फ़िदक "और क़राबतदारों को उनका हक़ दे दो"
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
हम अपने इस लेख में इन तीन बातों को बयान करेंगे
1. ईश्वर ने आदेश दिया कि क़राबतदारों को उनका हक़ दे दो।
2. पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़िदक हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा को भेंट किया।
3. फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा को फ़िदक देने के बाद इस बात का सार्वजनिक एलान किया।
जैसा कि हमने पहले के लेखों में बयान किया है कि फ़िदक वह सम्पत्ति थी जो मख़सूस थी पैग़म्बरे इस्लाम से, इस बात की प्रमाणिकता के लिए अगर हम इस्लामिक इतिहास की किताबों को देखें तो बहुत सी किताबों हमको ऐसी मिलेंगी जिसमें इस बात को बयान किया गया है कि फ़िदक पैग़म्बर (स) का मख़सूस माल था।
हम यहां पर अपने सुन्नी भाइयों कि कुछ उन किताबों का हवाला दे रहे हैं जिन्होंने इस बात को बयान किया है।
1. अली बिन अबूबक्र हैसमी की पुस्तक मजमउल मुबलदान माद्दाए फ़िदक
2. अहमद बिन यहया बिलाज़री की पुस्तक फ़ुतूहुल बुलदान पेज 46
3. सीरए इबने हेशाम जिल्द 3, पेज 301
4. इस्माई बिन उमर अल दमिश्क़ी जो कि इबने असीर के नाम से प्रसिद्ध है कि पुस्तक बिदाया वल निहाया जिल्द 3 पेज 231
5. नूरुद्दीन अली बिन इब्राहीम हलबी की पुस्तक इन्सानुल उयून फ़ी सीरतिल अमीनिल मामून जो कि सीरए हलबी के नाम से प्रसिद्ध है की जिल्द 3 पेज 487
6. इबने असीर की पुस्तक अलकामिल फ़ित्तारीख़ जिल्द 1 पेज 598
7. महमूद बिन उमर बिन मोहम्मद ख़्वारज़मी ज़मख़शरी की तफ़सीर की पुस्तक जो कश्शाफ़ के नाम से प्रसिद्ध है की जिल्द 4, पेज 82
8. मोहम्मद बिन जरीर तबरी की इतिहास की पुस्तक तारीख़ुल रुसुल वल मुलूक जो कि तारीख़ तबरी के नाम से प्रसिद्ध है की 3 पेज 15
9. शब्बह नुमैरी की पुस्तक तारीख़े मदीनाए मुनव्वरा जिल्द 1, पेज 192
यह वह पुस्तकें हैं जिन्होंने यह बयान किया है कि फ़िदक़ फैइ (वह माल जो बिना जंग के मुसलमानों के हाथ लगा हो) है और पैग़म्बरे इस्लाम (स) का मख़सूस माल था।
फ़िदक पैग़म्बर (स) के युग में
ख़ुदावंदे आलम क़ुरआन में सूरा असरा की 26वीं आयत में फ़रमाता हैः
وَآتِ ذَا الْقُرْبَىٰ حَقَّهُ
हे पैग़म्बर क़राबतदारों का हक़ दे दो।
इस आयत के अंनतर्गत बहुत सी रिवायतें हैं जिसको देखने के लिए हम इन किताबों को देख सकते हैं:
1. हैसमी की पुस्तक मजमउज़्ज़वाएद जिल्द 7 पेज 49,
2. जलालुद्दी सुयूती की तफ़्सीर दुर्रुल मंसूर जिल्द 4 पेज 177,
3. अलाउद्दीन अली बिन हस्साम जो मुत्तक़ी हिन्दी के नाम से प्रसिद्ध है की पुस्तक कनज़ुल उम्मान जिल्द 3 पेज 767
4. हाकिम हस्कानी की किताब शवाहेदुत तंज़ील में सात तरीक़ से सूरा असरा की 29वीं आयत के अंतर्गत रिवायत बयान की गई हैं।
دعا رسول الله فاطمة فاعطاه فدک
जब यह आयत उतरी पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा को बुलाया और उनको फ़िदक दे दिया।
इस मात्रा भर सुन्नियों की पुस्तकों में आया है। लेकिन शियों की किताबों में यह रिवायत दूसरे प्रकार से आई है, जिसमें इस घटना की सूक्षम्ताएं भी बयान की गई हैं
