मैं और मेरे पिता
मैं और मेरे पिता
जब मैं 4 वर्ष का तो अपने पिता को संसार का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति मानता था।
जब मैं 5 वर्ष का तो यह समझता था कि पिता को हर चीज़ का ज्ञान है।
जब मैं 6 वर्ष का था तो मुझे अपने पिता का व्यक्तित्व दूसरों के पिता से अधिक आकर्षक लगता था।
जब मैं 8 वर्ष का था तो मैं यह समझता था कि पिता को वास्तव में सभी चीज़ों का ज्ञान नहीं है।
जब मैं 10 वर्ष का था तो मुझे पिता के विचार स्वंय के विचार से भिन्न लगते थे।
जब मैं 12 वर्ष का था तो मुझे लगता था कि पिता इतने वृद्ध हो चुके हैं कि मेरी भावना को नहीं समझ सकते।
जब मैं 14 वर्ष का था तो मैं पिता के विचार को महत्व नहीं देता था और उन्हें पुराने विचारों वाला व्यक्ति समझता था।
जब मैं 21 वर्ष का हुआ तो यह समझता था कि हमारी पीढ़ी और पिता के बीच बहुत अंतर है और वे मुझे भलिभांति नहीं समझ पाते।
जब 25 वर्ष का था तो मैं पिता के विचार को इसलिए मान लेता था कि क्योंकि वे बहरहाल मेरे पिता थे।
जब 30 वर्ष का था तो सोचता था कि ठीक है यदि पिता के अनुभव से लाभ उठाया जाए।
जब 35 वर्ष का था तब समझ में आया कि पिता की सलाह के बिना कोई काम नहीं करना चाहिए।
जब 40 वर्ष का हुआ तो महत्वपूर्ण निर्णय के समय पिता के संयम को देख कर हतप्रभ हो जाता था।
अब जबकि 50 वर्ष का हो चुका हूं तो मन उनके कुछ मिनट के दर्शन के लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तय्यार है।
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