पाप क्षणभर का लेकिन अज़ाब सदैव का, ऐसा क्यों?
पाप क्षणभर का लेकिन अज़ाब सदैव का, ऐसा क्यों?
हमारे पाठकों ने हमसे नर्कवासियों के बारे में ईश्वर के सदैव बाक़ी रहने वाले अज़ाब के बारे में प्रश्न किया है।
सदैव अर्थात अबदियत को हम जैसे सीमित इन्सानों के लिए समझना बहुत ही कठिन है और इसको समझाना भी आसान नहीं है हम अबदियत के मुक़ाबले में चाहे जिनती बड़ी संख्या सोंच ले वह छोटी है। अगर अरबों खरबों कहा जाए तो यह भी छोटा शब्द है।
कोई भी बड़ी से बड़ी संख्या हो वह अबदियत और असीमित के मुक़ाबले में ज़ीरों की भाति है।
सवाल यह है किः अगर कोई इन्सान मान लीजिए साठ सत्तर साल तक पाप करता है तो ईश्वरीय धर्मों के अनुसार उसको सदैव नर्क में रहना होगा और नर्क की अग्नि उसको जलाएगी। किस प्रकार सदैव बाक़ी रहने वाला अज़ाब ईश्वर के न्याय और उसकी कृपा के आधार पर सही है? बल्कि होना तो यह चाहिए कि अज़ाब उतना ही दिया जाए जितनी मात्रा में पाप किया गया है।
इस प्रश्न के उत्तर में कुछ नुक्तों पर ध्यान रखना चाहिए
1. नर्क का अस्तित्व हैः हम इस संसार में एक यात्री हैं और हमको एक मक़सद पर पहुंचना है, ईश्वर के न्यान उसके धर्म और वादों का यह तक़ाज़ा है कि नर्क मौजूद हो, (इस बात को हम इसके सही स्थान पर प्रमाणों से सिद्ध करेंगे।)
लेकिन कुछ लोग जो इस बात को सही प्रकार से समझ नहीं सके उन्होंने नर्क के अस्तित्व का इन्कार कर दिया जैसे कि पॉप ने कहा कि नर्क नाम की कोई चीज़ नहीं है। तो मैं इन ईसाईयों से कहूंगा कि अगर नर्क नाम की कोई चीज़ नहीं है, तो स्वंय आपको अक़ीदे के अनुसार वह लोग जो ईसाई नहीं है वह मरने के बाद कहां जाएंगे?
2. इन्सान चूंकि पैदा होने के बाद समाप्त नहीं होता है और सदैव बाक़ी रहता है (चाहे वह किसी भी सूरत में हो, इन सूरतों को हमने इस्लामी अक़ीदों में बयान किया है) इसीलिए वह अबदियत के रास्तों का यात्री है और उसका अंतिम घर या तो स्वर्ग है या नर्क इसलिए इन्सान स्वर्ग या नर्क में जा सकते हैं सदैव के लिए।
3. इस संसार के जाने और शरीर से आत्मा निकल जाने के बाद दोबारा इस दुनिया में आना नहीं होगा।, हमारे हाथों में केवल एक ही फ़ुर्सत है जिसमें हमे जो कुछ करना है कर लेना चाहिए, यह उस रेत की घड़ी की तरह है जिसकी रेत गिरती जा रही है, इसी प्रकार हमारी सांसे हैं जो धीरे धीरे हमारी जीवन रेखा को कम करती जा रही हैं।
जैसा कि हदीस में भी आया है कि
«نَفَسُ الْمَرْءِ خُطَاهُ إِلَی أَجَلِهِ»
इन्सान की सांस मौत की तरफ़ उठता हुआ उसका एक क़दम है। (1)
पवित्र क़ुरआन में ईश्वर फ़रमाता है
حَتَّىٰ إِذَا جَاءَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ رَبِّ ارْجِعُونِ . لَعَلِّي أَعْمَلُ صَالِحًا فِيمَا تَرَكْتُ ۚ كَلَّا ۚ إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَائِلُهَا ۖ وَمِن وَرَائِهِم بَرْزَخٌ إِلَىٰ يَوْمِ يُبْعَثُونَ.
