फ़िदक क्या है और पैग़म्बर को कैसे मिला?
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
हम अपने इस लेख में फ़िदक के बारे में संक्षेप में बयान करेंगे, कि फ़िदक क्या था, उसके इतिहास आदि को बयान करेंगे और ईश्वर ने चाहा तो बाद के लेखों में इनमें से हर एक के बारे में शिया और सुन्नी किताबों के प्रमाणिक तौर पर बयान करेंगे।
तो इस लेख में हम बयान करेंगे कि फ़िदक़ की कहानी क्या है?
सबसे पहले हमको यह जान लेना चाहिए कि फ़िदक एक बहुत ही आबाद और उपजाऊ धरती थी जो यहूदियों की सम्पत्ती थी, हिजाज़ में कुछ यहूदी रहते थे और वह पैग़म्बर के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे जैसा कि स्वंय क़ुरआन ने इस बात को बयान किया है, इन यहूदियों के पास बहुत सी ज़मीनें थीं जिनमें से एक ख़ैबर और एक फ़िदक थी।
जैसा कि हम जानते हैं कि इस्लाम के फ़ैलने के बाद इन्हीं यहूदियों ने उसके विरुद्ध बहुत सी साज़िशें की और वह संधियां जो मुसलमानों और यहूदियों के बीच हुई थी बार बार उनको तोड़ा, जिसके कारण अंत में ईश्वर की तरफ़ से इन यहूदियों से जंग का आदेश आता है।
जिनमें से एक बहुत ही महत्वपूर्ण जंग ख़ैबर की जंग थी जिसमें हज़रत अली (अ) ने बहुत ही दिलेरी से लड़ते हुए इस्लामी सेना को जीत दिलाई थी। ख़ैबर यहूदियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण क़िला था, जब बाक़ी यहूदियों को पता चला कि ख़ैबर जैसा क़िला जीत लिया गया है तो उन्होंने सोंचा कि अगर अब इन लोगों ने इस्लामी सेना का मुक़ाबला किया तो ज़मीन तो हाथ से जाएगी ही साथ में जान से भी हाथ धोना पड़ेगा, इसलिए बेहतर यही है कि बिना लड़े उनसे हार मान ली जाए।
वह ज़मीनें जो मुसलमानों को बिना लड़े ही मिली हैं उनमें से एक फ़िदक है।
दूसरी तरफ़ हम जानते हैं कि कुछ अहकाम है जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) से विशेष हैं जैसे कि उनके लिए नमाज़े शब का वाजिब होना, जब्कि यह नमाज़ दूसरे मुसलमानों के लिए मुस्तहेब है, या उनकी लिए चार से अधिक शादियों का जाएज़ होना आदि, इन्ही अहकाम में से एक यह है कि वह ज़मीनें जो बिना जंग किए मुसलमान के हाथ लगती हैं वह ज़मीनें सूरा हश्र की आयत नम्बर 6 के अनुसार जिसमें ईश्वर फ़रमाता हैः
وَمَا أَفَاءَ اللَّـهُ عَلَىٰ رَسُولِهِ مِنْهُمْ فَمَا أَوْجَفْتُمْ عَلَيْهِ مِنْ خَيْلٍ وَلَا رِكَابٍ وَلَـٰكِنَّ اللَّـهَ يُسَلِّطُ رُسُلَهُ عَلَىٰ مَن يَشَاءُ ۚ وَاللَّـهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
वह ज़मीनें जो बिना जंग के मुसलमानों के हाथ लगती हैं ईश्वर ने इन ज़मीनों के मख़सूस किया है पैग़म्बरे इस्लाम (स) से।
तो फ़िदक वह ज़मीन है जो बिना किसी जंग के मुसलमानों को मिली है, और क़ुरआन की इस आयत के अनुसार जो चीज़ बिना जंग के मिले वह विशेष हैं पैग़म्बरे इस्लाम (स) से।
सारे मुसलमान इस बात पर एकमत हैं कि फइ (वह चीज़ें जो बिना जंग के मिलें) के अहकाम विशेष हैं पैग़म्बर से और फ़िदक विशेष हैं पैग़म्बर से और पैग़म्बर जो उचित समझें या जिसमें बारे में उन पर आकाशवाणी हो उसके अनुसार कार्य करते हैं।
फ़िदक की घटना के बाद जिब्रईल आते हैं और ईश्वर की तरफ़ से इसके बाद सूरा असरा की 26 आयत उतरती है जिसमें ईश्वर आदेश देता है
وَآتِ ذَا الْقُرْبَىٰ حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِيرًا
जि़लक़ुर्बा को उनका हक दे दो
तो अब सवाल यह है कि कि क्या किसको दिया जाए?
