है तो उसे भलीभांति करता है। यह प्रयास होना चाहिए कि जब भी कोई काम किया जाए तो पूर्ण रूप से और सही रूप से उसे किया जाए और कोई कमी बाक़ी न रहे यह एक महत्वपूर्ण शर्त है जो पूरी हो जाएतो आर्थिक आत्मनिर्भरता के गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है।
आर्थिक आत्मनिर्भरता की दूसरी शर्त रचनात्मकता और आविष्कार है अर्थात देश की आर्थिक गतिविधियों में रचनात्मकता का प्रयोग करना चाहिए। कितनी अच्छी बात है कि वह कारख़ाने जो सरकारी अधिकार में हैं या वह कारखाने जो निजी सेक्टर से संबंधित हैं अपनी आय का एक साधारण भाग अध्ययन व शोध के लिए विशेष करें और इस प्रकार से अपने उत्पादनों का स्तर ऊपर उठाएं। विकासशील देश, इस प्रतीक्षा में क्यों रहें कि यूरोप या विश्व के किसी अन्य क्षेत्र में कोम आगे बढ़ कर शोध करे तब यह देश उससे सीखें ? स्वंय आगे बढ़ कर अध्ययन करना चाहिए, आविष्कार करना चाहिए, उत्पादन को बढ़ाना चाहिए, उद्योग को विकसित करना चाहिए और उत्पादन के स्तर को ऊंचा उठाना चाहिए।
आत्म निर्भरता के लिए तीसरी शर्त यह है कि देश के वैज्ञानिकों को आगे बढ़ना चाहिए यह अत्याधिक महत्वपूर्ण है।
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