जब किसी के मरने का समय आता है तो वह फ़रियाद करता है और कहता है हे ईश्वर मुझे पलटा दे ताकि मैं नेक कार्य कर सकूं (2)
यह उस समय इन्सान की हसरत होगी कि काश में पलट जाऊँ और कोई नेक कार्य कर सकूं।
लेकिन ईश्वर का उत्तर होगाः कभी नहीं।
4. बहुत सी आयतों और रिवायतों में जिस पर बहुत ताकीद भी की गई है कहा गया है कि कुछ लोग नर्क में सदैव रहेंगे
بَلَىٰ مَن كَسَبَ سَيِّئَةً وَأَحَاطَتْ بِهِ خَطِيئَتُهُ فَأُولَـٰئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
जो बुराइया अपने लिए कमाएगा यह नर्कवासियों में से हैं जो सदैव उसमें रहेंगे। (3)
हम सभी लोग अपने पूरे जीवन काल में अपने लिए कमा रहे हैं, हम अपने आप को तैयार कर रहे हैं हम अपनी छोलियों को भर रहे हैं, हम अपने आप को वह शक्ल और सूरत दे रहे हैं जिसमें हम महाप्रलय में पैदा होंगे।
इस संसार में जब हम पैदा हुए तो हमको हाथ पैर आदि दिए गए लेकिन जब हम आखेरत में उठेगें तो उसकी शक्ल और सूरत हमको अपने लिए स्वंय तैयार करनी होगी।
जैसे कि अगर कोई इन्सान नामहरम पर निगाह डालता है तो वह ऐसा ही है कि वह अपने आपको अंधा कर रहा है और क़यामत के दिन वह अंधा उठेगा।
जैसे कि अगर कोई म्यूज़िक सुनता है तो वह अपने कानों को बहरा कर रहा है, जो अपने शरीर से पाप कर रहा है वह अपने शरीर को क्षति पहुंचा रहा है और आख़ेरत में वह उठेगा एक ऐसे इन्सान की सूरत में जो पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुआ होगा। किसी जानवर की शक्ल में उठेगा।
जैसा कि रिवायतों में भी है कि कुछ लोग जानवरों की भाति उठेंगे, कुछ सुअर होंगे कुछ दूसरी शक्लों में।
जिस इन्सान के पूरे वुजूद को पापों ने घेर लिया हो वह सदैव नर्क में रहेगा, जिसकी सोंच पर भी पाप का पहरा हो, और इसीलिए कहा जाता है कि अक़ीदे का मर्तबा अमल से पहले है क्योंकि यह सोंच ही है जो इन्सान को सही कार्य की तरफ़ ले जाती है।
और क़ुरआन में ख़ुदा फ़रमाता हैः कि जो किसी मोमिन को बिना किसी कारण को जानबूझ कर क़त्ल कर दे उसक ठिकाना नर्क है
وَمَن يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِيهَا وَغَضِبَ اللَّـهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِيمًا
(4)
तो अगर एक मोमिन को क़त्ल करने पर ठिकाना नर्क होगा तो अगर कोई रसूल के दिल और प्यारे हुसैन को कर्बला में टुकड़े टुकड़े कर दे तो अगर वह सदैव के लिए नर्क में रहे तो आश्चर्य किस बात का है।
इन नुक्तों के बाद हम आपने प्रश्न पर वापस आते हैं
एक इन्सान एक सीमित अवधि में पाप करता है लेकिन उसका अज़ाब सदैव के लिए होगा। यह ईश्वर का कैसा न्याय है?
