लानत और बुराभला कहने में अंतर
लानत और बुराभला कहने में अंतर
आज के सेटेलाट और इन्टरनेट के युग वहाबी और तकफ़ीरी चैनल और साइटे लोगों को यह समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं कि क्या यह लानत करना सही है या नही और क्या एक मुसलमान को लानत करना चाहिए या नहीं।
जैसा कि हम जानते है कि इस बहस को उठाने से उनका मक़सद रसूले इस्लाम (स) ने नवासे उनके जिगर के टुकड़े इमाम हुसैन (अ) के का़तिल यज़ीद बिन मोआविया को बरी करना है, वह यह चाहते हैं कि मुसलमानों की निगाह में इनको सही ठहरा सकें और उनके प्रति मुसलमानों के दिलों में पाई जाने वाली कुंठा और नफ़रत को कम कर सके।
और अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए और लानत को सही ना ठहरान के लिए यह लोग पवित्र क़ुरआन की सूरा बक़रा की 108वीं आयत तर्क के तौर पर पेश करते हैं जिसमें ईश्वर फ़रमाता हैः
وَلاَ تَسُبُّواْ الَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِ اللّهِ فَيَسُبُّواْ اللّهَ عَدْوًا بِغَيْرِ عِلْمٍ
और कहते हैं कि ख़ुदा ने लानत करने से मना किया है।
और अंत में यह वहाबी चैनल अपने दर्शकों से प्रश्न करते हैं कि क्या यह जाएज़ है कि एक मोमिन और मुसलमान लानत एवं सब करे?
और अगर इन वहाबियों से पूछा जाए कि इसी क़ुरआन की कुछ आयतों में ख़ुदा ने कुछ लोगों पर लानत की है तो उसने उत्तर में कहते हैं कि क्या हर वह कार्य जो ख़ुदा ने किया है वह एक मुसलमान भी करे यह ज़रूरी है, जैसे कि ख़ुदा मुतकब्बिर (अहंकारी) है तो क्या एक मुसलमान को भी मुतकब्बिर होना चाहिए?
उत्तर
आज हर मुसलमान को पता है कि इन वहाबियों का कार्य ही यह है कि वह पवित्र क़ुरआन के एक भाग को मानते हैं और दूसरे भाग को नही मानते हैं और यही इनकी शैली है, और यहां पर भी इन्होंने यही कार्य किया है।
सूरा बक़रा की 108वीं आयत अपने स्थान पर सही है।
और रिवायतों में भी सब करने से मना किया गया है और यह हराम है।
लेकिन सब का अर्थ गाली गलौज करना और बुराभला कहना है ना कि लानत करना। (लानत का अर्थ यह है कि किसी को उसके बुरे कार्य के लिए बुरा कहना, ना कि गाली देना)
और यह लानत ईश्वरीय गुणों में से है लेकिन यह उस गुण के जैसा नहीं है जैसा कि ईश्वर के लिए मुतकब्बिर या अहंकारी होना कहा गया है,
बल्कि यह ईश्वर, फ़रिश्तों और नबियों के गुणों में से है जैसे सलवात भेजना, यानी जिस प्रकार सलवात भेजना ईश्वरीय गुए है, फ़रिश्तों का गुण है नबियों का गुण है उसी प्रकार मोमिनो का गुण भी होना चाहिए। और यह लानत करने का गुण बराबर है सलवात के गुण से ना कि अहंकारी के गुण से अब अगर कोई मुसलमान है तो वह भी लानत अवश्य करेगा।
यह लानत की सिफ़त एक ईश्वरीय सिफ़त है और जो व्यक्ति भी इसका इन्कार करेगा वह ऐसा ही है कि उनके क़ुरआन का इन्कार किया हो।
हम अपने पाठकों के सामने क़ुरआन की कुछ वह आयतें प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें ईश्वर ने लानत की है।
1. जिन लोगों ने पैग़म्बर को दुख पहुंचाया ईश्वर उन पर लानत करता है (सूरा अहज़ाब आयत 57)
إِنَّ الَّذِينَ يُؤْذُونَ اللَّـهَ وَرَسُولَهُ لَعَنَهُمُ اللَّـهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَأَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًا مُّهِينًا
2. ईश्वर लानत करता है उन लोगों पर जिन्होंने वास्तविक्ता को छिपाया (सूरा बक़रा आयत 89)
وَلَمَّا جَاءَهُمْ كِتَابٌ مِّنْ عِندِ اللَّـهِ مُصَدِّقٌ لِّمَا مَعَهُمْ وَكَانُوا مِن قَبْلُ يَسْتَفْتِحُونَ عَلَى الَّذِينَ كَفَرُوا فَلَمَّا جَاءَهُم مَّا عَرَفُوا كَفَرُوا بِهِ ۚ فَلَعْنَةُ اللَّـهِ عَلَى الْكَافِرِينَ
3. जिसने एक मोमिन को क़त्ल किया ईश्वर उसपर लानत करता है (सूरा निसा आयत 93)
وَمَن يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِيهَا وَغَضِبَ اللَّـهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِيمًا
यहां पर ध्यान देने वाली बात है कि ईश्वर केवल एक मोमिन को क़त्ल करने वाले पर लानत कर रहा है तो वह जो अमीरुल मोमिनीनी हज़रत अली (अ) के मुक़ाबले में जंग करने आ गया और जिसके कारण हज़ारों मुसलमान मारे गए उसका क्या, और आज यह वहाबी जिनके तकफ़ीरी फ़तवों के कारण हज़ारों मुसलमान सीरिया इराक़ पाकिस्तान और विश्व के दूसरे देशों में मारे जा रहे हैं, क्या उन पर ईश्वर की लानत नहीं होगी?!!!
