सूरा बक़रा के अंतरगत तौरैत में पैग़म्बरे इस्लाम और अहलेबैत के बारे में शुभसमाचार

सूरा बक़रा के अंतरगत तौरैत में पैग़म्बरे इस्लाम और अहलेबैत  के बारे में शुभसमाचार

जैसा कि हमने इससे पहले वाले लेख जिसका शीर्षक सूरा बक़रा की सूक्षम्ताएं है में बयान किया है कि सूरा बक़रा का मूल और उसका सारांश रजअत यानी इसी संसार में कुछ लोगों का दोबारा जीवित होना है, लेकिन कुछ लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं और कहते हैं कि इस संसार में मरने के बाद कोई दोबारा जीवित नहीं हो सकता है और वह कहते हैं कि शियो का रजअत का अक़ीदा सही नहीं है।

 

लेकिन हम यह कहते हैं कि जो इन्सान रजअत को नहीं मानता है और यह कहता है कि रजअत संभव नही है, वह वास्तव में ईश्वर को शक्तिविहीन समझता है, वह यह सोंचता है कि ईश्वर इन्सान को दोबारा जीवित नहीं कर सकता है, जब्कि ऐसा नहीं है और स्वंय क़ुरआन में भी इन्सानों के इसी संसार में दोबारा जीवित होने के बारे में कहा गया है जिसके हमने इसी लेख में बयान किया है अधिक जानकारी के लिए उसको देखें।

 

जैसा कि रिवायतों में भी आया है कि जो इन्सान दुआ ए अहद को चालीस सुबह पढ़े वह अगर मर जाए तो इमाम ज़ामाना (अ) के ज़ोहूर के समय उसको दोबारा जीवित किया जाएगा।

 

जैसा कि हमने उसी लेख में बताया कि बनी इस्राईल के लिए इस्लाम और पैग़म्बर के आने की भविष्यवाणी कोई नई बात नहीं थी, वह जानते थे कि एक नबी आएगा लेकिन चूंकि अगर उसको वह मानते तो उनको बनी इस्माईल की सरदारी को स्वीकार करना पड़ता इसलिए उन्होंने किसी बनी के आने का इन्कार कर दिया और, मूसा की वह बशारतें जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के आने के बारे में थी उनको स्वीकार नहीं कि और अपनी किताब तौरैत से ऐसी आयते जो इस बात को बयान कर रही हों मिटा दिया।

 

लेकिन तौरैत में फेर बदल करने के बावजूद भी कुछ ऐसी चीज़ें और आयतें हैं जो केवल पैग़म्बरे इस्लाम (स) और अहलेबैत और उस इस्लाम पर सही बैठती हैं जिसके बारह इमाम हों।

 

जैसा कि स्वंय पवित्र क़ुरआन में भी बनी इस्राईल के बारे में आया है कि वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बारे में जानते थे और उनकी वह उसी प्रकार पहचानते थे जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चे को पहचानती है यानी वह उनके सारे गुणों और विशेषताओं से भलिभाति परिचित थे जैसा कि सूरा बक़रा की 146वी आयत बयान कर रही है

 

الَّذینَ آتَیْناهمُ الْکِتابَ یَعْرِفُونَه کَما یَعْرِفُونَ أَبْناء َهمْ وَ ِنَّ فَریقاً مِنْهمْ لَیَکْتُمُونَ الْحَقَّ وَ همْ یَعْلَمُونَ (146)

 

जिन लोगों के हमने किताब दी है वह रसूल को अपनी औलाद की भाति पहचानते हैं, उनका एक गुट है जो वास्तविक्ता हो जानते बूझते छिपा रहा है।

 

इसी प्रकार सूरा अन्आम की यह आयत

 

الَّذینَ آتَیْناهمُ الْکِتابَ یَعْرِفُونَه کَما یَعْرِفُونَ أَبْناء َهمُ الَّذینَ خَسِرُوا أَنْفُسَهمْ فَهمْ لا یُؤْمِنُونَ (20)

 

जिन लोगों को हमने किताब दी है वह पैग़म्बर को उसी प्रकार पहचानते हैं जिस प्रकार अपनी औलादों को पहचानते हैं लेकिन जिन लोगों ने अपने नफ़्स को घाटे में डाल दिया है वह ईमान नहीं ला सकते।

 

सूरा बक़रा की यह आयत

 

وَ لَمَّا جاء َهمْ کِتاب مِنْ عِنْدِ اللَّه مُصَدِّق لِما مَعَهمْ وَ کانُوا مِنْ قَبْلُ یَسْتَفْتِحُونَ عَلَی الَّذینَ کَفَرُوا فَلَمَّا جاء َهمْ ما عَرَفُوا کَفَرُوا بِه فَلَعْنَةُ اللَّه عَلَی الْکافِرینَ (89)

 

और जिनके पास ख़ुदा की तरफ़ से किताब आई है तो उनकी तौरैत की तस्दीक़ भी करने वाली है और इसके पहले वह दुश्मनों के मुक़ाबले में इसी के माध्यम से जीत भी प्राप्त करते थे लेकिन उसके आते ही इन्कार करने लगे हालांकि उसे पहचानते भी थे तो काफ़िरों पर ख़ुदा की लानत है।

 

सूरा आराफ़ की यह आयत

 

الَّذینَ یَتَّبِعُونَ الرَّسُولَ النَّبِیَّ الْأُمِّیَّ الَّذی یَجِدُونَه مَکْتُوباً عِنْدَهمْ فِی التَّوْراةِ وَ الِْنْجیلِ (157)

