इस्लामी अक़ीदे भाग 5 / इन्सान की एक विशेषता उसकी अक़्ल है

इस्लामी अक़ीदे भाग 5 / इन्सान की एक विशेषता उसकी अक़्ल है

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हम आपके सामने सच्चे अक़ीदों को बयान कर रहे थे, वह अक़ीदे जिनका आधार पैग़म्बरे इस्लाम की रिसालत और बारह इमामों की इमामत और चौदह मासूमीन की इस्मत है।

इन्सान और दूसरी चीज़ों में जो सबसे बड़ा अंतर है वह हैं इन्सान के पास अक़्ल और समझ का होना।

अक़्ल के बारे में हमारी रिवायतों में आया है कि, ईश्वर ने बंदों पर दो हुज्जतें रखी हैं, एक हुज्जत बाहरी हुज्जत है और वह नबी, किताबें रसूल आदि हैं, लेकिन ईश्वर ने इन्सान के अंदर एक हुज्जत रखी है जिसका नाम है अक़्ल।

जैसे कि कभी कभी कोई किसी बुरे कार्य को करना चाहता है तो उसकी आत्मा उससे कहती है यह बुरा है इसको ना करो, या अगर कोई अच्छा कार्य होता है तो आत्मा करती है कि इसको करो।

तो ईश्वर ने हमारे अंदर एक ऐसा गुण और योग्यता रखी है जो इन्सान को सबसे निचले स्थान से सबसे ऊपर तक पहुंचा सकती है, इसके माध्यम से इन्सान ईश्वर को पहचान सकता है और इसी लिए मोमिन का एक दूसरा नाम आक़िल है।

यह एक ऐसा गुण है जिससे इन्सान अच्छाई और बुराई में अंतर  कर सकता है और इसीलिए हमारा एक अक़ीदा यह है कि अच्छाई और बुराई अक़्ली चीज़ हैं यानी हम समझ सकते है कि क्या बुरा है और क्या अच्छा है।

इसी कारण सही और इस्लामी अक़ीदा यह है कि इन्सान के मुकल्लफ़ होने के लिए शर्त है कि उसके पास अक़्ल हो इसी कारण पागल और वह बच्चा जो अभी बालिग़ नहीं हुआ है और उसकी अक़्ल पूर्ण नहीं हुई है उस पर कोई वाजिब और हराम नहीं है।

शायद यह बात सुनने और देखने में आपको बहुत आसान लगे लेकिन हम इसको जिनता आसान मसझते हैं उतना आसान है नहीं।

ईसाई जिनकी संख्या इस दुनिया में सबसे अधिक है वह इतनी सी आसान और सीधी सी बात को स्वीकार नहीं करते हैं वह कहते हैं कि वह बच्चा जो पैदा होता है, उसके पैदा होते ही अगर उसको ग़ुस्ले तामीद दे दिया जाए तो वह जन्नती है, लेकिन अगर उसको ग़ुस्ले तामीद नहीं दिया गया, यानी अगर  बच्चा पैदा होने के बाद मान लीजिए की अगर दो दिन में मर गया तो उसका स्थान नर्क है, यानी ईसाईयों के यहां किसी के मुकल्लफ़ होने के लिए अक्ल की शर्त नहीं है।

वह कहते हैं कि चूंकि यह बच्चा पापी इस संसार में आया है और चूंकि पापी ही इस संसार से गया है इसलिए उसका स्थान नर्क हैं।

देखा आपने यह इतना आसान नहीं है जितना हम समझते हैं,

ईसाई कहते हैं कि इन्सान पवित्र इस संसार में नहीं आता है लेकिन हम कहते हैं कि वह पवित्र इस संसार में क़दम रखता है

अगर ध्यान दिया जाए तो यहा पर दो आपत्तियां है

1. क्या ईश्वर में इत्नी शक्ति नहीं थी कि वह इन्सान को पवित्र पैदा कर सके।

2. वह ईश्वर जो दो दिन के बच्चे पर अज़ाब कर दे तो वह कैसा कृपालु ईश्वर है?!!! ऐसा ईश्वर दो आदिल भी नहीं है कृपालु के बारे में क्या कहा जाए, दो दिन का बच्चा जो बात भी नहीं कर सकता है उस पर वह अज़ाब कर रहा है और उसको नर्क भेज रहा है।

इसीलिए हमारा अक़ीदा है कि ईश्वर ने इन्सान के अंदर अक़्ल रखी है और उसकी के आधार पर वह उसको मुक़ल्लफ़ बनाता है
अक़्ल किसे कहते हैं

अरबी भाषा में अक़्ल बांधने के मानी में है, अक़्ल एक शक्ति है जो इन्सान को बुराई की तरफ़ जाने से रोकती है, यानी वह वाजिब और हराम को पहचानती है और इन्सान को वाजिब को अंजाम देने और हराम से रुकने का हुक्म देती है। इसीलिए जिस इन्सान के पास अक़्ल ना हो या जिसकी अक़्ल पूर्ण ना हुई हो उस पर कोई तकलीफ़ नहीं है।