जिब्रईल कहते हैं कि वह फ़िदक जो आपका हैं जो विशेष है आपसे उसको हज़रत ज़हरा (स) को दे दो।
ख़दीजा की बेटी को दे दो । कौन ख़दीजा, वह अरब की शहज़ादी जिसने बादशाहों को ठुकरा दिया, जिसकी दौलत इतनी थी कि कहा जाता है कि आपकी चल समप्त्ती को सत्तर हज़ार ऊँटों लाया ले जाया करते थे, इसी शहज़ादी ने इस्लाम की तबलीग़ में अपनी सारी दौलत ख़र्च कर दी। तो पैग़म्बर ख़दीजा की बेटी का हक़ दे दो।
इसके बाद पैग़म्बर ने अमीरुल मोमिनीन (अ) और उम्मे ऐमन को बुलाया और फ़िदक को हज़रत ज़हरा (स) को दे दिया, आप इसको क़ुबूल नहीं कर रहीं थीं, लेकिन आपने दिया और फ़रमायाः
इसमें हस्तक्षेप करो ताकि मेरे बाद कोई ना आए और तुम्हारे लिए रुकावट बने।
उस दस्तावेज़ पर अमीरुल मोमिनीन (अ) और उम्मे ऐमन ने दस्तख़त किए और आप लोग इसके गवाह बने। फिर पैग़म्बर ने घर में सभी को एकत्र किया और कहा कि फ़िदक जो मेरा हक़ हैं मैने फ़ातेमा (स) को दे दिया।
पैग़म्बर की वफ़ात के बाद, समय बदल गया और आपकी वफ़ात के बाद बहुत सी घटनाएं हुईं जैसे सक़ीफ़ा, अमीरुल मोमिनीन (अ) की ख़िलाफ़त का छीना जाना आदि, और इन्हीं घटनाओं में से एक घटना फ़िदक का छीना जाना है, वह फ़िदक जिसे पैग़म्बर ने दिया था आपकी वफ़ात के बाद वह फ़ातेमा (स) से छीन लिया गया ।
जब हज़रत ज़हरा (स) ने इन घटनाओं को देखा, जब आपने देखा कि ग़दीर का पैग़ाम भुला दिया गया है, जब आपने देखा कि सक़ीफ़ा के माध्यम से अली (अ) की ख़िलाफ़त को छीन लिया गया है, तो आपने लोगों को जागरुक करने के लिए लोगों को वापस सच्चे इस्लाम की तरफ़ बुलाने के लिए क़दम उठाया और उसका पहला क़दम फ़िदक है।
आप कहती हैं कि मेरा हक़ छीना गया है, शियों का यह अक़ीदा है कि अत्याचार करना और सहना दोनों हराम है। इसीलिए फ़ातेमा (स) फ़िदक की वापसी पर ज़ोर दे रही थीं।
फ़िदक की वापसी की मांग केवल एक ज़मीन के टुकड़े की मांग नहीं थी, बल्कि यह मामला विलायत का मामला है, क्योंकि जिस भी तर्क से हज़रते ज़हरा (स) साबित करतीं कि फ़िदक उनका हक़ हैं उसी दलील से यह भी साबित करतीं कि यह ख़िलाफ़त अली का हक़ है।
यह याद रखिए कि फ़िदक कोई मामूली चीज़ नहीं थी बल्कि वह अली (अ) जो नफ़्से रसूल (स) हैं अगर उनके पास फ़िदक जैसी दौलत होती तो एक हुकूमत होती और यही कारण है कि फ़िदक को फ़ातेमा (स) से छीन लिया गया ताकि अहलेबैत के पास दौलत ना रह जाए कि समाज को अपनी तरफ़ बुला सकें।
इसीलिए जब पहले ख़लीफ़ा ने पहले फ़िदक वापस कर दिया तो जब हज़रत उमर और पहले ख़लीफ़ा में बातचीत हुई तो हज़रत उमर ने कहा कि अगर फ़िदक वापस कर दोगे तो इस्लामी सेना के लिए दौलत और पैसा कहां से लाओगे। इससे पता चलता है कि फ़िदक कोई मामूली चीज़ नहीं थी।
तो फ़ातेमा (स) ने फ़िदक की वापसी के लिए क़दम उठाया क्योंकि यह मामला विलायत का मामला था और यही कारण है कि अहलेबैत (अ) ने हर ज़माने में फ़िदक की वापसी के लिए क़दम उठाया है, और हर ज़माने के ख़लीफ़ा को यह बताया है कि जिस प्रकार फ़िदक हमारा हक़ है उसी प्रकार यह ख़िलाफ़त भी हमारा ही हक़ है।
जिस भी दलील से फ़िदक वापस किया जाता उसी दलील से उस हाकिम की वैधता पर प्रश्नचिन्ह उठता, और यह सिलसिला अपनी पहली कड़ी पर पहुंचता कि यह फ़िदक़ किस का था और किस ने छीना, और यह ख़िलाफ़त किस की थी और किसने उस पर अनाधिक्रत क़ब्ज़ा किया।
हज़रत ज़हरा (स) उठती हैं और फ़िदक की वापसी का मिशन चलाती हैं,
सबसे पहले आप यह साबित करती हैं कि फ़िदक पैग़म्बर का दिया हुआ उपहार है,
हे वह लोग जो यह कहते हो कि जिसने पैग़म्बर के जीवनकाल में एक क्षण के लिए भी उनको देखा हो वह सहाबी है और सारे सहाबी सच्चे हैं, इस फ़तवे से मोआविया आदिल हो गया, वह अबू सुफ़ियान सच्चा हो गया जो फ़त्हे मक्का तक इस्लाम नहीं लाया था, लेकिन हज़रत ज़हरा (स) की बात स्वीकार नहीं की गई क्या फ़ातेमा (स) का महत्व एक सहाबी के जितना भी नहीं है, रसूल की वह बेटी जिसने रसूल की गोद में परवरिश पाई हैं वह एक सहाबी के जितनी भी सच्ची नहीं है?
