क्रोध क्या है और कैसे करें इस पर कंट्रोल

क्रोध क्या है और कैसे करें इस पर कंट्रोल

क्रोध, मनुष्य का आतंरिक उबाल होता है और यदि उस पर नियंत्रण न किया जाए तो उसके बड़े भयानक और कभी कभी तो मनुष्य और समाज के लिए एसे परिणाम सामने आ सकते हैं जिनकी कभी क्षतिपूर्ति भी संभव नहीं होती। धार्मिक शिक्षाओं में भी इस बात पर बल दिया गया है कि क्रोध पर निंयत्रण रहना चाहिए। इसी लिए कुरआने मजीद और पैगम्बरे इस्लाम तथा उनके निकटवर्ती परिजनों की ओर से इस संदर्भ में विभिन्न शैलियों में मार्गदर्शन किया गया है। उदाहरण स्वरूप कुरआने मजीद के सूरए आले इमरान की आयत नंबर १३४ में भले लोगों का एक चिन्ह आक्रोश को दबा लेने की क्षमता बताया गया है।

मनोवैज्ञानिक इस आयत के विश्लेषण में कहते हैं कि धर्म परायण लोग, जल्दबाज़ी में अपना क्रोध प्रकट नहीं करते और अन्य लोगों की गलतियों को पर संयम व धैर्य से व्यवहार करते हैं और उनका मन व ह्रदय हर प्रकार के द्वेष से पवित्र रहे। इस से दूसरे पक्ष के मन में भ्रांति भी नहीं उत्पन्न होती और इससे रिश्ते मज़बूत होते हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि क्रोध को पी जाने से मन में घृणा व अवसाद का खतरा रहता है किंतु धर्म की शिक्षाओं में सामने वाले को क्षमा करने का अर्थ मन से पूर्ण रूप से द्वेष का मिटा देना होता है। जो लोग माफ करते हैं वे वास्तव में अपने मन में घृणा की गांठ को खोल देते हैं और इस प्रकार घृणा की मैल से उनका मन मस्तिष्क पूर्ण रूप से साफ हो जाता है। 

पैगम्बरे इस्लाम  का कहना है कि तुम में से सब से अधिक शक्तिशाली वह है जो क्रोध के समय स्वंय पर निंयत्रण रख सके और तुम में से सब से अधिक धैर्यवान वह है जो शक्ति के समय माफ कर दे। इसी प्रकार इतिहास में आया है कि पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि जो भी अपना गुस्सा पी लेता है जबकि यदि चाहे तो उसे निकाल सके, तो ईश्वर एसे व्यक्ति के ह्रदय को क़यामत के दिन प्रसन्नता व ईमान से भर देगा।

इतिहास साक्षी है कि पैगम्बरे इस्लाम को अपने अभियान को आगे बढ़ाने में अत्याधिक कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ा है किंतु उन्होंने संयम से काम लिया। वे लोगों के मार्गदर्शन के उद्देश्य से लोगों की गलतियों की अनदेखी कर देते थे और उनके द्वारा किये जाने वाले अपमान को सहन कर लेते थे। उनका यही व्यवहार बहुत से अवसरों पर लोगों को इस्लाम की ओर आकृष्ट कर लेता था। वैसे वे अपने अभियान के प्रति अत्याधिक गंभीर थे और ठोस इरादे के साथ उसे आगे बढ़ाते। ठोस व्यवहार का अर्थ सच्चाई, स्पष्टता व सम्मान के साथ किया जाने वाला व्यवहार होता है। मनोवैज्ञानिकों का भी यही मानना है कि जो लोग मानसिक रूप से स्वस्थ्य होते हैं वह क्रोध के समय अतार्किक व हिंसक व्यवकार के स्थान पर ठोस व्यवहार से काम लेते हैं। क्रोध को नियंत्रित करने के लिए बुद्धि के अतिरिक्त भी कुछ शक्तियों की हमें आवश्यकता होती है जिनमें सब से महत्वपूर्ण संकल्प है। इमाम जाफरे सादिक अलैहिस्सलाम कहते हैं कि अकारण क्रोध, बुद्धिमान के ह्रदय से प्रकाश का अंत कर देता है जिसे अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं होता वह अपनी बुद्धि का भी स्वामी नहीं होता।

किंतु यदि संकल्प होता है तो वह बुद्धि की सहायता के लिए आगे आता है और क्रोध का अंत हो जाता है। ईमान और धर्म पर आस्था, संकल्प को मज़बूत करने का सब से महत्वपूर्ण मार्ग है। जब भी बुद्धि को भ्रम होता है, ईमान उसका मार्गदर्शन कर सकता है। इस लिए मनुष्य को बुद्धि के मार्गदर्शन के साथ ही साथ धार्मिक मार्गदर्शन की भी आवश्यकता होती है। इस लिए स्पष्ट हुआ कि अकारण क्रोध पर नियंत्रण और उसके परिणाम से बचाव के लिए शक्तिशाली बुद्धि भी आवश्यक है और इसी प्रकार सही ईमान भी ज़रूरी है। इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि आस्थावान वही है जो क्रोध के समय सत्य की परिधि से बाहर न निकले।