फ़िदक शियों की किताबों में
मोहम्मद बिन याक़ूब बिन इसहाक़ जो कि सेक़तुल इस्लाम कुलैनी के नाम से प्रसिद्ध हैं की पुस्तक अलकाफ़ी जिल्द 1 पेज 622 में रिवायत आई है जिसमें आया है कि जब यह आयत उतरी तो पैग़म्बर (स) ने जिब्रईल से प्रश्न किया कि यह क़राबतदार कौन लोग हैं? रिवायत कहती है कि रिब्रईल आसमान में गए और दोबारा पलट कर आए और आपसे इस प्रकार फ़रमायाः
فاوحی الله اله ان ادفع فدک الی فاطمة
ख़ुदा ने वही की कि फ़िदक फ़ातेमा को दे दो
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा को आवाज़ दी और आपने इस प्रकार फ़रमायाः
یا فاطمة ان الله امرنی ان ادفع الیک فدک
हे फ़ातेमा ईश्वर ने मुझे आदेश दिया है कि मैं फ़िदक तुमको दे दूं।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा ने फ़रमायाः
قبلت یا رسول الله من الله و منک
आपसे और ख़ुदा की तरफ़ से मैं ने इसे स्वीकार किया।
और रिवायत में आया है कि पैग़म्बर के पवित्र जीवन काल में ही हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा के लिए काम करने वाले और मज़दूर फ़िदक की धरती पर आपके लिए कार्य करते थे और उसकी पूर्ण आमदनी हज़रते ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा को दी जाती थी, और फ़ातेमा (स) उस पैसे को ग़रीबों में बांटा करती थीं।
दूसरी रिवायतों में भी इस घटना को और भी विस्तिरित रूप से बयान किया गया है। जैसे कि रिवायत में आया है किः जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़िदक को फ़ातेमा (स) को दिया तो आपने अमीरुल मोमिनीन अहैलिस्सलाम और उम्मे एमन को बुलाया और रसूल के आदेश से अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम एक दस्तावेज़ लिखते हैं, अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम और उम्मे एमन फ़िदक की गवाह बनती हैं।
और पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं कि उम्मे एमन जन्नत की नारियों में से एक नारी हैं।
लेकिन इन सबके बाद भी ना तो फ़ातेमा (स) की बात फ़िदक के बारे में स्वीकार की जाती है और ना ही अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की बात स्वीकार की जाती है और ना ही उम्मे एमन की।
इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़ातेमा (स) के घर में मुसलमानों को बुलाते हैं और वहां एलान करते हैं किः ईश्वर ने मुझे आदेश दिया है कि फ़िदक को फ़ातेमा (स) के सिपुर्द कर दूं।
और रिवायतों में आया है कि फ़िदक से जो भी माल फ़ातेमा (स) को मिलता था वह आप ग़रीबों में बांटा करती थीं और मदीने के ग़रीब लोग फ़िदक से मिलने वाली आमदनी की प्रतीक्षा किया करते थे कि वह फ़ातेमा (स) के हाथ आए और उनमें बांटा जाए।
इस पूरे लेख को अगर संक्षेप में कहा जाए तो इस प्रकार होगा।
1. फ़िदक पैग़म्बरे इस्लाम (स) का मख़्सूस माल था।
2. फ़िदक जो कि पैग़म्बर (स) का माल था वह ईश्वर के आदेश से फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा के हवाले किया जाता है, दस्तावेज़ लिखी जाती हैं, एलान किया जाता है, और गवाह बनाए जाते हैं।
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