4. वह लोग जो ईश्वर के सम्बंध में ग़लत अक़ीदा रखते हैं ईश्वर उन पर लानत करता है।
وَقَالَتِ الْيَهُودُ يَدُ اللّهِ مَغْلُولَةٌ غُلَّتْ أَيْدِيهِمْ وَلُعِنُواْ بِمَا قَالُواْ
(सूरा माएदा आयत 64)
शिया और ग़ैर शिया के बीच जो सबसे पहला समअला है वह अली के ख़लीफ़ा होने या तवस्सुल... अदिक का नहीं है बल्कि सबसे पहला मसअला तो ईश्वर के बारे में है
क्या ईश्वर दिखाई दे सकता है?
क्या ख़ुदा ने नेका कार्य करने वाले इन्सान को विवश किया है कि वह नेक कार्य करे और बुरे कार्य करने वाले को विवश किया है कि वह बुरे कार्य करे?
यह वह प्रश्न है जिनका उत्तर दिया जाना आवश्यक है, यह केवल शिया सम्प्रदाय ही है जिसने जब्र और तफ़वीज़ के समअले को हल किया है।
कोई सम्प्रदाय यह कहता है कि ईश्वर ने इन्सान को विवश पैदा किया है इन्सान ईश्वर के हाथों की कठपुतली है वह जो करवाता है इन्सान वही करता है।
और दूसरा समप्रदाय यह कहता है कि ईश्वर ने इन्सान को पैदा करने के बाद छोड़ दिया है उस पर ईश्वर का कोई कंट्रोल नहीं हो जो कुछ भी इन्सान करता है वह उसका ख़ुद का काम है।
लेकिन यह शिया सम्प्रदाय यह कहता है कि ईश्वर ने ना तो इन्सान को पूर्ण रूप से विवश पैदा किया है और ना ही उसको पूर्णता आज़ाद छोड़ दिया है, बल्कि उसने इन्सान को इरादे और अख़्तियार के साथ पैदा किया है।
जब यहूदियों ने यह कहा कि ख़ुदा का हाध बंधा है तो ख़ुदा ने उन पर लानत की
5. सूरा तौबा की 68वीं आयत, यह वही सूरा है जिसे नाज़िल होने के बाद पहले अबूबक़र को दिया गया था कि वह इसकी तबलीग़ करें लेकिन बाद में आयत नाज़िल हुआ कि हे रसूल या इसकी तबलीग़ ख़ुद करों यह वह करे जिससे ख़ुदा राज़ी है और उसके बाद यह सूरा उनसे लेकर अली को दिया गया, इस सूरे में मुनाफ़िक़ों के बारे में फ़रमाया गया है और उन पर लानत की गई है।
وَعَدَ اللَّـهُ الْمُنَافِقِينَ وَالْمُنَافِقَاتِ وَالْكُفَّارَ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ هِيَ حَسْبُهُمْ ۚ وَلَعَنَهُمُ اللَّـهُ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيمٌ
6. सूरा बक़रा की 159वीं आयत में ख़ुदा लानत कर रहा है और लानत करने वाले लानत कर रहे हैं,
إِنَّ الَّذِينَ يَكْتُمُونَ مَا أَنزَلْنَا مِنَ الْبَيِّنَاتِ وَالْهُدَىٰ مِن بَعْدِ مَا بَيَّنَّاهُ لِلنَّاسِ فِي الْكِتَابِ ۙ أُولَـٰئِكَ يَلْعَنُهُمُ اللَّـهُ وَيَلْعَنُهُمُ اللَّاعِنُونَ
तो प्रश्न यह है कि यह लानत करने वाले कौन हैं? अगर सही यह हो कि केवल ख़ुदा लानत करे तो यह दूसरे लानत करने वाले कौन हैं जिनके बारे में ख़ुदा क़ुरआन में फ़रमा रहा है।
7. सूरा हूद की 18 वी आयत में ख़ुदा लानत कर रहा है उन लोगों पर जो ज़ालिम हैं
وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَىٰ عَلَى اللَّـهِ كَذِبًا ۚ أُولَـٰئِكَ يُعْرَضُونَ عَلَىٰ رَبِّهِمْ وَيَقُولُ الْأَشْهَادُ هَـٰؤُلَاءِ الَّذِينَ كَذَبُوا عَلَىٰ رَبِّهِمْ ۚ أَلَا لَعْنَةُ اللَّـهِ عَلَى الظَّالِمِينَ