मालिके अश्तर, इमाम अली अलैहिस्लाम के एक अत्यन्त निकट सहायक व इस्लामी सेना के प्रसिद्ध व अत्यन्त साहसी सेनापति थे और इस्लाम के शत्रु उनका नाम सुनकर ही कांप जाया करते थे। एक दिन मालेके अश्तर इराक़ के कूफा नगर के बाज़ार से गुज़र रहे थे कि एक व्यक्ति ने जो उन्हें नहीं पहचानता था, उनका मज़ाक उड़ाना आरंभ किया और अपने दोस्तों को हसांने के लिए उन्हें एक ढेला मारा किंतु मालेके अश्तर चुपचाप आगे बढ़ते रहे और वह व्यक्ति आश्चर्य में था कि उसके इन कामों से बाज़ार  में कोई हंस क्यों नहीं रहा है। जब वे वहां से चले गये तो ढेला मारने वाले को लोगों ने घेर लिया और कहा जानते हो तुमने किसे ढेला मारा है ? वह इमाम अली के निकटवर्ती साथी और उनकी सेना के वीर सेनापति मालेके अश्तर हैं। वह व्यक्तथ डर से थर थर कांपने लगा और उनके पीछे दौड़ा। मालेके अश्तर मस्जिद में पहुंच गये थे और नमाज़ पढ़ने में व्यस्त थे। जब उनकी नमाज़ खत्म हुई तो वह व्यक्ति उनके पैरों पर गिर पड़ा। मालेके अश्तर ने कहाः यह क्या कर रहे हो? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, मैं क्षमा मांगने के लिए आया हूं। मालेके अश्तर ने उसके उत्तर में कहा कि मैंने पहले ही तुझे माफ कर दिया है और इस समय भी केवल तेरे लिए मस्जिद आया था ताकि ईश्वर से भी तेरे लिए क्षमा याचना करूं।

यह एक सच्चे मुसलमान का उदाहरण है जो समाज की रक्षा के लिए अत्याचारियों के सामने ठोस व गंभीर होता है किंतु कमज़ोर और अज्ञानी लोगों के साथ कृपा व स्नेह का व्यवहार करता है। इस्लामी इतिहास की इस प्रसिद्ध घटना में अपने क्रोध पर नियंत्रण का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मिलता है और निश्चित रूप से इमाम और महान ईश्वरीय दूतों के साथ उठने बैठने वालों और उनसे प्रशिक्षण प्राप्त करने वालो को एसा ही होना चाहिए। इसी के साथ हमें भी उन्हें अपना आदर्श बना कर क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए और धैर्य से काम लेना चाहिए।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि क्रोध से निपटने का सब से पहला चरण यह है कि हम यह समझें कि हम क्रोध में हैं। यह स्वीकार कर लेने के बाद कि हम सामान्य दशा में नहीं हैं कुछ क्षणों तक स्वंय को किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया प्रकट करने से रोके रखना चाहिए। गुस्से को ठंडा करने की विभिन्न शैलियां हो सकती हैं। उदाहरण स्वरूप जगह बदल कर हम अपना क्रोध ठंडा कर सकते हैं। इसके बाद हम अपने क्रोध के कारणों पर विचार करें। अच्छा यह होता है कि हम स्वंय से पूछें कि हमें गुस्सा क्यों  आया? कहीं मैंने निष्कर्ष निकालने में उतावला पन तो नहीं दिखाया?  कहीं जल्दबाज़ी में तो फैसला नहीं किया? क्रोध के समय अन्य लोगों के साथ व्यवहार के रूप में , लड़ाई झगड़ा, अत्यन्त सरल और प्रचलित तरीका हो सकता है किंतु निश्चित रूप से सब से उचित तरीका नहीं है।

इस्लामी कथनों तथा मनोवैज्ञानिकों की सिफारिशों में क्रोध को तत्काल रूप से समाप्त करने और उसके भयानक परिणामों से बचने की शैलियों पर चर्चा की गयी है। यदि इन शैलियों का ध्यान रखा जाए तो मनुष्य क्रोध के घातक परिणाम से बच सकता है। क्रोध की भड़कती आग को बुझाने का सब से प्रभाव तरीका, ईश्वर की याद है। ईश्वर ने अपने एक दूत से कहा था कि हे आदम की संतान! क्रोध के समय मुझे याद करो ताकि मैं भी क्रोध के समय तुम्हें याद रखूं।

यदि क्रोध आए तो मनुष्य को सब से पहले अपनी जगह या दशा बदल लेनी चाहिए जैसे यदि खड़ा हो तो बैठ जाए और यदि बैठा हो तो खड़ा हो जाए और यदि अधिक क्रोध हो तो उस स्थान से निकल जाना चाहिए। इसी प्रकार गहरी सांस लेना तथा शांत रहना भी क्रोध को ठंडा करने में प्रभावी होता है। इसी प्राकर ठंडा पानी पीने से भी भावनात्मक उबाल में कमी आती है क्योंकि इससे रक्तचाप और दिल की धड़कन कम होती है। पैगम्बरे इस्लाम कहते हैं कि क्रोध के समय ठंडे पानी से वूज़ू करो या शरीर को धोओ क्योंकि आग पानी से ही बुझती है। मनोवैज्ञानिकों ने कहा है कि क्रोध के समय स्वंय को शांत रखने का प्रयास करना चाहिए। जब क्रोधित हों तो उत्तर देने से पूर्व दस तक गिनती गिनें इस प्रकार से आप को इस बात का अवसर मिलेगा कि आप उचित उत्तर खोज लें। इसी प्रकार अपने क्रोध के कारणों और विचारों को निकटवर्ती व विश्वस्त मित्र को बताना भी क्रोध पर नियंत्रण का एक मार्ग है। यह किसी भी प्रकार से सही नहीं है कि आप अपनी सभी समस्याओं को अपने ही मन में रखें और उसी के बारे में सोच सोच कर कुढ़ते रहें। इस प्रकार से स्वास्थ्य खतरे में पड़ सकता है। इस लिए क्रोध आए तो जगह बदलें और अन्य स्थान पर जाकर वह काम करना आरंभ कर दें जो आप को पसन्द हों।

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