याद रखिए कि आख़ेरत में ख़ुदा की तरफ़ से दिया जाने वाला इन्आम या सज़ा तीन अवस्थाओं से ख़ाली नहीं है।
1. या अनुबंधित (क़रार दादी) है, जैसे कि इस संसार में हम लोग क़रार करते हैं कि अगर जैसे कोई रेड लाइट से निकल गया तो 100 रुपए जुर्माना होगा, या इसी प्रकार की और चीज़ें
2. या इसलिए है कि पापी का कार्य कारण बना है आख़ेरत के अज़ाब का।
3. या पापी का कार्य ख़ुद आख़ेरत का अज़ाब है।
इन तीनों प्रकारों में से आप किसी को भी मान लीजिए उसके अनुसार किया जाने वाला अज़ाब ईश्वर के न्याय के भी अनुसार है और उसकी कृपा के भी। इसको हम आपके सामने थोड़ा विस्तार से पेश करते हैं।
अगर हम पाप पुन्य को अनुबंधित मान ले, यानी ईश्वर ने इन्सान को पैदा किया, उसको पाप और पुन्य बता दिया और फिर फ़रमायाः
وَمَن يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِيهَا وَغَضِبَ اللَّـهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِيمًا
अगर कोई मोमिन को क़त्ल करे तो हमारी अनुबंध यह है कि उसको नर्क में सदैव रहना होगा। ईश्वर ने एलान कर दिया है अब जो भी करेगा उसके नर्क जाना होगा।
अगर हम पाप पुन्य को दूसरी क़िस्म का माने, (पापी का कार्य कारण बना है आख़ेरत के अज़ाब का।) तो भी ईश्वर के न्याय के विरुद्ध नहीं है। जैसे कि अगर इस संसार में कोई इन्सान किसी की आंख में चाक़ू मार दे और वह अंधा हो जाए, तो क्या कोई यह कह सकता है कि चाक़ू मारा तो केवल एक क्षण के लिए था अब यह सदैव के लिए अंधा कैसे हो सकता है? जिस प्रकार चाकू का आँख में जाना अंधेपन का कारण है इसी प्रकार इन्सान का पाप होता है जो कारण बनता है उसके सदैव नर्क में रहने का। यानी हमारे इस संसार के कार्यों का नतीजा है जो हम अज़ाब की सूरत में आख़ेरत में देख रहे हैं।
अगर तीसरी सूरत हो, (पापी का कार्य ख़ुद आख़ेरत का अज़ाब है।) तो याद रखिए कि हम आख़ेरत में अपने ही द्वारा बिछाए गए दस्तरख़ान पर बैठेंगे, जो हमने भेजा है वही हमको मिलेगा।
जैसा कि सूरा बक़रा की 24वीं आयत में ईश्वर फ़रमाता हैः
فَإِن لَّمْ تَفْعَلُوا وَلَن تَفْعَلُوا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِي وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ ۖ أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِينَ
..... इस नर्क की आग स्वंय यह इन्सान हैं
ऐसा नहीं है कि आप सोंचे कि वहां आग होगी और इन्सान को उसमें डाला जाएगा, नहीं! बल्कि यह इन्सान स्वंय आग है, जब इन्सानों की आँखों से पर्दे हटाए जाएंगे तो वह देखेगा कि उसका पूरा वुजूद आग है।
इस बात को क़ुरआन की विभिन्न आयतों में बयान किया गया है
فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِي وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ
अगर इन नर्क वालों को इस संसार में पलटा भी दिया जाए जैसा कि वह कहते हैं कि अगर हमको पलटा दे तो हम नेक कार्य करेंगे तो ईश्वर जवाब देता है नहीं! यानी अगर तुमको पलटा भी दिया जाए तो तुम नेक कार्य नहीं करोगे
(حَتَّىٰ إِذَا جَاءَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ رَبِّ ارْجِعُونِ لَعَلِّي أَعْمَلُ صَالِحًا فِيمَا تَرَكْتُ ۚ كَلَّا )