8. सूरा माएदा की 78 वीं आयत में हज़रत ईसा ने लानत की है वह ईसा जिनको रहमत और कृपा का नबी और मसीह कहा जाता है उन्होंने लानत की है
لُعِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن بَنِي إِسْرَائِيلَ عَلَىٰ لِسَانِ دَاوُودَ وَعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ ۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَوا وَّكَانُوا يَعْتَدُونَ
9. सूरा आले इमरान की 87वी आयत में ख़ुदा, फ़रिश्तें और दूसरे लोग लानत कर रहे हैं
أُولَـٰئِكَ جَزَاؤُهُمْ أَنَّ عَلَيْهِمْ لَعْنَةَ اللَّـهِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ
8. सारी इस्लामी एतिहासिक किताबों ने लिखा है कि रसूल ने नजरान के ईसाईयों के साथ मुबाहेला किया, अब प्रश्न यह है कि इस मुबाहेला में क्या होने वाला था? तै यह हुआ था दोनों गुट एक दूसरे पर लानत करें।
فَمَنْ حَاجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ وَنِسَاءَنَا وَنِسَاءَكُمْ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَتَ اللَّـهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ
9. फ़िक़ह की पुस्तकों में भी एक अध्याय है जिसका नाम है मलाएना (लानत करना) जिसमें वह पति और पत्नि जिनको एक दूसरे पर शक होता है लेकिन किसी के पास भी कोई गवाह नहीं होता है तो अंत में तै यह किया जाता है कि दोनों एक दूसरे पर लानत करें।
जब यह सारे तर्क लानत के जायज़ होने पर वहाबियों के सामने रखे जाते है तो वह कहते हैं किः
ख़ुदा ने लानत की है तो हमको इससे क्या, ख़ुदा अहंकारी है तो क्या हम भी अहंकारी हो जाएं?!!!
इसका उत्तर वही है जैसा हमने बताया कि यह लानत ईश्वरीय गुण सलवात की तरह है अगर ख़ुदा सलवात करता है फ़रिश्ते सलवात पढ़ते हैं तो हम भी सलवात पढ़ें
इसी प्रकार अगर ख़ुदा ने मुनाफ़िक़ों, अत्याचारियों और वह लोग को लोगों के क़त्ल का कारण बनते हैं पर लानत की है तो अगर हम मोमिन और मुसलमान है तो हमको भी यही कार्य करना चाहिए।
परिणाम
वह आयत जो सब ना करने को कह रही है उसका लानत से कोई लेना देना नहीं है, लानत एक ईश्वरीय गुण है सलवात की भाति
रिवायत में भी आया है कि जब इमाम अली (अ) को यह सूचना मिली कि उनके साथी शाम वालों को बुरा भला कह रहा है और उनके लिए अभ्रद भाषा का प्रयोग कर रहे हैं तो आपने फ़रमायाः
انی اکرہ لکم ان تکونوا سبابین و لکنکم لو وصفتم اعمالھم و ذکرتم حالھم کان اصوب فی القول و ابلغ فی العذر و قلتم مکان سبکم ایاھم اللھم احقن دماء نا و دمائھم
और बहुत सी सही रिवायतों में आया है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कुछ लोगों पर लानत की है।
तो यह लानत करना ईश्वरीय गुण के साथ साथ नबवी सुन्नत भी है।
स्पष्ट रहे कि लानत करना बुरा भला करने के अलग है सब का अर्थ है बुरा भला कहना और ईश्वर ने क़ुरआन में दूसरों को बुरा भला करने से रोका है ना कि लानत करने से।
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