तो इन्सान की अक़्ल उसके अंदर की एक हुज्जत है और शिया एवं सुन्नी बहुत सी रिवायतों में इस बात को बयान किया गया है ईश्वर क़यामत के दिन हर इन्सान को जितनी उनसे अक़्ल दी है उसी आधार पर उससे हिसाब किताब करेगा।

आज कर बहुत से चैनलों विशेषकर वहाबी चैनलों पर कहा जा रहा है कि अगर अहलेबैत (अ) अमीरुल मोमिनीन (अ) हक़ हैं तो आइये आप उनके हक़ को क़ुरआन से साबित कीजिए, अगर वह सही है तो उनका नाम क़ुरआन में क्यों नहीं आया है... और इसी प्रकार की बातें।

इस उत्तर हम उसके सही स्थान पर देंगे लेकिन अगर संक्षेप में कहा जाए तो हम यह कहेंगे कि, हम जिस दलील से ईश्वर से अस्तित्व को साबित कर ते हैं, जिस दलील से नबूत को साबित कर ते हैं उसी दलील से इमामत और इमाम होने को भी साबित करते हैं।

हम ईश्वर के अस्तित्व को क़ुरआन से साबित नहीं करते हैं, हम उसके अस्तित्व को अक़्ल से साबित करते हैं, क़ुरआन और हदीस से पहले अक़्ल का स्थान है, इसी प्रकार नबूवत और इमामत के होने पर हमारे पास अक़्ली दलील है कि अगर इस धरती पर दो लोग भी हों तो उनमें से एक इमाम होगा इसको हम अक़्ल से साबित करते हैं ।

यह तो एक बात थी दूसरी बात यह है कि स्वंय आपकी पुस्तकों ने इस बात को बयान किया है, शवाहेदुत तंज़ील के सम्मानीय लेख़क स्वर्गीय हस्कानी ने अपनी किताब में क़ुरआन की 300 आयतों को जिनके अंतर्गत इमाम अली (अ) की बहस हुई है लिखी हैं।

अगर आप वहाबी लोग हर चीज़ के केवल क़ुरआन से लेने लगेंगे तो अपनी सुबह की नमाज़ भी नहीं पढ़ सकते हैं।

आप हमको बताइये कि क़ुरआन में किस स्थान पर लिखा है कि सुबह की नमाज़ दो रकअत है इसी प्रकार बहुत सी दूसरी बातें है जो क़ुरआन में नहीं आई हैं लेकिन मुसलमान उस पर विश्वास रखते हैं।

तो हमारी बहस यह थी कि ख़ुदा ने इन्सान को अक़्ल दी है जो अंदरूनी हुज्जत है जो इन्सान को अच्छाई की तरफ़ बुलाती है और बुराई से रोकती है।

अक़्ल के बारे में रिवायतें

1. रसूले इस्लाम (स) फ़रमाते हैं:

 قِوَامُ الْمَرْءِ عَقْلُهُ ، وَلا دِينَ لِمَنْ لا عَقْلَ لَهُ (1)

इन्सान की स्थिरता उसकी अक़्ल से हैं और जिसके पास अक़्ल नहीं उसके पास दीन नहीं।

आप ने कभी सोंचा है कि इस्लाम में शराब हराम है, ऐसा क्यों है? शायद इसका कारण यह हो कि इस्लाम ने हर उस चीज़ को मना किया है जो ईश्वर की दी हुई महत्वपूर्ण चीज़ अक़्ल को समाप्त कर दे और इन्सान को जानवर बना दे, और शराब चूंकि इन्सान की अक़्ल को समाप्त कर देती है इसलिए इस्लाम में हराम रखी गई है।

2. अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं:

لا غِنَی کالعَقلِ، و لا فَقرَ کالجَهلِ (2)

अक़्ल के जैसे कोई बेनियाज़ी और जिहालत के जैसे कोई फ़क़ीरी नहीं है।

3. अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं:

 إِنَّ اللَّهَ تَبَارَکَ وَ تَعَالَى یُحَاسِبُ النَّاسَ عَلَى قَدْرِ مَا آتَاهُمْ مِنَ الْعُقُولِ فِی دَارِ الدُّنْیَا (3)

क़यामत के दिन ख़ुदा हर इन्सान से उसी मात्रा में हिसाब लेगा जिस मात्रा में उसने दुनिया में उसको अक़्ल दी होगी।

4. इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः

إِنّ الثّوَابَ عَلَى قَدْرِ الْعَقْلِ (4)

सवाब अक़्ल के बराबर है।

4. इमाम बाक़िर (अ) ने फ़रमाया

عَنْ أَبِي جَعْفَرٍ ع قَالَ لَمّا خَلَقَ اللّهُ الْعَقْلَ اسْتَنْطَقَهُ ثُمّ قَالَ لَهُ أَقْبِلْ فَأَقْبَلَ ثُمّ قَالَ لَهُ أَدْبِرْ فَأَدْبَرَ ثُمّ قَالَ وَ عِزّتِي وَ جَلَالِي مَا خَلَقْتُ خَلْقاً هُوَ أَحَبّ إِلَيّ مِنْكَ وَ لَا أَكْمَلْتُكَ إِلّا فِيمَنْ أُحِبّ أَمَا إِنّي إِيّاكَ آمُرُ وَ إِيّاكَ أَنْهَى وَ إِيّاكَ أُعَاقِبُ وَ إِيّاكَ أُثِيبُ‏ (5)

