और इस्लामी इन्क़ेलाब ने 2500 साला शहंशाही को उखाड़ फेंका
और इस्लामी इन्क़ेलाब ने 2500 साला शहंशाही को उखाड़ फेंका
पश्चिमी लोकतंत्र के समर्थकों और उसकी वकालत करने वालों ने ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद शाह के रूप में अपने एक महत्वपूर्ण मोहरे से हाथ धो लेने तथा अपने अवैध हितों की ओर से निराश हो जाने के बाद विश्व की सबसे अधिक जनकेन्द्रित क्रान्ति से शत्रुता आरंभ कर दी। उन्होंने इस्लामी क्रान्ति के बाद लोकतांत्रिक सरकार को गिराने के लिए किसी भी प्रकार के राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक व प्रचारिक हथकंडे को उपेक्षित नहीं किया। स्वतंत्रताप्रेम के बड़े बड़े दावे करने वाली पश्चिमी सरकारों ने ईरान की जनता के विरुद्ध अपनी शत्रुता के तर्क देने के लिए यह प्रोपैगंडा आरंभ कर दिया कि ईरान की शासन व्यवस्था अलोकतांत्रिक तथा इस देश में होने वाले चुनाव दिखावटी हैं। इस प्रकार उन्होंने ईरान के विरुद्ध अपने द्वेष को तर्कसंगत दर्शाने का प्रयास किया। जबकि रोचक तथ्य यह है कि ईरान में इस्लामी लोकतंत्र व्यवस्था स्थापित होने के बाद के 34 वर्षों में लगभग 34 बार अलग अलग चुनाव आयोजित हो चुके हैं पश्चिमी सरकारों के इशारे पर काम करने वाले संचार माध्यम चाहे जितना विषैला प्रोपेगंडा करें, सच्चाई यह है कि ईरान में चुनावी प्रतिस्पर्धा बहुत गंभीर और उत्साहपूर्ण होती है। पश्चिमी सरकारें जो लिबरल डेमोक्रेसी को शासन व्यवस्था के क्षेत्र में सर्वोत्तम आदर्श मानती हैं तथा विश्व की राजनैतिक व्यवस्थाओं के जन प्रभुत्व को मापने के लिए पश्चिमी मापदंडों पर इन व्यवस्थाओं को परखती हैं, ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था को अलोकतांत्रिक ठहराती हैं। ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था का विदित रूप तो पश्चिमी लोकतांत्रिक व्यवस्था के समान है किंतु इसकी विषयवस्तु तथा आंतरिक तथ्य पश्चिमी व्यवस्थाओं से भिन्न हैं। पश्चिमी सरकारें तथा उनके स्वामित्व वाले संचार माध्यम इन्हीं भिन्नताओं को ईरान की लोकतांत्रिक व्यवस्था को अलोकतांत्रिक दर्शाने के बहाने के रूप में प्रयोग करते हैं जबकि यही भिन्नताएं पश्चिमी लोकतंत्र की तुलना में ईरान के धार्मिक लोकतंत्र के महत्वपूर्ण गुण और विशेषताएं हैं। जिस प्रकार ईरान की इस्लामी क्रान्ति अपने रूप और प्रवृत्ति में विश्व की अन्य बड़ी क्रान्तियों से भिन्न है, उसी प्रकार इस क्रान्ति से उपजने वाली शासन व्यवस्था भी विश्व की अन्य राजनैतिक व्यवस्थाओं से भिन्नताएं रखती है। इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद ईरान में जो शासन व्यवस्था स्थापित हुई वह जनता के वोटों और इच्छाओं पर आधारित है। दोनों व्यवस्थाओं का मूल अंतर ईरान की क्रान्ति की धार्मिक प्रवृत्ति है जिससे पश्चिमी सरकारों को गहरा बैर है।
ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वास्तुकार स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद दो महीने के भीतर शासन व्यवस्था के निर्धारण के लिए जनमत संग्रह करवाया तथा इसके कुछ दिनों के बाद संविधान विशेषज्ञ समिति के सदस्यों का जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चयन हुआ। समिति द्वारा नए संविधान का संकलन हो जाने के बाद संविधान के मसौदे पर फिर जनमत संग्रह कराया गया। विश्व की किसी भी क्रान्ति में नई शासन व्यवस्था के गठन के लिए यह प्रक्रिया पूरी नहीं की गई।
किंतु पश्चिमी सरकारों ने इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद ईरान सहित पूरे मध्यपूर्व में अपने अवैध हितों को ख़तरे में पड़ता देख, क्रान्ति के धार्मिक नेतृत्व को इस्लामी क्रान्ति की त्रुटि बताने की कोशिश की। इन सरकारों का कहना था कि ईरान की शासन व्यवस्था में धार्मिक नेतृत्व का प्रावधान तानशाही व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करने वाला है। पश्चिमी सरकारें यह प्रोपगंडा बहुत दिनों से कर रही हैं। जबकि ईरान की इस्लामी क्रान्ति की एक प्रमुख विशेषता धार्मिक नेतृत्व है। यही वह कारक है जिसने इस्लामी क्रान्ति को बहुत तीव्र गति से सफलता के चरण तक पहुंचाया और पश्चिमी सरकारों विशेष रूप से अमरीका के सारे अनुमान उलट पुलट हो गए। राजनीति के बारे में इमाम खुमैनी का दृष्टिकोण, राजनीति के मैदान में कदम रखने का उनका फ़ैसला तथा महान क्रान्ति का नेतृत्व संभालने का क़दम, सब कुछ धार्मिक कर्तव्यों का पालन था। चूंकि इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था के रचनाकार इमाम ख़ुमैनी की विचारधारा और कार्यशैली गहरे धार्मिक व अध्यात्मिक ज्ञान से उत्प्रेरित थी अतः उनके नेतृत्व की अद्वितीय विशेषताएं थीं। इन्हीं विशेषताओं के चलते उनके नेतृत्व का दायरा विस्तृत होता गया और समाज के सभी वर्गों के लोग क्रान्ति में शामिल होते गए, यही नहीं इमाम ख़ुमैनी के प्रतिस्पर्धी भी अंततः उनके साथ आ मिले।
