धैर्य और जीवन में उसकी भूमिका
धैर्य और जीवन में उसकी भूमिका
ईश्वर में आस्था व संज्ञान में सुदृढ़ता तथा उसकी भलाई की महत्वकांक्षा एवं इसी प्रकार धैर्य के सकारात्मक प्रभावों पर ध्यान, ऐसे उपाय हैं कि जो मनुष्य की परिपक्वता को मज़बूत बनाने में सहायक होते हैं। पुण्य कर्म करने एवं पापों से बचने के लिए अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न करने हेतु धैर्य की भूमिका अहम है। जो कोई धैर्य रखता है न केवल उसका परलोक अच्छा होता है बल्कि उसका लोक जीवन भी शांतिपूर्ण एवं अधिक सफल होता है। इस वास्तविकता के बारे में चिंतन मनन करना मनुष्य को धैर्य के लिए प्रोत्साहित करता है।
धैर्यवान व्यक्ति अपने ऊपर निंयत्रण रखता है तथा परिणामहीन शिकायतों एवं आपत्तिजनक आचरण से अपनी शांति भंग नहीं करता है, बल्कि उन मार्गों से कि जिनके द्वारा ईश्वर की संतुष्टि प्राप्त होती है अपने धैर्य को सुरक्षित रखता है। धैर्यवान एवं परिपक्व व्यक्ति ईश्वर के परोपकार पर विश्वास रखता है और जानता है कि वह पूर्ण ज्ञानी एवं सबसे अधिक कृपालु है। अतः ऐसा व्यक्ति रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को अंततः उसकी आज्ञा समझता है। परिणाम स्वरूप, कठिनाइयों एवं पीड़ाओं में अपनी शांति को सुरक्षित रखता है तथा अपनी ज़बान को आपत्ति से एवं अंगों को अनैतिक आचरण से दूर रखता है।
एक पुरानी कहावत है कि धैर्य कड़वा है लेकिन उसका फल मीठा है। महान लोगों के जीवन का इतिहास साक्षी है कि एक महत्वूर्ण कारक अथवा उनकी सफलता का सबसे महत्वपूर्ण कारण धैर्य एवं स्थिरता रही है। जो लोग इन अनुकंपाओं से वंचित हैं, कठिनाइयों में बहुत जल्दी धैर्य खो देते हैं। कहा जा सकता है कि मनुष्यों एवं समाज की प्रगति में जो भूमिका यह कारक अदा करता है वह बहुत महत्वपूर्ण है। इतिहास ऐसे मनुष्यों की जीवन कथाओं से भरा पड़ा है कि जो स्थिरता के परिणाम स्वरूप सफल हुए हैं। अमरीकी आविष्कारक थोमस एडिसन ने बल्ब के आविष्कार एवं बिजली के उत्पादन हेतु वर्षों प्रयास किया। अंधी लेखिका हेलेन केल्लर ने उन कार्यों को सीखने हेतु कि जो दूसरों के लिए आसान थे बहुत ही कठिन लम्बा समय बिताया। महान व्यक्तियों के जीवन का अध्ययन एवं उनके अनुभवों से लाभ उठाना उन कारकों में से एक है कि जो हमें धैर्य से सहायता प्राप्त करना सिखाता है।
जिस समय हमारे ऊपर अनेक कामों को अंजाम देने की ज़िम्मेदारी होती है या जिस समय हमारे पास कठिन कार्य करने का कार्यक्रम होता है, तो हम धैर्य खो बैठते हैं। अगर आप अपनी शक्ति से अधिक स्वयं से काम लेते हैं तो अपने कामों में पुनर्विचार करिए। अपने कार्यों को इस प्रकार सुनियोजित करें कि एक समय में केवल एक कार्य अंजाम दें।
तुलना करने से बचो। सामान्यतः ग़लत तुलनाओं से आतुरता उत्नन्न होती है। अगर आपके मित्रों और साथियों मे से कोई सफलता के उस स्तर पर पहुंच जाए कि जो आपकी महत्वकांक्षा थी, तो आप को यह समझना चाहिए कि आपके लिए परिस्थितियां उसके जैसी नहीं हैं। ग़लत तुलना करने से आपके भीतर अधीरता एवं बेसब्री उत्पन्न होगी। धैर्य की भावना उत्पन्न करने का दूसरा तरीक़ा यह है कि जो कारक अधिकांश आतुरता में वृद्धि करते हैं उन्हें पहचानें। यदि आप चिंतित एवं निराश हैं, संभव है कि आप पहचान ही नहीं पायें कि इस प्रकार की भावना एवं स्थिति का कारण अधीरता एवं आतुरता है। आतुरता को कम करने के लिए अपने भीतर उसके उत्पन्न होने के कारण को पहचानना बहुत लाभदायक रहता है। धैर्य के कराण, जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण में परिवर्तन होता है। किन्तु शांति प्राप्ति के मार्गों का ज्ञान प्राप्त करके जिस समय भी आतुरता का आभास करें, अपने भीतर शांति एवं धैर्य उत्पन्न करने के लिए प्रयास कर सकते हैं। कुछ लम्बी लम्बी सांसे लें और अपने मस्तिष्क को साफ़ करने का प्रयास करें।