 

जो लो रसूले उम्मी का अनुसरण करते हैं जिसका ज़िक्र अपने पास सौतैर और इन्जील में लिखा पाते हैं

 

और सूरा फ़त्ह की यह आयत

 

مُحَمَّد رَسُولُ اللَّه وَ الَّذینَ مَعَه أَشِدَّاء ُ عَلَی الْکُفَّارِ رُحَماء ُ بَیْنَهمْ تَراهمْ رُکَّعاً سُجَّداً یَبْتَغُونَ فَضْلاً مِنَ اللَّه وَ رِضْواناً سیماهمْ فی وُجُوههمْ مِنْ أَثَرِ السُّجُودِ ذلِکَ مَثَلُهمْ فِی التَّوْراةِ وَ مَثَلُهمْ فِی الِْنْجیلِ کَزَرْعٍ أَخْرَجَ شَطْأَه فَآزَرَه فَاسْتَغْلَظَ فَاسْتَوی عَلی سُوقِه یُعْجِبُ الزُّرَّاعَ لِیَغیظَ بِهمُ الْکُفَّارَ وَعَدَ اللَّه الَّذینَ آمَنُوا وَ عَمِلُوا الصَّالِحاتِ مِنْهمْ مَغْفِرَةً وَ أَجْراً عَظیماً (29)

 

मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं और जो लोग उनके साथ हैं वह काफ़िरों के लिए सख़्ततरीन और आपस में बहुत ही रहमदिल हैं तुम उन्हे देखोगे कि वह रुकूअ और सजदे की हालत में हैं और अपने परवरदिगार से रहम और कृपा और उसकी मर्ज़ी को चाहते हैं, सजदे की अधिकता के कारण उनके चेहरों पर सजदे के निशान पाए जाते हैं यही उनकी मिसाल तौरैत में है यही उनका गुण इन्जील में है जैसे कोई खेती हो जो पहले सूखी हुई निकले फिर उसे मज़बूत बनाए फिर वह मोटी हो जाए और फिर पैरों पर खड़ी हो जाए कि किसान को प्रसन्न करने लगे ताकि उनके ज़रिये काफ़िरों को जलाया जाए और अल्लाह ने ईमान नेक कार्य करने वालों से मग़्फ़िरत और अज़ीम अज्र का वादा किया है।

 

पवित्र क़ुरआन की यह वह कुछ आयते हैं जो यह बयान कर रही है कि बनी इस्राईल और यहूदी पैग़म्बरे इस्लाम को अच्छी तरह से पहचानते थे और ख़ुद उनकी किताबों में उनके बारे में बयान किया गया था और वह आयतें उनकी तौरैत एवं इन्जील में थीं जिनके पता चलता था कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) कौन हैं और उनकी क्या विशेषताएं एवं गुण हैं, लेकिन अफ़सोस कि उन्होंने अपने क्षणिक और संसारिक लाभ के लिए इस पुस्कतों में भेर बदल कर दिया और वह आयतें जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) और अहलेबैत के बारे में बशारतें और शुभ समाचार दे रही थी उनको मिटा दिया,।

 

लेकिन वह कहते हैं ना कि चोर कितना भी शातिर क्यों ना हो कोई ना कोई सुराग़ अवश्य छोड़ता है इसी प्रकार यहां भी हुआ, उन्होंने अपने तौर पर तो पैग़म्बर और अहलेबैत से सम्बंधित सारी आयतों को मिटा दिया लेकिन उसके बावजूद कुछ ऐसा उनकी किताबों में रह गया जो केवल पैग़म्बर और उसी इस्लाम पर सही बैठता है जिसके बारह इमाम हो, यानी वही सच्चा और वास्तविक इस्लाम जिस पर शिया अक़ीदा रखते हैं।

 

जैसा कि सफ़रे पैदाइश के भाग 17 की 18वीं और 19वीं और 20वीं आयत में कुछ इस प्रकार फ़रमाया गया है

 

और इब्राहीम ने ईश्वर से कहाः काश इस्माईल तेरे सामने जीवित रहते (18) ईश्वर ने कहाः निःसंदेह तुम्हारी पत्नी सारा तुम्हारे लिए एक बेटा जनेगी, और उसका नाम इस्हाक़ रखों, और अपना वादा उससे बनाए रखूंगा, ताकि उसकी संतान से उसके बाद सदैव के लिए अहद हो (20) लेकिन इस्माईल के बारे में तुम्हारी प्रार्थना को स्वीकार किया, अब उसको बरकत दी, उसको बहुत अधिक (संतान वाला) बनाया, उसकी संतान से बारह सरदार होंगे और उससे महान उम्मत पैदा होगी।

 

ध्यान देने वाली बात है कि इब्राहीम ने ईश्वर से केवल इस्माईल के जीवन के बारे में बात की थी लेकिन ईश्वर कह रहा है कि मैंने उनको बरकत दी और उनसे महान उम्मत पैदा होगी, और सबसे महत्वपूर्ण बात उसके बारह सरदार होंगे।

 

और अगर अब हम इस आयत को इस्लाम पर लाएं तो यह केवल उसी इस्लाम पर सही बैठती है जिसमें शिया यह मानते हैं कि पैग़म्बर (जो कि हज़रत इस्माईल की संतान में से हैं) के बारह जानशीन और इमाम होंगे।

 

जैसा कि हदीसों में भी आया है कि यह संसार उस समय तक समाप्त नहीं होगा जब तक कि बारह जानशीन ना हो जाएं।

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