जैसा कि एक दूसरी आयत में इस बात को स्वंय क़ुरआन कह रहा हैः
وَلَوْ رُدُّوا لَعَادُوا لِمَا نُهُوا عَنْهُ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ
अगर यह पलट भी जाएं तो वही कार्य जो अब तक कर रहे थे करेंगे। (5)
रिवायतें
इस सम्बंध में बहुत सी रिवायतें भी हमारे इमामों से बयान की गई हैं जिनको संक्षेप में हम यहां पर बयान करेंगे, इन रिवायतों का मूल यह है कि इन लोगों का रवय्या यह था कि जब तक इस संसार में है तब तक यही बुरे कार्य करते रहेंगे और इसी शैली पर जीवन जीते रहेंगे।
इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं:
إِنَّما خُلِّدَ أَهلُ النّارِ فِى النّارِ لأَِنَّ نيّاتَهُم كانَت فِى الدُّنيا أَن لَو خُلِّدُوا فيها أَن يَعصُوا اللّهَ أَبَدا وَإِنَّما خُلِّدَ أَهلُ الجَنَّةِ فِى الجَنَّةِ لأَِنَّ نيّاتَهُم كانَت فِى الدُّنيا أَن لَو بَقُوا فيها أَن يُطيعُوا اللّهَ أَبَدا فَبِا النِّيّاتِ خُلِّدَ هؤُلاءِ وَهؤُلاءِ ثُمَّ تَلاقَو لَهُ تَعالى: (قُل كُلٌّ يَعمَلُ عَلى شاكِلَتِهِ) قالَ: عَلى نيَّتِهِ؛
नर्कवासी नर्क में सदैव इसलिए रहेंगे कि उनकी नियत यह थी कि अगर इस संसार में सदैव रहते तो सदैव ईश्वर के आदेशों की अवहेलना और पाप करते, और स्वर्गवासी स्वर्ग में सदैव रहेंगे क्योंकि उनकी नियत यह थी कि अगर इस संसार में सदैव रहते तो ईश्वर की इताअत और उसके आदेशों का पालन करते, तो हर दोनों गुटों का सदैव (स्वर्ग या नर्क में) रहना उनकी नियतों के कारण है। फ़िर आपने यह आयत पढ़ी "और कह दो कि हर इन्सान अपनी नियत के अनुसार कार्य करता है" (6)
तो लोगों का नर्क में सदैव रहना ईश्वर के न्याय और उसकी कृपा के विरुद्ध नहीं है।
इस पूरे लेख का साराशं कुछ इस प्रकार होता है
1. नर्क है।
2. सदैव नर्क में रहना सही है।
3. मरने के बाद संसार में वापस पलटकर आना नहीं है।
4. मोमिन को जानबूझ कर बिना किसी ग़ल्ती के क़त्ल करने वाला उन लोगों में से है जिसके बारे में क़ुरआन ने कहा है कि वह सदैव नर्क में रहेगा। और वह इन्सान नर्क में रहेगा जिसका पूरा वुजूद पाप हो चुका हो।
5. अगर हम यह माने कि अज़ाब अनुबंधित है तो स्पष्ट है कि चूंकि ईश्वर ने कहा है इसलिए सदैव नर्क में रहना होगा, और अगर यह कहें कि इन्सान का कार्य कारण है आख़ेरत के अज़ाब का तब भी स्पष्ट है और अक़्ल इसको सही मानती है, और अगर यह कहें कि हमारे कार्य ख़ुद हमारे अज़ाब का रूप हैं तब भी सही है और हर इन्सान को अपने द्वारा तैयार किए गए दस्तरख़ान पर बैठना होगा, तब भी सही और अक़्ली है।
बहर हाल ख़ुदा ने हमको क़ुरआन दिया पैग़म्बर आए अक़्ल दी है इसके बाद अगर हमने पाप किया तो हम नर्क में जाएंगे मगर यह कि हमको क्षमा मिल जाए, या अहलेबैत की शिफ़ाअत
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स्रोत
1. नहजुल बलाग़ा हिकमत 71
2. सूरा मोमिनून आयत 99-100
3. सूरा बक़रा आयत 81
4. सूरा निसा आयत 93
5. सूरा अनआम आयत 28
6. अलकाफ़ी, जिल्द 2 पेज 85, हदीस 5
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