इस प्रकार अपनी स्थिति को समझ जायेंगे और समझ जायेंगे कि कहां हैं और उसके बाद क्या करना चाहिए। कुछ क्षणों तक बिल्कुल भी कोई काम न करें। शांति और आराम से बैठें और सोच विचार करें। इस दौरान, टीवी न देखें और कुछ न पढ़ें। कोई भी काम न करें। संभव है कि प्रारम्भ में आपके लिए कठिन हो और यहां तक कि एक दो मिनट बाद अधीरता का आभास करें, किन्तु थोड़ा आराम करने एवं सांस लेने से अपने भीतर की हलचल को शांत कर सकते हैं और यह सोच को खोलने एवं धैर्य के लिए आवश्यक व्यवहार के दृष्टिगत बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरा क़दम यह है कि स्वयं को यह याद दिलाओ कि हर काम को करने के लिए समय की आवश्यकता होती है। जो लोग आतुर एवं अधीर होते हैं कम से कम समय में काम किए जाने पर आग्रह करते हैं और उसमें समय ख़र्च करना नहीं चाहते। हालांकि बहुत से कार्यों को जल्दबाज़ी में अंजाम नहीं दिया जा सकता।
धैर्य रखने का दूसरा तरीक़ा यह है कि अप्रत्याशित एवं अघोषित घटनाओं के लिए तैयार रहना चाहिए। आप अपने काम को अंजाम देने के लिए योजना बनाते हैं, किन्तु काम सदैव आपकी योजना के अनुसार आगे नहीं बढ़ते। अपनी उम्मीदों एवं अपेक्षाओं को वास्तविकता प्रदान करें। उदाहरण स्वरूप, अगर आप अपने बच्चे पर इस लिए चिल्ला रहे हैं कि आपके बच्चे ने पेय जल का गिलास उलट दिया है तो इस स्थिति में आप इस वास्तविकता और सिद्धांत से अवगत नहीं हैं कि मनुष्य चूक, त्रुटि, औक कमियों से पाक नहीं है। यहां तक कि अगर वह घटना ग़लती और असावधानी से घटी हो तो भी धैर्य खोने से स्थिति में सुधार नहीं होगा। इस लिए अपनी सोच और ध्यान को ऐसे विषयों पर केन्द्रित न करें कि जिनके कारण आतुरता में वृद्धि होती है। प्रेम और दयालुता, दानशीलता व त्यागशीलता और जीवन की परिस्थितियों के लिए आभारी होकर अधिक से अधिक लाभ उठायें। सदैव यह याद रखिए कि जो चाहते हो अंततः वह प्राप्त कर लोगे। इस के लिए धैर्य एवं धीरता की आवश्यकता है।
धार्मिक शिक्षाओं में अनेक बार धैर्य के प्रभावों एवं परिणामों का उल्लेख किया गया है। उन में से एक यह है कि धैर्य तथा सफलता एक दूसरे से निकट और एक साथ हैं। हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं कि सहनशील व्यक्ति सफलता को हाथ से नहीं जाने देता यद्यपि उस पर लम्बा समय बीत जाए।
धैर्य के दूसरे परिणामों में से एक यह है कि धैर्यवान व्यक्ति ईश्वर की इच्छा के मुक़ाबले में जल्दबाज़ी जैसे पाप करने से दूर रहता है और अपने धैर्य का इनाम पाता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि अगर धैर्य रखोगे तो ईश्वर का आदेश तुम्हारे लिए जारी होगा और तुम्हें प्रतिफल दिया जाएगा और यदि जल्दबाज़ी करोगे तो भी तुम्हारे लिए ईश्वर का निर्णय सुरक्षित है लेकिन तुमने पाप किया।
वह सहनशील व्यक्ति कि जो आदेश पालन पर अटल रहता है और पापों से दूर रहता है तो परलोक में भलाई प्राप्त करता है तथा ईश्वर अत्यधिक अनुकंपाओं की बारिश करता है। आपदाओं के मुक़ाबले में धैर्य एवं सहनशीलता मनुष्य की प्रगति एवं विकास का कारण बनता है तथा कठिनाइयों के ईश्वरीय अनुकंपाओं में परिवर्तन एवं परलोक में मुक्ति का कारण बनता है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) धैर्य के तीन प्रकार बताए हैं। हज़रत के पवित्र कथन से इस कार्यक्रम को संपन्न करते हैं।
धैर्य तीन प्रकार का है। दुख में धैर्य, आदेश पालन में धैर्य और पाप में धैर्य।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने तीनों प्रकार के धैर्य के बारे में इस प्रकार उल्लेख किया है कि जो कोई दुख में धैर्य रखे और धैर्य से कठिनाइ का सामना करे, ईश्वर उसके लिए धरती एवं आकाश के बीच की दूरी जैसे दर्जे दृष्टि में रखता है। जो कोई ईश्वर के आदेश का पालन करने एवं उपासना करने में धैर्य रखेगा, तो ईश्वर उसे धरती की गहराइ और स्वर्गलोक तक के बीच की दूरी जैसा दर्जा प्रदान करता है और जो कोई पापों के मुक़ाबले में धैर्य रखेगा, तो ईश्वर उसके लिए धरती की गहराई से स्वर्गलोक के अंतिम बिंदु तक जैसा दर्जा दृष्टि में रखता है। इसी लिए पापों के मुक़ाबले में धैर्य तथा ईश्वरीय अवज्ञा से दूरी परिपक्वता का शीर्ष है।
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