बदले की भावना
बदले की भावना
एक दिन एक व्यक्ति ने एक बहुत बड़ा और सुंदर सा घर ख़रीदा जिसमें एक सुंदर बाग़ भी था। पड़ोस में जो घर था वह बहुत साधारण और पुराना था, साथ ही पड़ोसी भी बड़ा दुष्ट एवं ईष्यालु था।
अभी उस व्यक्ति को नये घर में आए हुये थोड़ा ही समय बीता था कि दुष्ट पड़ोसी ने रात को कूड़ा रखने के समय अपने कूड़े की बाल्टी उसके द्वार पर रख दी।
वह व्यक्ति बड़ी प्रसन्नचित स्थिति में सवेरे किसी काम के लिये बाहर निकला तो कुछ क्षण तो उसकी समझ में ही नहीं आया कि यह कूड़ा द्वार पर क्यों रखा हुआ है, फिर उसने कुछ सोचा और पहले जाकर कूड़ा फेंका फिर बाल्टी को अच्छी तरह धोकर उसमें अपनी बाग़ के ताज़े फल तोड़ कर भरे और बाल्टी लेकर पड़ोसी के दरवाज़े की घंटी बजायी।
दुष्ट पड़ोसी ने समझा कि नया पड़ोसी झगड़ा करने आया है अतः वह लड़ने कि तय्यारी के साथ दरवाज़े पर आया, परन्तु यहां का दृष्य देख कर वह आश्चर्यचकित रह गया कि नया पड़ोसी ढेर सारे फलों से भरी बाल्टी के साथ खड़ा उस से कह रहा थाः जिसके पास जिस वस्तु की बहुतायत होती है वह वही दूसरों को देता है, मेरे पास फल अधिक हैं वह आपके लिये लाया हूं।
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