यह रिवायत उसूले काफ़ी में भी आई है कि जब ख़ुदा ने अक़्ल को पैदा किया तो उससे कहा आगे आओं तो वह आगे आई फिर कहा पीछे जाओं तो वह पीछे गई, फिर ख़ुदा ने कहाः मुझे क़सम है अपने इज़्ज़त और सम्मान की मैंने तुझ से अधिक महबूब चीज़ कोई पैदा नहीं की ....... मैं तुझे आदेश दूंगा और तुझे नहीं करूंगा, और तेरे माध्यम से अज़ाब दूंगा और तुझ से सवाब।

पाप करने का नुक़सान

क्या आप जानते है कि जो व्यक्ति गुनाह और पाप करता है उसका क्या नुक़सान होता है? आप शायद उत्तर दें कि वह नर्क में जाएगा, यह तो अपने स्थान की बात है यह तो उस समय होगा जब वह मरेगा, लेकिन इस संसार में पाप का एक बहुत बड़ा नुक़सान होता है वह है अक्ल का कम हो जाना, हर पाप हमारी अक़्ल का एक भाग कम कर देता है।

जिस प्रकार अगर किसी इन्सान की आंख पर चोट लग जाए तो उसकी रौशनी धीरे धीरे कम होतो होते यहां तक पहुंच जाती है कि इन्सान अंधा हो जाता है।

5. इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं:

 العَقلُ ما عُبِدَ بِهِ الرَّحمانُ‌ وَ اکتُسِبَ بِهِ الجِنان (6)

इमाम सादिक़ से प्रश्न किया गया कि अक़्ल क्या है तो आपने फ़रमाया अक़्ल वह चीज़ है जिससे ईश्वर की इबादत की जाए और जन्नत प्राप्त की जाए।

तो अक़्ल का नतीजा इबादत और जन्नत प्राप्त करना है, आस स्वंय फैसला करें कि अगर हम किसी ऐसे दोराहे पर हों जहां से एक रास्ता सदैव बाक़ी रहने वाली जन्नत की तरफ़ जाता हो और दूसरा रास्ता हमेशा के अज़ाब नर्क की तरफ़ जाता तो, तो ऐसी सूरत में आपकी अक़्क क्या फैसला करेगी?

इस संसार की पचास साठ साल की सख़्ती और सदैव का आराम एक अक़्लमंद इन्सान स्वीकार करेगा या इस संसार की समाप्त हो जाने वाली ख़ुशी और सदैव बाक़ी रहने वाले अज़ाब को इन्सान स्वीकार करेगा।

6. एक रिवायत में इमाम सादिक़ (अ) से कहा गया कि फ़लां व्यक्ति है जो इतनी इबादत करता है आपने प्रश्न किया कि उसकी अक़्ल कितनी है लोगों ने कहा पता नहीं तो आपने कहा कि ख़ुदा इन्सान की अक़्ल की मात्रा भर उसको सवाब देगा फिर आपने बनी इस्राईल के एक व्यक्ति का वाक़ेआ सुनाया, आपने फ़रमाया

बनी इस्राईल में एक आबिद था जो एक टापू पर इबादत करता था, और सदैव इबादत में लीन रहता था, एक दिन एक फ़रिश्ते ने ख़ुदा से कहा कि हे ईश्वर मुझे यह बता कि इस व्यक्ति का सवाब कितना है। ईश्वर ने सवाब दिखाया, वह फ़रिश्ता आश्चर्य चकित रह गया कि वह इतनी इबादत करता है और उसका सवाब इतना कम।

ख़ुदा ने कहा जाओ और उसके साथ बैठों तुम को वास्तविक्ता समझ में आ जाएगी।

वह कुछ दिन आकर उस आबिद के साथ रहता है, बातों ही बातों में वह आबिद फ़रिश्ते से कहता है कि काश मेरे ख़ुदा के पास एक गधा होता ताकि वह यहां फैली हुई घास को खा सकता।

उस फ़रिश्ते को समझ में आ जाता है कि इसकी अक़्ल कितनी है और यह ईश्वर के बारे में कितना ज्ञान और मारेफ़त रखता है।

याद रखिए कि अक़्ल का नतीजा ज्ञान है।

हमारी रिवायतों में आया है कि ज्ञानी का सो जाना जाहिल की इबादत से बेहतर है।  

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स्रोत

(1) नहजुल फ़साहा, हदीस 2103

(2) नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेह पेज 478, हदीस 54

(3) बिहारुल अनवार जिल्द 2, पेज 106 हदीस 1

(4) उसूले काफ़ी, जिल्द 1, पेज 12

(5) उसूले काफ़ी जिल्द 1, पेज 10, हदीस 1

(6) उसूले काफ़ी जिल्द 1, पेज 11, हदीस 3

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