ईरान की इस्लामी क्रान्ति धार्मिक नेतृत्व के प्रयासों का प्रतिफल थी जिसने राजनैतिक मामलों, मुसलमानों के भविष्य तथा विशुद्ध इस्लामी सिद्धांतों, नियमों और मान्यताओं के अनुरूप समाज की स्थापना की दिशा में प्रयासों पर ध्यान केन्द्रित किया। इमाम ख़ुमैनी का मत था कि धर्म राजनीति से अलग नहीं है। उन्होंने कुरआन की आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों से प्रमाणित किया कि इस्लाम में धर्म और शासन को एक दूसरे से जोड़ा गया है।
इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक ने वेलायते फ़क़ीह नामक विशेष विचारधारा की केन्द्रीयता में इस्लामी शासन की स्थापना के विचार को पुनरजीवन देकर धर्म और राजनीति के संबंध को व्यवहारिक रूप से प्रदर्शित किया और इस धारणा को ग़लत साबित कर दिया कि धर्म कोई व्यक्तिगत विषय तथा राष्ट्रों के प्रगति के मार्ग की रुकावट है। इमाम ख़ुमैनी पहले इस्लामी विचारक हैं जिन्होंने विधिवत थ्योरी के रूप में वेलायते फ़क़ीह तथा इस्लामी शासन को पेश किया तथा उसे लागू करके दिखाया।
यह अभियान एक अनुदाहरणीय जनक्रान्ति के माध्यम से सरकार के गठन के रूप में आगे बढ़ा। इमाम ख़ुमैनी का मानना था कि समाज के विभिन्न आयामों और क्षेत्रों में सुधार लाने के लिए राजनैतिक शक्ति और सरकार का गठन आवश्यक है। उन्होंने दिखा दिया कि धर्म जीवन के मूल कार्यक्रमों और सामूहिक जीवन का स्रोत हो सकता है बल्कि इसे स्रोत बनाया जाना अनिवार्य है। धर्म का अनुसरण करके ही इंसान की भौतिक व आध्यात्मक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी ने कई बार वेलायते फ़क़ीह के विचार के धार्मिक आधार, तर्क तथा जनता की ओर से इसके समर्थन का उल्लेख किया। महान धर्मगुरू होने की हैसियत से इमाम ख़ुमैनी ने सरकार के गठन तथा नेता के चयन मे जनता के विशेष सम्मानजनक स्थान पर पूरी तरह ध्यान दिया। इमाम ख़ुमैनी इस बारे में कहते हैं कि यहां ईरान में जनता के वोटों की सत्ता है।
यहां सरकार जनता के हाथ में है, सभी संस्थाओं का चयन जनता के हाथों होता है, जनता के आदेश की उपेक्षा हम में किसी के लिए भी वैध नहीं है। इमाम ख़ुमैनी एक अनोखी क्रान्ति के अद्वितीय नेता थे। वह अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि रखने वाले महान सुधारक थे जो जातीय, राष्ट्रीय, दलीय और वर्गीय घेराबंदियों से ऊपर थे। वह एसे नेता थे कि उनके अध्यात्म, ज्ञान, सूक्ष्म दृष्टि, सूझबूझ और महान बौद्धिक शक्ति ने उन्हें अन्य बड़े नेताओं से बिल्कुल भिन्न बना दिया। जनता के विचारों और दिलों पर उनका गहरा प्रभाव था। एसा प्रभाव जो क्रान्ति की सफलता को 34 वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी कम नहीं हुआ बल्कि यह प्रभाव ईरान की जनता ही नहीं बल्कि अनेक इस्लामी देशों और विश्व के वंचित वर्गो में आज भी देखा जा सकता है।
अमरीकी पत्रकार टाम फ़ेन्टन ने इस्लामी क्रान्ति सफल होने से पहले इमाम ख़ुमैनी से पेरिस में इंटरव्यू किया था। वे कहते हैं कि इमाम ख़ुमैनी की विनम्रता, सादा जीवन और महान व्यक्तित्व एसी विशेषताएं हैं जिन्होंने इमाम खुमैनी को बीसवीं शताब्दी के सबसे बड़े आध्यात्मिक नेता में परिवर्तित कर दिया। मैंने अपने पूरे जीवन में इमाम ख़ुमैनी जैसा प्रभावशाली और अति लोकप्रिय नेता नहीं देखा। उनका महान व्यक्तित्व तथा जनता के बीच अभूतपूर्व लोकप्रियता उनकी सबसे बड़ी विशेषताएं हैं।
इमाम खुमैनी के विचार इतिहास और समाज में हमेशा ज़िन्दा रहेंगे। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई का कहना है कि इमाम ख़ुमैनी सदैव जीवित रहने वाली सच्चाई का नाम है।
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