हज़रत ज़हरा (स) ने फ़िदक को वापस मांगा, लेकिन आपकी बात स्वीकार नहीं की गई।
आपसे गवाह मांगे गए
वह ज़हरा (स) जो क़ुरआन के अनुसार मासूम हैं, उन्होंने दूसरे मरहले में दो गवाह प्रस्तुत किए आप अली (अ) और उम्मे ऐमन को गवाह के तौर पर लाईं।
मैं इस स्थान पर सवाल करता हूँ कि एक जज क्यों गवाह मांगता है? इसलिए ना कि उसको वास्तविक्ता का पता चल सके। क्या किसी को अली (अ) की सच्चाई और फ़ातेमा (स) की बातों पर शक था?
हज़रते ज़हरा (स) और इमाम अली (अ) की गवाही को एक सहाबी की बात के जितना भी महत्व नहीं दिया गया और उनकी गवाही स्वीकार नहीं की गई।
जब आपने देखा की गवाही स्वीकार नहीं की जा रही है तो आपने अगले मरहले पर यह कहा कि अगर तुम लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं हो कि फ़िदक पैग़म्बर ने मुझे उपहार स्वरूप दिया था तो कम से कम यह तो मानते हो कि यह पैग़म्बर की विशेष सम्पत्ती थी तो उनके बाद यह उनकी मीरास है जो मुझे मिलनी चाहिए?
पहले ख़लीफ़ा उसके मुक़ाबले में एक हदीस पेश करते हैं कि पैग़म्बर ने फ़रमायाः हम पैग़म्बर मीरास नहीं छोड़ते हैं जो कुछ भी हमारा होता है वह सदक़ा है
«نحن معاشر الانبیاء لا نورث ما ترکناه صدقه»
इस हदीस को पहले ख़लीफ़ा के अतिरिक्त किसी दूसरे ने पैग़म्बर की ज़बान से नहीं सुना था।
प्रिय पाठकों आप स्वंय सोचिए कि अगर पैग़म्बर यह बात कहना चाहते कि हम मीरास नहीं छोड़ते तो वह किस से फ़रमाते, इमाम अली, हज़रत ज़हरा (स) से फ़रमाते जिनको उनकी मीरास मिलनी है, या उस पहले ख़लीफ़ा से जिसका इस चीज़ से कोई लेना देना नहीं है।
लेकिन कितने आश्चर्य की बात है कि पैग़म्बर ने पहले ख़लीफ़ा से तो यह हदीस फ़रमा दी लेकिन अली वह ज़हरा (स) से इस बात का तज़किया भी नहीं किया!!!
हज़रत ज़हरा फ़रमाती है कि तुम्हारी यह बात ग़ल्त है क़ुरआन के विरुद्ध है क़ुरआन में विभिन्न आयतों में यह फ़रमाया गया है कि नबी एक दूसरे से मीरास पाते हैं।
आख़िरकार फ़िदक आपको वापस कर दिया जाता है आप उसके दस्तावेज़ लेती हैं लेकिन उसके बाद बहुस से मसाएबों के साथ आपसे वह दस्तावेज़ दोबारा छीन लिए जाते हैं, और जिसके नतीजे में आपकी शहादत होती है।
यह लेख फ़िदक और उससे सम्बंधित होने वाली श्रंखलावार घटनाओं का संक्षिप्त ब्योरा था जिसको हमने आपके सामने बयान किया है, बाद के लेखों में विस्तिरित रूप से बयान किया जाएगा।
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