इस्लाम में औरत की मीरास आधी क्यों है?
इस्लाम में औरत की मीरास आधी क्यों है?
महिलाएं विशेषकर पढ़ी लिखी लड़कियों आम तौर से सवाल करती हैं कि मर्द के मुक़ाबले औरत की मीरास आधी क्यों हैं? क्या यह अदालत के मुताबिक़ है और यह औरत के अधारों पर ज़ुल्म नही है?
जवाब: प्रथम यह कि हमेशा ऐसा नही है कि मर्द, औरत की मीरास से दोगुनी मीरास पाये बल्कि कुछ मर्द और औरत दोनो बराबर मीरास पाते हैं जैसे मय्यत के माँ बाप दोनो मीरास का छठा हिस्सा पाते हैं बिलकुल बराबर, इसी तरह माँ के घराने वाले चाहे औरतें हों या मर्द दोनों बराबर मीरास पाते हैं और कभी कभी औरत पूरी मीरास पाती है।
दूसरे यह कि दुश्मन से जिहाद करने के ख़र्चे मर्द पर वाजिब हैं जब कि औरत पर यह ख़र्चे वाजिब नही है।
तीसरे यह कि औरत का ख़र्चा मर्द पर वाजिब हैं चाहे औरत की आमदनी बहुत अच्छी और ज़्यादा ही क्यों न हों।
चौथे यह कि औलाद का ख़र्चा चाहे वह खाना पीना हो या लिबास कपड़े हों मर्द के ज़िम्मे है।
पाँचवें यह कि अगर औरत मांग करे और चाहे तो बच्चो को जो दूध पिलाती है वह शीर बहा (दूध पिलाने के हदिया) ले सकती है।
छठे यह कि माँ बाप और दूसरे लोगों के ख़र्चे कि जिसको विस्तिरित रूप से तौज़ीहुल मसाएल में बयान किया गया है, मर्द के ज़िम्मे हैं।
सातवें यह कि बाज़ वक़्त दियत (शरई जुर्माना) मर्द पर वाजिब है जब कि औरत पर वाजिब नही है और यह उस वक़्त होता है कि जब कोई शख़्स भूले से जुर्म करे तो उस स्थान पर मुजरिम के रिश्तेदारों (भाई, चचा और उन के बेटों) को चाहिये कि दियत अदा करें।
आठवीं यह कि शादी के ख़र्चे के अतिरिक्त शादी के वक़्त मर्द को चाहिये कि औरत को मेहर भी अदा करे।
इस आधार पर ज़्यादा तर मरहलों में मर्द ख़र्च करने वाला और औरत ख़र्चा लेने वाली होती है, इसी वजह से इस्लाम ने मर्द के हिस्से को औरत के मुक़ाबले दो गुना क़रार दिया है ताकि संतुलन बना रहे और अगर औरत की मीरास, मर्द की मीरास से आधी हो तो यह अदालत के विरुद्ध नहीं है और इस मक़ाम पर बराबर होना मर्द पर ज़ुल्म हैं।
इसीलिए पर हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम ने फ़रमाया:
माँ बाप और औलाद के ख़र्चे मर्द पर वाजिब हैं।
हज़रत से पूछा गया कि औरत के मुक़ाबले में मर्द की मीरास दो गुना क्यों होती हैं?
हज़रत ने फ़रमाया: इसलिए कि आक़ेला की दियत, ज़िन्दगी के ख़र्ते, जिहाद, महर और दूसरी चीज़ें औरत पर वाजिब नही हैं जब कि मर्द पर वाजिब हैं।
जब हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस सलाम से पूछा गया कि औरत की मीरास के आधी होने का कारण क्या है? तो आप ने फ़रमाया: इसलिए कि जब औरत शादी करती है तो उस का शुमार (माल) पाने वालों में होता है, उस के बाद इमाम (अ) ने सूर ए निसा की 34 वीं आयत को दलील के तौर पर पेश किया।
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